फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियनजब पाकिस्तान को मिला करारा जवाब

जब पाकिस्तान को मिला करारा जवाब

मैं कारगिल युद्ध के दौरान कश्मीर में अपनी पलटन को कमांड कर रहा था। जम्मू-कश्मीर में तैनात सेकेंड नगा रेजिमेंट को कारगिल ऑपरेशन के दौरान मश्कोह वैली में तैनात किया गया था। सरहद की हिफाजत करने में देश...

जब पाकिस्तान को मिला करारा जवाब
डी के बड़ोला ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) वाईएसएमSat, 16 Feb 2019 08:46 AM
ऐप पर पढ़ें

मैं कारगिल युद्ध के दौरान कश्मीर में अपनी पलटन को कमांड कर रहा था। जम्मू-कश्मीर में तैनात सेकेंड नगा रेजिमेंट को कारगिल ऑपरेशन के दौरान मश्कोह वैली में तैनात किया गया था। सरहद की हिफाजत करने में देश के बहादुर जवान कोई भी कसर नहीं छोड़ रहे थे। चाहे सुबह का समय हो या हाड़ कंपाने वाली सर्द रातें, सेना के जवान मौसम की परवाह किए बिना देश की सरहदों की हिफाजत करने में जुटे हुए थे। सात जुलाई, 1999 की रात पाकिस्तानी सेना ने भारी और अत्याधुनिक हथियारों से लैस होकर पूरी तैयारी के साथ मश्कोह वैली की पोस्ट प्वॉइंट 4875 पर अचानक हमला कर दिया। अचानक हुए हमले और घातक हथियारों की चपेट में आने से हमारे 15 बहादुर जवानों को अपनी शहादत देनी पड़ी। भारी संख्या में अपने साथियों को खोने का गम और गुस्सा रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर सहित आस-पास के इलाकों में तैनात बटालियनों के हर जवान की आंखों में साफ-साफ देखा जा रहा था। चाहे बड़ा अफसर हो या फिर छोटा सैन्य अधिकारी, हर कोई अपने वीर साथियों की शहादत का बदला लेना चाहता था। 
साथियों की शहादत का बदला लेने के लिए रेजिमेंट ने एक रणनीति बनाई। हमारे बहादुर जवानों ने पाकिस्तानी पोस्ट ‘ट्विन बंप’ पर हमला करके उसकी सभी पोस्ट और बंकर को नेस्तनाबूद कर दिया। पाक पोस्ट में रखे हुए अत्याधुनिक हथियारों के जखीरे को भी पूरी तरह बर्बाद कर दिया। अपने साथियों की शहादत के बदले का सुबूत देने के लिए इंडियन आर्मी के बहादुर जवानों ने चार पाकिस्तानी जवानों के सिर कलम कर लिए और उन्हें अपने साथ अपनी पोस्ट में लेकर आ गए। तब जाकर जवानों ने चैन की सांस ली थी और कसम खाई थी कि आतंकियों ने अगर हमारी पोस्ट पर दोबारा हमला किया, तो पूरी तरह से उनका खात्मा कर देंगे। 
इसी दौरान पाकिस्तानी सेना और आतंकी संगठनों के हमलों से क्षुब्ध हमारे जवानों ने ‘नीलम वैली’ में करीब दो महीने तक पाकिस्तान की तरफ जाने          वाली सड़क पर कब्जा जमा लिया था। सड़क पर भारतीय सेना की पकड़ होने की वजह से पाकिस्तानी सेना की रसद की आपूर्ति पर भी बुरा असर पड़ा। मामले के हल के लिए पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना से मदद की गुहार लगाकर दोबारा ऐसा न करने का भरोसा दिलाया, जिसके बाद ही सेना की ओर से वह सड़क खोली गई। 
भारतीय सेना के जवाबी हमले में कई बार पाकिस्तानी सेना को मुंह की खानी पड़ी है। भले ही भारतीय सेना ने पहले हमला करने में कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई हो, लेकिन कायरतापूर्ण हमले का जवाब देने में उसने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। कारगिल युद्ध इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है। विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बीच आतंकियों का साथ देने वाली पाकिस्तानी सेना भले ही पहाड़ी चोटियों पर बैठी थी, लेकिन भारतीय सेना के बहादुर जवानों के हाथों पाकिस्तानी सेना और आतंकी संगठनों को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। आजादी के बाद से कारगिल युद्ध तक भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सभी युद्धों में पाकिस्तानी फौज को हमेशा पीठ दिखाकर भागना पड़ा। 
