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प्याज की चिंता और आर्थिक नीतियां

खाने-पीने के सामान की महंगाई के आंकडे़ इस समय अचानक ही चर्चा में आ गए हैं। खाद्य मुद्रास्फीति ने पिछले बहुत सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं, जिसे लेकर चिंताएं कई तरह से बढ़ रही हैं। इससे मध्यवर्ग के लोगों के...

प्याज की चिंता और आर्थिक नीतियां
कन्हैया सिंह अर्थशास्त्रीTue, 14 Jan 2020 11:44 PM
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खाने-पीने के सामान की महंगाई के आंकडे़ इस समय अचानक ही चर्चा में आ गए हैं। खाद्य मुद्रास्फीति ने पिछले बहुत सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं, जिसे लेकर चिंताएं कई तरह से बढ़ रही हैं। इससे मध्यवर्ग के लोगों के घर का बजट तो बिगड़ा ही है, दूसरी तरफ ज्यादा बड़ी चिंता की लकीरें अर्थशास्त्रियों और उद्योग जगत के चेहरे पर दिख रही हैं। ये आंकडे़ उस समय आए हैं, जब रिजर्व बैंक अपनी तिमाही मौद्रिक नीति की घोषणा करने जा रहा है। उम्मीद थी कि इस बार मौद्रिक नीति में बैंक ब्याज दरों को कम करने की कोशिश करेगा। सुस्ती का शिकार बनी अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए यह निहायत जरूरी कदम है। लेकिन अब खाद्य मुद्रास्फीति के बढ़ने से इन उम्मीदों पर आशंका के बादल मंडराते हुए दिखने लगे हैं।
हालांकि खाद्य मुद्रास्फीति जिन कारणों से बढ़ी है, उसका मौद्रिक नीति से कोई लेना-देना नहीं है। मौद्रिक नीति से इसे नियंत्रित भी नहीं किया जा सकता। बाजार में प्याज, टमाटर या दालों जैसी चीजों के दाम इसलिए नहीं बढ़े कि उनकी मांग अचानक बढ़ गई है। ये दाम इसलिए भी बढ़े हैं कि उनकी आपूर्ति अचानक ही कम हो गई है। आपूर्ति कम होने का कारण बाढ़, अतिवृष्टि या सूखे जैसी आपदाएं हैं। जाहिर है, ब्याज दर बढ़ाकर आप इस महंगाई को नियंत्रित नहीं कर सकते। इसके लिए आपूर्ति बढ़ाना ही एकमात्र तरीका हो सकता है। आप ऐसी चीजों का आयात करके महंगाई को नियंत्रित कर सकते हैं, लेकिन दीर्घकालिक उपाय यह हो सकता है कि आप इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करें। ऐसी व्यवस्थाएं बनाएं कि जब उत्पादन ज्यादा हो, तो उसे लंबे समय के लिए स्टोर किया जा सके, ताकि कम उपज के समय वह काम आ सके और बाजार में अचानक इतनी तेजी से दाम न बढ़ें। 
उदाहरण के लिए हम प्याज को ही लें, तो इसमें जो मूल्यवृद्धि हुई है, वह 456 फीसदी है। हालांकि मुद्रास्फीति में इसकी भूमिका 0.16 फीसदी ही है। यह अचानक ही इतना महंगा हो गया कि मुद्रास्फीति पर उसका असर बड़ा दिखने लगा। ऐसा ही टमाटर और दालों वगैरह में भी हुआ है। आलू की महंगाई का मामला तो कुछ समय से शून्य से भी नीचे जा रहा था, पर पिछले एक महीने में उसका दाम अचानक बढ़़ गया और इस बार के आंकड़ों में उसने भी अपना असर दिखा दिया। इन्हीं सबके चलते इस बार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में भी तेजी दिखाई पड़ी है, क्योंकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में खाद्य वस्तुएं 32 फीसदी की भूमिका निभाती हैं।
लेकिन अगर खाद्य पदार्थों की महंगाई के मुकाबले देखें, तो इस असर के बावजूद उपभोक्ता मूल्य सूचकांक कोई बहुत ज्यादा ऊपर नहीं गया। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में हालांकि एक बड़ा हिस्सा खाद्य पदार्थों का होता है, लेकिन उत्पादित वस्तुएं, कपड़ा, ईंधन जैसी चीजें भी इसमें हैं, जिनकी महंगाई की दर इस समय शून्य से नीचे जा रही है। जाहिर है, ऐसे में अगर महंगाई को लक्ष्य करके मौद्रिक नीति बनाई जाती है, तो आपूर्ति के कम होने से खाद्य वस्तुओं पर उसका असर तो ज्यादा नहीं दिखेगा, लेकिन बाकी चीजों की बाजार में मांग कम होने लगेगी, और जिसे हम आर्थिक सुस्ती कह रहे हैं, वह समस्या और अधिक गहराएगी। 
आमतौर पर हम महंगाई बढ़ते ही मौद्रिक नीति के पेच कसने लगते हैं। मौद्रिक नीति के लिए मुद्रास्फीति को लक्ष्य करने की अवधारणा मूल रूप से मांग बढ़ने से जुड़ी है। यह तभी सफल होती है, जब मांग बढ़ने की वजह से बाजार में गरमी दिख रही हो। यह उस समय सफल नहीं हो सकती, जब महंगाई का कारण आपूर्ति में कमी हो। इस समय रिजर्व बैंक को ब्याज दर बढ़ाने के जाल में नहीं फंसना चाहिए। इससे कुछ नहीं होगा। इसकी बजाय अगर ब्याज दर कम होती है और लोग कर्ज लेकर घर या वाहन वगैरह खरीदते हैं, तो अर्थव्यवस्था की सुस्ती खत्म होने का रास्ता खुलेगा। खाद्य वस्तुओं को लेकर इस समय बाजार में जो हो रहा है, वह मौसम की अति का नतीजा है और मौसम को आप किसी आर्थिक या मौद्रिक नीति के औजार से नियंत्रित नहीं कर सकते। 
इस समय हम एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं,  जहां आम-बजट भी बहुत दूर नहीं है। एक खतरा यह भी है कि  महंगाई बजट पर अपना असर दिखा सकती है, जबकि बजट को भी मुद्रास्फीति की बजाय अपना सारा ध्यान आर्थिक विकास पर लगाना चाहिए। इस समय जरूरी यह है कि अर्थव्यवस्था में निवेश हो, लोगों को रोजगार मिले, जिसके माध्यम से लोगों तक पैसा पहुंचे। जरूरी यह है कि बजट ऐसी परियोजनाओं की शुरुआत का रास्ता तैयार करे, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिले और पैसा पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा लोगों के पास पहुंचे। इस समय निर्माण क्षेत्र की परियोजनाओं में जान फूंकने की जरूरत है, जहां भारी संख्या में अकुशल और अद्र्धकुशल लोगों को रोजगार मिलता है। साथ ही, ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर में धन लगाना चाहिए, वहां रोजगार के अवसर ज्यादा उपजते हैं। 
और अगर खाद्य मुद्रास्फीति सचमुच सरकार को बहुत बड़ी समस्या लग रही है, तो उसे कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने की कोशिश बजट में करनी चाहिए। सप्लाई चेन को सुधारने और भंडारण की नई व्यवस्थाओं में निवेश करना चाहिए, ताकि एक तरफ उत्पादन बढ़े और दूसरी तरफ बढे़ उत्पादन के लंबे समय तक सुरक्षित रखने की व्यवस्था बने, जिससे उपज के खराब होने की स्थिति में आपूर्ति पर बहुत गंभीर असर न पड़े। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति और सरकार की आर्थिक नीति, दोनों के लिए प्याज की बढ़ी कीमत की चिंता से मुक्त होना बहुत जरूरी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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