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कैसे कम हो घाटी में बढ़ती कट्टरता

बीते कुछ वर्षों में जम्मू-कश्मीर ने धार्मिक कट्टरता और हिंसक उग्रवाद में काफी वृद्धि देखी है। आतंकी जमातों की स्थानीय भर्ती में तेजी आई है। खासतौर से कश्मीर घाटी में नौजवान आज सैन्य अभियानों को बाधित...

कैसे कम हो घाटी में बढ़ती कट्टरता
बिक्रम सिंह पूर्व थल सेना प्रमुखMon, 14 Jan 2019 12:48 AM
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बीते कुछ वर्षों में जम्मू-कश्मीर ने धार्मिक कट्टरता और हिंसक उग्रवाद में काफी वृद्धि देखी है। आतंकी जमातों की स्थानीय भर्ती में तेजी आई है। खासतौर से कश्मीर घाटी में नौजवान आज सैन्य अभियानों को बाधित करने और राज्य-प्रशासन को चुनौती देने के लिए पहले से कहीं ज्यादा सक्रिय दिखाई देते हैं। थोड़े ही दिन हुए, जब पथराव करने वाली उन्मादी भीड़ ने मुठभेड़ स्थल से आतंकियों को भागने का सुरक्षित रास्ता देने के लिए कहीं अधिक दृढ़ता का प्रदर्शन किया था। 
लोगों को धर्म के नाम पर बरगलाने, ‘कश्मीरियत’ की मूल भावना खत्म करने और धीरे-धीरे उनमें जेहादी संस्कृति के बीज बोने का काम पाकिस्तान की एजेंसी आईएसआई ने किया है। उसका दुष्प्रचार व मनोवैज्ञानिक अभियान जहरीले, विकृत और असहिष्णु धार्मिक-वैचारिक कहानियों पर आधारित है। इस काम के लिए पाकिस्तान ने बाकायदा साइबर गुर्गे तैनात किए हैं और छद्म मीडिया का सहारा लिया है। मस्जिदों में शुक्रवार की नमाज के वक्त जो तकरीर पेश की जाती है, उसका इस्तेमाल चरमपंथ को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है और मदरसों में किशोर दिमागों में जेहादी विचारधारा भरी जा रही है। लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा करने के लिए पाकिस्तान ने हमारे देश के दूसरे हिस्सों में मौजूद सांप्रदायिक सोच का भी फायदा उठाया है।
यहां कट्टरता किस कदर बढ़ी है, इसका एहसास हथियार उठाने वाले नौजवानों की बढ़ती संख्या से होता है। यहां तक कि पढ़े-लिखे और नौकरीपेशा नौजवान भी आईएसआई की मनोवैज्ञानिक मशीनरी के शिकार बने हैं। साल 2017 में जहां 131 नौजवान विभिन्न आतंकी जमातों में शामिल हुए, तो वहीं 2018 में यह संख्या बढ़कर 200 हो गई। बीते कुछ वर्षों में आईएसआईएस-कश्मीर और अंसार गजावत-उल-हिंद जैसे नए आतंकी संगठन भी पैदा हुए हैं, जिन्होंने आईएस और अल कायदा की विचारधाराओं को अपनाया है।
कोई इंसान तब कट्टर बनता है, जब उसकी सोच को मनोवैज्ञानिक रूप से गलत दिशा में मोड़ दिया जाता है। इसे एक झटके में ठीक नहीं किया जा सकता। इसको दुरुस्त करने के लिए ऐसी टिकाऊ रणनीति की दरकार होती है, जो न सिर्फ कट्टरता को खाद-पानी देने वाले बाहरी और भीतरी कारकों व लोगों को निशाना बनाए, बल्कि ‘डी-रेडिकलाइजेशन’ यानी कट्टरवाद को खत्म करने वाली प्रक्रिया को भी गति दे। राष्ट्रीय रणनीति में एक अतिरिक्त नीति जुड़े, जिसका उद्देश्य सिर्फ जम्मू-कश्मीर में हालात को सामान्य बनाना हो। सैन्य अभियानों के अलावा, इसमें राजनीतिक, राजनयिक, आर्थिक, सामाजिक और ‘परसेप्शन मैनेजमेंट’ जैसे तमाम आयामों को जोड़ने की जरूरत है।