29 सितंबर, 2016 को हुई उरी सेक्टर की सर्जिकल स्ट्राइक एक छोटा सा उदाहरण है, जिसमें भारतीय सेना ने यह साबित कर दिया कि अगर हुक्म मिले, तो हमारे बहादुर सैनिक एलओसी क्रॉस करके अपने साथियों की शहादत का बदला ले सकते हैं और देश के दुश्मनों को उनके घर में घुसकर मार सकते हैं। 
यह हैरानी की बात है कि पाकिस्तानी सेना और सरकार अपनी पुरानी गलतियों से सीख लेने को बिल्कुल तैयार नहीं है। भारतीय सेना या अद्र्ध सैनिक बलों के ठिकानों पर बार-बार हमला करवाया जाता है, जबकि इतिहास इस बात का गवाह है कि भारतीय सेना के बहादुर जवानों ने कभी भी पहले हमला नहीं किया। जम्मू-कश्मीर में सेना और अद्र्ध सैनिक संगठनों के ठिकानों या फिर वाहनों के काफिलों पर हमले की घटनाएं दुस्साहस की कार्रवाइयां हैं, सेना को इसका जवाब देना ही होगा, ताकि जवानों की शहादत बेकार न जाने पाए। सरकार को वैश्विक स्तर पर दबाव बनाना चाहिए। भारत को इस बात का भी दबाव बनाना होगा कि यूएस या यूएन एजेंसी पाकिस्तानी ठिकानों और पीओके में संचालित आतंकी ठिकानों की पहचान करके उन पर ड्रोन से हमला करे। आतंकी ठिकानों को पूरी तरह से नष्ट किए बिना आतंक से मुक्ति नहीं मिल सकती।
इस घटना से सबक लेते हुए आतंक प्रभावित क्षेत्रों में सेना या अद्र्ध सैनिक संगठनों के काफिले के गुजरने के दौरान आम लोगों की आवाजाही पूरी तरह से प्रतिबंधित कर देनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर में नेताओं से सुरक्षा वापस लेने का भी प्रयोग करना होगा। इससे उन नेताओं को आम जनता का दर्द महसूस हो सकेगा। आतंकियों के बार-बार हो रहे हमलों से निपटने के लिए ‘पिन-प्वॉइंट स्ट्राइक’ पर विशेष तौर से कार्य करना चाहिए। नवीनतम उपकरणों की मदद से आतंकी संगठनों की पहचान करना बहुत जरूरी है। चिह्नित आतंकी संगठनों और उनके ठिकानों को पूरी तरह से नष्ट करने के लिए गुप्तचर विभाग को सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत होगी। सेना की छोटी-छोटी टुकड़ी को नवीनतम कम्युनिकेशन और हथियारों से लैस करने की जरूरत है। आतंकी सगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने में थोड़ा भी विलंब न हो सके। आतंकी संगठनों को पूरी तरह से खत्म करने के लिए भारतीय सेना को अधिक से अधिक अधिकार देने की जरूरत है। सेना के हाथ बांधकर आतंक का खात्मा संभव नहीं है। 
पीओके में ‘लॉन्च पैड’ की पहचान करना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, ताकि आतंकियों का पूरी तरह से सफाया किया जा सके। सरकार को ऐसे ठोस कदम उठाने चाहिए कि ऐसी आतंकी घटना दोबारा न हो और इसके लिए सेना को भी प्रभावी रणनीति बनाने की जरूरत है। सेना, पुलिस, अद्र्ध सैनिक बलों के बीच समन्वय और बेहतर करना होगा। पुलवामा के आतंकी हमले से हमें सीख लेने की जरूरत है, ताकि ऐसी घटना दोबारा न हो। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें