महिलाएं जो निभाएंगी केंद्रीय भूमिका
भारतीय राजनीति में यूं तो कई महिलाएं सक्रिय हैं, मगर आगामी आम चुनाव में तीन महिलाएं- मायावती, ममता बनर्जी और प्रियंका गांधी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रही हैं। इन तीनों महिला नेत्रियों में से ममता...
भारतीय राजनीति में यूं तो कई महिलाएं सक्रिय हैं, मगर आगामी आम चुनाव में तीन महिलाएं- मायावती, ममता बनर्जी और प्रियंका गांधी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रही हैं। इन तीनों महिला नेत्रियों में से ममता बनर्जी और मायावती काफी लंबे समय से सक्रिय राजनीति में हैं, जबकि प्रियंका गांधी ने राजनीति में अभी प्रवेश किया है, हालांकि वह अमेठी और रायबरेली में चुनावों के संयोजन और इंदिरा गांधी परिवार से जुडे़ होने के कारण हमेशा से मीडिया विमर्श के केंद्र में रही हैं। इन तीनों महिला नेत्रियों की अपनी शक्ति, संभावनाएं और सीमाएं हैं।
मायावती भारत में दलित-बहुजन राजनीति की केंद्रीय व्यक्तित्व हैं। कांशीराम के साथ मिलकर उन्होंने 80 के दशक से बहुजन राजनीति को संगठित करने का काम किया था। यह जानना सचमुच रोचक है कि भारत में, विशेषकर उत्तर भारत में बहुजन राजनीति के उभार से ही कांग्रेस कमजोर हो पाई। मायावती की शक्ति है- अपने समर्थकों सीधा और स्पष्ट संवाद स्थापित करना। उनके भाषणों में नारेबाजी नहीं, स्पष्टता होती है। दूसरे, वह जनतंत्र में दलितों की विकासमान आकांक्षा का प्रतीक बनकर उपस्थित हैं। उनके पास एक ऐसा मतदाता समूह है, जो उनके कहने से अपने मतों का स्थानांतरण करता है। उनका दलितों के बीच एक करिश्मा है। उनकी रैलियों में जिस तरह से जनसमूह उत्साहित होता है, इससे साफ जाहिर होता है कि वह अपने समर्थक सामाजिक समूहों की नब्ज पकड़ने में कामयाब रहती हैं। उन्होंने यह राजनीतिक कद सहज ही नहीं प्राप्त कर लिया, अपने नेतृत्व के प्रारंंभिक चरण में गांव-गांव साइकिल से या फिर पैदल कांशीराम के साथ घूम-घूमकर उन्होंने अपना यह करिश्मा विकसित किया है। दलित जनमत का एक बड़ा भाग उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखता है। 2019 के चुनाव में वह न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक जैसे राज्यों में भी सक्रिय रहेंगी।
ममता बनर्जी तो कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति से निकली हैं, लेकिन कांग्रेस के नेताओं के विपरीत उन्होंने अपने को जमीनी नेता के रूप में विकसित किया है। सड़क की लड़ाई, जमीन की भाषा और बांग्ला अभिजात्य के सांस्कृतिक संवाद, तीनों के अद्भुत मिश्रण से वह अपना राजनीतिक व्याख्यान रचती हैं। अगर उनके भाषणों को गहराई से देखा जाए, तो उनमें भी मारक या बेधक स्पष्टता दिखाई पड़ती है। जनता में लोकप्रिय मुद्दे खड़ा करने में वह माहिर हैं। लोकप्रिय नारे गढ़ने, उन नारों से सघन आबद्धीकरण रचना उनकी खूबी है। निर्भीकता और अबाध आत्म विश्वास उनका भी गुण है। समाज के हाशिये के लोग तो उनसे जुड़ते ही हैं, बांग्ला मध्य वर्ग के बडे़ हिस्से का भी वह प्रतिनिधित्व करती हैं। साल 2019 के चुनाव में न केवल वह बंगाल में चुनाव प्रचार करेंगी, वरन दिल्ली, आंध्र प्रदेश, बिहार में भी विपक्षी शक्तियों के पक्ष में रैलियां कर सकती हैं। ममता अपनी आक्रामक और बेलाग राजनीतिक शैली के कारण आज विपक्षी एकता के केंद्र में हैं। उनके पास एक बेहतर कूटनीतिक शक्ति भी है। अगर गैर भाजपाई विपक्ष सत्ता में आया, तो बहुत संभव है कि ममता बनर्जी अपनी इस कूटनीतिक क्षमता के कारण एक बड़ी नेता के रूप में उभरकर सामने आएं।
