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अगली सरकार की बड़ी चुनौतियां

इस समय जब लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया लगभग खत्म होने को है, तब अनेक मंत्रालयों को उन कार्यों की सूची बनाने के लिए कहा जाना चाहिए, जिनको भावी सरकार द्वारा पहले 100 दिनों में शुरू या पूरा कर लेना चाहिए।...

अगली सरकार की बड़ी चुनौतियां
अनिल गुप्ता संस्थापक नेशनल इनोवेशन फाउंडेशनMon, 20 May 2019 12:01 AM
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इस समय जब लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया लगभग खत्म होने को है, तब अनेक मंत्रालयों को उन कार्यों की सूची बनाने के लिए कहा जाना चाहिए, जिनको भावी सरकार द्वारा पहले 100 दिनों में शुरू या पूरा कर लेना चाहिए। जो भी सरकार केंद्र की सत्ता में आए, उसे यह दिखाना होगा कि सामाजिक प्रभाव उसकी प्राथमिकता है। हम अभी मई के महीने में हैं और जून की शुरुआत या मध्य में मानसून आ जाएगा और बारिश शुरू हो जाएगी। भारत के मौसम विभाग ने जून में सामान्य से कम बारिश होने की 77 प्रतिशत आशंका जताई है। ज्यादातर अन्य मौसम अनुमान भी अल नीनो के प्रभाव की वजह से आशंकित हैं। स्वाभाविक ही, अगर जून में सामान्य से 70 प्रतिशत कम बारिश और जुलाई में सामान्य से 50 प्रतिशत कम बारिश होने की आशंका है, तो हमें क्या करना चाहिए? 
क्या जल संरक्षण हमारी पहली प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए? सभी राज्यों को यह सलाह देनी चाहिए कि वे मिट्टी खोदने या ढोने वाले यंत्रों-वाहनों को अनिवार्य रूप से काम पर लगा दें, ताकि नहरों, कुंडों, तालाबों और अन्य जल स्रोतों को गहरा किया जा सके। ये जल स्रोत गहरे होंगे, तो उनमें ज्यादा जल संरक्षित हो सकेगा। साथ ही, नए जल संरक्षण प्रबंध भी युद्ध स्तर पर करने चाहिए। आने वाले समय में पेयजल की समस्या और बढ़ने की आशंका है, लेकिन इससे पूरी तरह बचा भी जा सकता है। सिंचाई संसाधनों की कमी की शिकायत किसान पहले से ही करते रहे हैं। विनिर्माण सूचकांक पहले से ही कम है और जल की औद्योगिक मांग के समय के साथ बढ़ते जाने की संभावना है। किसी भी नई सरकार के लिए जल प्रबंधन का कार्य शुरुआती सौ दिनों में काफी महत्वपूर्ण रहेगा और संकट प्रबंधन समूह की जरूरत पड़ेगी। यह संकट प्रबंधन समूह सुनिश्चित करे कि लोग जल उपभोग या दुरुपयोग घटाने के लिए तैयार हों, आत्म-नियमन और भागीदारी के लिए प्रेरित हों। 
दूसरी प्राथमिकता, उन किसानों के बीच बीज और उर्वरक वितरण हो, जिनकी फसल पहले बारिश की कमी या अत्यधिक बारिश और बाढ़ की वजह से खराब हो चुकी है। पूर्वी भारत में अत्यधिक बारिश समस्या रही है। इसके अलावा देश में अनेक इलाकों में आपातकालीन दोबारा बुआई की जरूरत भी पड़ सकती है। 
