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हड़ताल पर क्यों डटे कुछ डॉक्टर

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में 9 अगस्त को सरकारी आरजी कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर की रेप के बाद हत्या कर दी गई थी। इस घटना को एक महीना से ज्यादा बीत गया है, लेकिन पश्चिम...

हड़ताल पर क्यों डटे कुछ डॉक्टर
Pankaj Tomarप्रभाकर मणि तिवारी, वरिष्ठ पत्रकारTue, 10 Sep 2024 11:06 PM
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पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में 9 अगस्त को सरकारी आरजी कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर की रेप के बाद हत्या कर दी गई थी। इस घटना को एक महीना से ज्यादा बीत गया है, लेकिन पश्चिम बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट के बैनर तले इस मामले में न्याय की मांग कर रहे अस्पताल के जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन और काम बंद के कारण उपजा गतिरोध टूटने के बजाय लगातार तेज हो रहा है। इस आंदोलन के कारण अब तक 23 मरीजों की मौत हो चुकी है और 70 हजार से भी ज्यादा को समुचित इलाज नहीं मिल सका है। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में यह दावा किया है। इसके अलावा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में यह बात दोहराई है।
सोमवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी जूनियर डॉक्टरों से मंगलवार शाम पांच बजे तक काम पर लौटने को कहा था, लेकिन आंदोलनकारी डॉक्टरों ने साफ कर दिया है कि उनकी मांगें पूरी नहीं होने और इस मामले में न्याय नहीं मिलने तक आंदोलन जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि तय समय सीमा के भीतर काम पर लौटने वालों के खिलाफ राज्य सरकार कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं करेगी, मगर यदि डॉक्टर काम पर नहीं लौटे, तो सरकार की किसी कार्रवाई में वह हस्तक्षेप नहीं करेगा। डॉक्टर अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। जूनियर डॉक्टरों ने मंगलवार दोपहर को कोलकाता से सटे साल्टलेक इलाके में एक रैली निकालकर स्वास्थ्य भवन, जो स्वास्थ्य विभाग का मुख्यालय है, का घेराव किया। उनके हाथों में ‘वी डिमांड जस्टिस’ लिखी तख्तियां और पोस्टर तो थे ही, उनके हाथों में एक खोपड़ी भी थी। आंदोलनकारी डॉक्टरों की दलील थी कि यह खोपड़ी दिमाग का परिचायक है। इसका मकसद सरकार को यह संदेश देना है कि वह डॉक्टरों के इस आंदोलन के बारे में झूठ फैलाने के बजाय दिमाग से काम ले।
आंदोलनकारी डॉक्टरों का कहना है कि राज्य सरकार और सुप्रीम कोर्ट को यह बात समझनी चाहिए कि यह आम लोगों का आंदोलन है और मांगें पूरी नहीं होने तक इसके खत्म होने की कोई संभावना नहीं है। इस लंबे आंदोलन से राज्य की पहले से ही लचर स्वास्थ्य सेवाएं और बदहाल हो गई हैं। सरकारी अस्पतालों में मरीजों के इलाज का ज्यादातर काम इन जूनियर डॉक्टरों के ही जिम्मे होता है। पश्चिम बंगाल के दूरदराज के जिलों से रोजाना सैकड़ों मरीज इलाज के लिए कोलकाता के सरकारी अस्पतालों में पहुंचते हैं, लेकिन इस मुद्दे पर जारी गतिरोध के कारण उनको स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल रही हैं। नतीजतन दो-चार दिनों के इंतजार के बाद उनको खाली हाथ ही लौटना पड़ रहा है।