कश्मीर की बिगड़ती स्थिति से निपटने के लिए जरूरी है, संघर्ष क्षेत्र को भौतिक और आभासी, दोनों तरीकों से प्रभावी रूप से घेरना। इसीलिए नियंत्रण रेखा की कमियों को दुरुस्त करने के अलावा, हमें आभासी दुनिया में ‘इन्फॉर्मेशन सुपिरीऑरिटी’ (सूचना श्रेष्ठता) हासिल करने की जरूरत है, ताकि आईएसआई और उसके छद्म संगठनों को हमारे इलाकों में संचार साधनों के इस्तेमाल से रोका जा सके। इससे हमें अबाध खुफिया जानकारी हासिल करने में भी मदद मिलेगी। इस तरह की बेहतरीन तकनीक अमेरिका और इजरायल जैसे हमारे सामरिक साझेदार देशों के पास मौजूद है। हमें अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए उनकी मदद लेनी चाहिए।
शासन में सुधार भी बहुत जरूरी है। लोगों की उम्मीदों को पूरा करने के लिए राजनेता और प्रशासन तमाम स्तरों पर प्रतिबद्ध बनें। व्यापक भ्रष्टाचार से निपटने के लिए राज्य के सतर्कता आयोग को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए, क्योंकि राज्य के वांछित आर्थिक विकास में भ्रष्टाचार बड़ा बाधक बना हुआ है। कथित अन्याय की हर भावना को दूर करने के ईमानदार प्रयास किए जाने चाहिए। नकारात्मक तत्वों को बढ़ावा देने वाले नेताओं और मजहबी प्रतिनिधियों से भी कानून-सम्मत सख्ती से निपटा जाना चाहिए। समर्पित सुरक्षा कवच के साथ आधुनिक शैक्षणिक बुनियादी ढांचा बनाया जाना चाहिए और मस्जिदों में मजहबी प्रचारकों को जहर उगलने और जेहादी विचारधारा को फैलाने की कतई अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। चूंकि गरीबी कट्टरता के फलने-फूलने में अनुकूल स्थिति पैदा करती है और खाली दिमाग शैतान का घर होता है, इसलिए वहां रोजगार के अवसर भी तेजी से पैदा करने होंगे। पर्यटन को बढ़ावा देकर, इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित करके और होमगार्ड व सुरक्षा बलों की अतिरिक्त टुकड़ी बढ़ाकर ऐसा किया जा सकता है।
रही बात सैन्य मोर्चे की, तो सुरक्षा बलों को छद्म युद्ध के खिलाफ अपनी जन-हितैषी कार्रवाई जारी रखनी चाहिए। साथ-साथ उन्हें ‘स्मार्ट’ ताकत से भी लैस होना चाहिए। इन सैन्य अभियानों के साथ जरूरी यह भी है कि जेलों के प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करने और यहां के असामाजिक तत्वों को कानून के मुताबिक निष्क्रिय करने के लिए राज्य पुलिस विशेष अभियान चलाए। विशेषज्ञों और पुलिसकर्मियों द्वारा संचालित ‘डी-रेडिकलाइजेशन’ इकाइयां तमाम जेलों के साथ-साथ प्रभावित जिला मुख्यालयों में बनाई जानी चाहिए। ऐसे कार्यक्रम राह भटके लोगों को जेहादी विचारधारा से मुक्त होने और इस्लाम के बुनियादी मूल्यों को फिर से अपनाने में मदद कर सकते हैं।
हमारे आंतरिक मामलों में पाकिस्तान के हस्तक्षेप को रोकने और यहां हो रही बाहरी फंडिंग को खत्म करने के लिए हमें अपनी राजनीतिक, कूटनीतिक और ‘परसेप्शन मैनेजमेंट’ की पहल अतिरिक्त ऊर्जा के साथ जारी रखनी होगी। ‘परसेप्शन मैनेजमेंट’ की पहल ऐसी होनी चाहिए कि वह जहरीले आख्यानों का मुकाबला तो करे ही, घाटी के लोगों का भारत के साथ मानसिक और भावनात्मक रिश्ता भी मजबूत बनाए। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया भी राष्ट्रीय हित में यह ध्यान रखे कि उनकी रिपोर्टिंग धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को मजबूत बनाए।
दरअसल, कट्टरपंथ मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया का वह पहला कदम है, जो भोले नौजवानों को आतंक की राह पर बढ़ाता है। एक राष्ट्र के तौर पर हमें स्थिति की गंभीरता को स्वीकार करने और जल्द ही एक व्यावहारिक रणनीति बनाने की जरूरत है। किसी भी कट्टर विचारधारा के प्रलोभन से नौजवानों को बचाने के लिए उन्हें मानसिक स्तर पर मजबूत बनाया जाना जरूरी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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