तीसरी प्राथमिकता, उन नौजवानों के लिए व्यापक औद्योगिक इंटर्नशिप प्रोग्राम शुरू करना पडे़गा, जो आज बहुत धीरज और संयम के साथ अपने लिए रोजगार व प्रासंगिक अवसरों का इंतजार कर रहे हैं। अपने देश में अचानक से रोजगार सृजन करना शायद संभव नहीं होगा, लेकिन अगर बडे़ पैमाने पर लाभप्रद इंटर्नशिप का सृजन होता है, तो इससे न केवल औद्योगिक गतिविधियों में तेजी आएगी, बल्कि युवा अपने कौशल का और विकास कर पाएंगे। जब वे कहीं यथोचित कौशलपूर्ण काम में लगेंगे, तो उसके बाद अपनी योग्यता के आधार पर उद्योग और रोजगार में स्थाई हो जाएंगे। यह दुभाग्र्यपूर्ण है कि हमारी अर्थव्यवस्था में ज्यादातर कौशल विकास कार्यक्रमों का वास्तविक रोजगार सृजन से संबंध टूट-सा गया है। 
चौथी प्राथमिकता, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक क्षेत्रों में निशानदेही करते हुए उत्पादकता बढ़ाई जाए। आज जिला और क्षेत्र स्तर पर विभिन्न इलाकों की उत्पादकता में विषमता बहुत ज्यादा है। कहीं ज्यादा उत्पादन हो रहा है, तो कहीं कम। हर ग्रामसभा स्तर तक जाकर सबसे ज्यादा उत्पादक, ऊर्जा बचत में सक्षम औद्योगिक इकाई या कृषि इकाई की पहचान करना कोई कठिन कार्य नहीं है। सफल इकाइयों के विभिन्न पक्षों से जुड़े पूरे दस्तावेज तैयार हों, उनकी ईमानदार विवेचना हो और उनकी सफलता के लिए जिम्मेदार कारकों को सबके साथ साझा किया जाए। किसी एक की सफलता का सभी मिलकर लाभ उठाएं। यह वह सलाह थी, जो बहुत पहले गांधीजी ने दी थी, जिसे हम लोगों ने अब तक नीतिगत प्रमुखता के साथ लागू नहीं किया है। यह बहुत संभव है कि जो किसान बहुत उत्पादक पाए जाएंगे, वे बहुत कम जल या कम रसायन इस्तेमाल में लाते होंगे। ठीक इसी तरह से यह भी संभव है कि जो औद्योगिक इकाइयां ज्यादा उत्पादक होंगी, वे दूसरों की तुलना में कम जल और कम ऊर्जा की खपत करती होंगी। श्रम, ऊर्जा और पूंजी की उत्पादकता बढ़ाकर दीर्घकालिक आधार पर अपने देश के तमाम बीमार उद्योगों का उद्धार किया जा सकता है।  
पांचवीं प्राथमिकता, हर किसी तक आधारभूत स्वास्थ्य सुविधाएं और जरूरी पोषण पहुंचाना। इसके लिए बड़े पैमाने पर एक निदान अभियान की जरूरत पड़ेगी, ताकि इस क्षेत्र में हो रहे तमाम नवाचारों का प्राथमिकता के साथ जांच-परीक्षण हो, ताकि अलग-अलग इलाकों तक बीमारियों का सही उपचार पहुंचाया जा सके। किसी एक कंपनी को स्वास्थ्य की जिम्मेदारी देने की बजाय लोगों को जन-स्वास्थ केंद्रों पर सेवा के अनेक विकल्प देने चाहिए। इसमें जो कंपनी या इकाई स्वास्थ्य सेवा में सतत गुणवत्ता और श्रेष्ठता बनाए रखेगी, शायद वही बचेगी। 
छठी प्राथमिकता, सार्वजनिक खरीद तंत्र को प्रमुखता से इस्तेमाल करना होगा, ताकि जमीनी स्तर पर औद्योगिक और व्यवस्थित नवाचारों को प्रेरित किया जा सके। 
इस सप्ताह लोकसभा चुनाव के परिणाम आ जाएंगे। दुआ कीजिए कि हमें एक ऐसी सरकार मिले, जो किसी के भी महत्वपूर्ण सुझावों को सुने। वह सरकार इतनी अक्खड़ न हो कि सारी विद्वता को अपने या अपने कुछ लोगों तक सीमित माने। सीखने, साझा करने और अवसर सृजन में लोकतंत्रीकरण आज समय की जरूरत है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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