इन डॉक्टरों की दलील है कि उनका आंदोलन गैर-राजनीतिक है। बीच में भाजपा, सीपीएम और कांग्रेस ने इसमें शामिल होने की कोशिश जरूर की थी, लेकिन इन डॉक्टरों ने उनका समर्थन लेने से साफ इनकार कर दिया। सीबीआई जांच हो रही है, सर्वोच्च न्यायालय सुनवाई कर रहा है, इसके बावजूद आखिर जूनियर डॉक्टरों की इस नाराजगी की वजह क्या है? दरअसल, उनकी पांच मांगें अभी तक पूरी नहीं हो सकी हैं। ये लोग उस घटना के दोषियों की शिनाख्त कर उनको कड़ी से कड़ी सजा देने, सुबूत मिटाने की कोशिश करने वालों की पहचान करके उनको सजा देने, कोलकाता के पुलिस आयुक्त विनीत गोयल के इस्तीफे, राज्य के तमाम मेडिकल कॉलेजों, अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में तैनात डॉक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने व तमाम मेडिकल कॉलेजों में भयमुक्त लोकतांत्रिक माहौल तैयार करने की मांग कर रहे हैं। इसके साथ ही, उन्होंने स्वास्थ्य सचिव, चिकित्सा शिक्षा निदेशक और स्वास्थ्य निदेशक के इस्तीके की भी मांग उठाई है। इतनी मांगें पूरी होंगी, तभी डॉक्टर काम पर लौटेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के काम पर लौटने के निर्देश के बाद जूनियर डॉक्टरों के संगठन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि अगर राज्य सरकार मंगलवार शाम पांच बजे तक इन मांगों को पूरा नहीं करती है, तो यही माना जाएगा कि सरकार इस गतिरोध को दूर करने की इच्छुक नहीं है। ऐसे में, राज्य सरकार ही जिम्मेदार होगी।
डॉक्टरों का यह आंदोलन सरकार के लिए गले की फांस बन गया है। इलाज के अभाव में लोगों की मौत हो रही है। मुख्यमंत्री ने कोलकाता के पुलिस आयुक्त के इस्तीफे की डॉक्टरों की मांग का जिक्र करते हुए कहा है कि वह खुद इस्तीफा देना चाहते हैं, पर अगले महीने राज्य के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा के दौरान किसी अनुभवी अधिकारी का इस पद होना जरूरी है, ताकि कानून और व्यवस्था की स्थिति कायम रखी जा सके। ममता ने कोलकाता पुलिस को भी क्लीन चिट देकर आंदोलनकारी डॉक्टरों को और नाराज कर दिया है। डॉक्टरों ने अब आंदोलन के नारे को ‘वी वांट जस्टिस’ से बदलकर ‘वी डिमांड जस्टिस’ कर दिया है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि डॉक्टरों के इस आंदोलन के कारण पूरे राज्य में ममता सरकार की छवि खराब हो रही है। आम लोगों में यही संदेश जा रहा है कि राज्य सरकार और कोलकाता पुलिस की लापरवाही के मुद्दे पर डॉक्टरों के इस आंदोलन के कारण ही उनको स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित होना पड़ रहा है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद अब डॉक्टर अगर काम पर नहीं लौटते हैं, तो इस गतिरोध को दूर करने की जिम्मेदारी भी उसी पर आ जाएगी। अब देखना होगा कि शीर्ष अदालत क्या फैसला करती है। डॉक्टरों के लगातार तेज होते आंदोलन के कारण त्योहार के सीजन में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली ने सरकार को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। ऐसे में, ममता बनर्जी सरकार की उम्मीदें भी अब सुप्रीम कोर्ट पर ही टिकी हैं।
दूसरी ओर, आम लोग भी इस मुद्दे पर लगातार आंदोलन कर रहे हैं। ‘रिक्लेम द नाइट’ शीर्षक अपील के तहत बीते 14 अगस्त की आधी रात को जिस तरह राज्य के विभिन्न शहरों में बड़े पैमाने पर महिलाओं का जमावड़ा हुआ था, उसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती। इसी तरह, बीते रविवार को भी कोलकाता समेत पूरे राज्य में यही सब दोहराया गया। आम लोगों का इस तरह सड़कों पर उतरना भी सरकार के लिए सिरदर्द बन गया है, लेकिन फिलहाल उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता जूनियर डॉक्टरों का आंदोलन खत्म कर उनको काम पर लौटाना है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)