प्रियंका गांधी ने भारतीय राजनीति में घोषित रूप से प्रवेश कर लिया है। उन्हें कांग्रेस का महासचिव बनाया गया है और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपा गया है। उन्होंने अभी लखनऊ में एक सफल रोड शो किया और पिछले कई दिनों से वहां रहकर संगठन के कार्यकर्ताओं से लगातार संवाद कर रही हैं। हालांकि उनकी जड़ तो उत्तर प्रदेश में होगी, किंतु कांग्रेस ने यह स्पष्ट किया है कि वह देश के अन्य भागों में भी चुनाव प्रचार करेंगी। यानी वह राष्ट्रीय स्तर पर 2019 के चुनाव को प्रभावित करने जा रही हैं। प्रियंका गांधी के राजनीतिक शिल्प की व्याख्या आत्म विश्वास, निर्भीकता, हाजिर जवाबी वगैरह से की जाती है। उनका जनता से एक त्वरित कनेक्ट बन जाता है, यह सब मिलकर उनके एक अलग करिश्मे की रचना करते हैं। प्रियंका गांधी के व्यक्तित्व में लोग इंदिरा गांधी की छवि भी देखते हैं। हालांकि इंदिरा गांधी की स्मृति जनमानस में सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों रूपों में है। नकारात्मकता आपातकाल की स्मृति से जुड़ी है।
बहरहाल, माना जा रहा है कि प्रियंका 2019 के चुनाव में एक तरफ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के आत्म विश्वास के रूप में खड़ी रहेंगी, तो दूसरी तरफ कांग्रेस के इधर-उधर छिटके-बिखरे पारंपरिक निष्क्रिय मतदाताओं में नए उत्साह का संचार करके उन्हें कांग्रेस की ओर आकर्षित करेंगी। चुनाव में कांग्रेस जिन राज्यों में तीसरे और चौथे पायदान पर रहती है, वहां के कांग्रेसी मतदाताओं में विजय का नया जज्बा पैदा करके वह उन्हें शिफ्ट होने से रोकेंगी। जनता का एक हिस्सा उनमें भी भविष्य की बड़ी नेता की संभावना देखता है। कई राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि प्रियंका गांधी के उभार से राहुल गांधी का राजनीतिक भविष्य प्रभावित हो सकता है, लेकिन फिलहाल तो यही लगता है कि 2019 के आम चुनाव में उनकी उपस्थिति राहुल गांधी को मजबूत ही करेगी।
इन तीन महिला नेत्रियों की राजनीतिक शैली में कुछ बातें समान हैं। तीनों में ही गजब का आत्म विश्वास, स्पष्ट निर्भीकता और जनता से कनेक्ट बना लेने की क्षमता है। राजनीतिक संवादों में जो नेता सहज और जनग्राही स्पष्ट संदेश देने वाला संवाद रचता है, जनता उससे सहज ही जुड़ जाती है। इन तीन महिला नेत्रियों में ये गुण सहज ही झलकते हैं। इन तीनों की जनसभाओं में महिलाओं की अच्छी-खासी तादाद होती है। भारतीय समाज की महिलाएं इनमें अपूरित इच्छाएं पूरी होते देखती हैं। इनके राजनीतिक व्यक्तित्व की अपनी सीमाएं हो सकती हैं, किंतु इन्होंने अपनी सीमाओं को बार-बार जीता है।
हालांकि यह भी सच है कि आधार तल पर भारतीय राजनीति की जटिलताएं इतनी ज्यादा हैं कि सिर्फ करिश्माई व निर्भीक महिला नेत्री होने और मजबूत क्षेत्रीय आधार से ही इनके लिए चुनौतियों से पार पाना आसान नहीं होगा। लेकिन यह सच है कि ये तीनों आगामी आम चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रही हैं। आप चाहें, तो इनमें भविष्य की कई संभावनाएं देख सकते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)