नवाज पर फैसला
एक ऐतिहासिक मुकदमे के सारे तत्व इसमें शामिल थे- मौजूदा वजीर-ए-आजम व उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप थे; याचिकाकर्ता विरोधी जमातों की नुमाइंदगी कर रहे थे; मुकदमे की सुनवाई की कमान खुद मुल्क के...
एक ऐतिहासिक मुकदमे के सारे तत्व इसमें शामिल थे- मौजूदा वजीर-ए-आजम व उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप थे; याचिकाकर्ता विरोधी जमातों की नुमाइंदगी कर रहे थे; मुकदमे की सुनवाई की कमान खुद मुल्क के आला जज के हाथों में थी; और पूरा ट्रायल सुबूतों के आधार पर चला। और अंत में 3-2 के बहुमत से आला अदालत ने यही पाया कि पनामा पेपर्स मामले में इतने सुबूत नाकाफी हैं कि विपक्षी सियासी जमातें खुशियां मना सकें, मगर एक संयुक्त जांच टीम (जेआईटी) गठित करने का आदेश देकर उसने नवाज शरीफ व उनके परिजनों पर संदेह जरूर जाहिर किया। फैसला आते ही सरकार ने इसे अपनी जीत बताया और आधे-अधूरे मन से ही सही, पीटीआई ने भी वही मांग दोहराई कि वजीर-ए-आजम को तुरंत अपनी कुरसी खाली कर देनी चाहिए। बहरहाल, फैसला आने के चंद घंटे के भीतर उसकी पूरी पड़ताल संभव नहीं है; आने वाले दिनों में हम इसका पूरा अध्ययन करेंगे। मगर इसमेें एक विसंगति है, जिसको तुरंत पहचाना जा सकता है। असल में, जांच प्रक्रिया में सेना की खुफिया एजेंसियों को शामिल करना एक गौरतलब बात है और एक मिसाल भी, मगर इसे भविष्य के लिए सुखद नहीं माना जा सकता। जेआईटी में सैन्य खुफिया विभागों के अधिकारियों की मौजूदगी का मतलब है कि अदालत को जम्हूरी संस्थाओं पर विश्वास नहीं है। हमारा मानना है कि नागरिक मामलों का निपटारा नागरिक संस्थाओं के जरिये ही होना चाहिए। और अगर अदालत को नागरिक संस्थाओं पर ज्यादा विश्वास नहीं है, तो वह न्यायिक आयोग के गठन को आजाद थी। उधर, इमरान खान की रणनीति, खासतौर से इस्लामाबाद को जाम करने की धमकी भी गैर-मुनासिब थी, मगर यह सच है कि पाकिस्तान की सियासत में भ्रष्टाचार रच-बस गया है और इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। उम्मीद यही है कि यह फैसला सियासत में पारदर्शिता की अवाम की मांग को शायद हकीकत का रूप दे। नवाज शरीफ यकीनन कानूनी तौर पर चुने हुए नुमाइंदे हैं, मगर यह फैसला बताता है कि वह और उनका परिवार यह साबित करने में नाकाम रहा है कि जो पैसे उन्होंने बनाए हैैं, वे कानूनी तौर से जायज हैं।