Hindi Newsओपिनियन Hindustan Opinion Column The meaning of Kejriwal exercise 15 May 2024

केजरीवाल की कवायद के मायने

अगले 15 दिनों के लिए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस आपसी रंजिश को भुलाकर एकजुट हो पाएंगी, तभी ‘इंडिया’ ब्लॉक अपने लिए उम्मीदें पाल सकता है। जब से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट...

Monika Minal राहुल वर्मा, फेलो, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, Tue, 14 May 2024 09:19 PM
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केजरीवाल की कवायद के मायने

जब से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने 1 जून तक के लिए अंतरिम जमानत दी है, तब से ही अटकलों का बाजार गरम है कि विशेषकर दिल्ली, पंजाब और हरियाणा के चुनावी नतीजों पर आप संयोजक का प्रचार अभियान क्या असर डालेगा? दिल्ली और हरियाणा में एक साथ 25 मई को मत डाले जाएंगे, जबकि पंजाब में 1 जून को चुनाव होगा।
आम आदमी पार्टी बीते कुछ समय से तेजी से उभर रही थी। खासतौर से 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने के बाद कई हलकों में ऐसा लग रहा था कि 2024 के आम चुनाव में वह मजबूती से सामने आएगी। इसकी एक वजह यह भी थी कि दिसंबर, 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन न करने के बावजूद उसे 15 प्रतिशत के आसपास मत मिले थे। मगर 2023 के विधानसभा चुनावों से जो राजनीतिक परिदृश्य बना, उससे पंजाब और दिल्ली को छोड़कर शेष जगहों पर आप के प्रति आकर्षण कम नजर आया। 
दिल्ली में यह दल 2015 से ही अनवरत सत्ता में हैै, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में वह तीसरे नंबर की पार्टी थी। हालांकि, 2023 के दिल्ली निगम चुनावों में उसने जीत दर्ज की है। वहीं, पंजाब में 2019 के आम चुनाव में उसे महज एक सीट मिली थी, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में धमाकेदार प्रदर्शन करते हुए उसने 42 फीसदी मत हासिल किए और सरकार भी बनाई। अभी वह पंजाब में सभी 13 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसका वहां किसी दल से समझौता नहीं है। जबकि, शेष भारत में वह ‘इंडिया ब्लॉक’ से साथ है। दिल्ली में आप चार और कांग्रेस तीन संसदीय सीटों पर लड़ रही हैै, जबकि हरियाणा में यह अनुपात एक और नौ का है। ऐसे में, सवाल प्रासंगिक है कि इन राज्यों में अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी या अंतरिम जमानत से क्या कोई असर पड़ने वाला है? 
निस्संदेह, केजरीवाल की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है, खासकर दिल्ली और पंजाब में। जमानत पर बाहर आने के बाद से वह लगातार रैलियां कर रहे हैं और चुनावी हवा को अपने पक्ष में करने की कोशिश में भी हैं। उन्होंने मतदाताओं को 10 गारंटी भी दी है। हालांकि, इनमें से चार गारंटी- दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा, देश में 24 घंटे बिजली का इंतजाम व गरीबों को मुफ्त बिजली, हर बच्चे की मुफ्त व अच्छी शिक्षा और गांव-मोहल्ले में मोहल्ला क्लीनिक व जिले में मल्टी स्पेशिएलिटी अस्पताल का निर्माण दिल्ली सरकार के पुराने वायदों की ही अगली कड़ी है। बाकी चार गारंटी- एक साल में दो करोड़ रोजगार, भ्रष्टाचार का अंत, कारोबारियों के लिए अच्छी व्यवस्था और स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों के अनुसार किसानों को फसलों के वाजिब दाम जैसे वायदे भी कमोबेश सभी दल करते ही हैं। 
हां, शेष दो गारंटी ऐसी जरूर है, जिस पर आप ने पहले अपने विचार नहीं रखे थे। इनमें से एक है, चीन से निपटने के लिए सेना को खुली छूट देना और दूसरी है, अग्निवीर योजना का अंत। हालांकि, आप ने भले पहली बार राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर अपनी बात बतौर गारंटी रखी है, लेकिन इन मुद्दों की चर्चा भी देश की विपक्षी पार्टियां करती रही हैं। इसीलिए यह देखना होगा कि अपनी गारंटी से आप इन राज्यों में अपने पक्ष में महौल बना पाती है या नहीं?
यहां कांग्रेस को लेकर उसकी दुविधा भी उल्लेखनीय है। पिछले आम चुनाव में दिल्ली का करीब 55 प्रतिशत मत भाजपा को मिला था। इस बार कांग्रेस और आप के एक साथ आ जाने से कागज पर तो यह गठबंधन मजबूत दिख रहा है, लेकिन जमीनी स्तर पर आपसी सामंजस्य पर सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने पिछले दिनों कुछ इसी तरह के आरोप लगाकर भाजपा का दामन थाम लिया। ऐसे में, अरविंद केजरीवाल बेशक एक तरफ अपने जेल जाने की सहानुभूति बटोरने और दूसरी तरफ, भाजपा, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व योगी आदित्यनाथ पर हमलावर होकर चुनावी अभियान को धार देना चाह रहे हैं, लेकिन जमीन पर वह आप और कांग्रेस के बीच सामंजस्य बनाकर यहां का मुकाबला कितना कठिन बना सकेंगे, इस पर सबकी नजर है।
कांग्रेस को लेकर एक पेचीदा सवाल यह भी है कि क्या वह चाहेगी कि विधानसभा के साथ-साथ लोकसभा में भी आप एक मजबूत दावेदार बनकर उभरे, क्योंकि यह जगजाहिर है कि दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस की गिरावट की बड़ी वजह आप का उभार है। यह सवाल इसलिए भी कांग्रेस को मथ रहा होगा, क्योंकि पिछले आम चुनाव में मत प्रतिशत के हिसाब से दिल्ली की वह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी। इसी द्वंद्व से उसे पंजाब में भी गुजरना है और हरियाणा में भी। पंजाब में 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 13 में से आठ सीटें जीती थीं, जबकि शिरोमणि अकाली दल व भाजपा को दो-दो सीटें मिली थीं। वहीं आप को एक सीट मिली थी। पंजाब विधानसभा चुनावों में भारी जीत के बाद आप यही चाहेगी कि लोकसभा में भी उसका कद बढ़े। जाहिर है, यदि ऐसा होता है, तो वहां कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। लिहाजा, सवाल यही है कि अगले 15 दिनों के लिए आप और कांग्रेस आपसी रंजिश को भुलाकर कितना एकजुट हो पाएंगी? तभी ‘इंडिया’ ब्लॉक भी अपने लिए उम्मीदें पाल सकता है।
रही बात भाजपा की, तो भ्रष्टाचार और कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर वह आप पर हमलावर है। हालांकि, उसके लिए भी चुनौतियां कम नहीं हैं। उसकी रणनीति पंजाब की अपनी दोनों सीटें बचाने के साथ-साथ हरियाणा की सभी 10 और दिल्ली की सभी सात सीटों पर पुनर्वापसी की होगी। दिल्ली की चुनावी लड़ाई आप और कांग्रेस गठबंधन बन जाने से बहुत आसान नहीं रह गई है, जबकि हरियाणा में किसानों का मुद्दा अब तक हावी है, जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ उसका गठबंधन टूट चुका है और बीरेंद्र सिंह जैसे कद्दावर जाट नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। लिहाजा, भाजपा यहां अपने नुकसान को कम से कम करने की रणनीति पर काम कर रही होगी। 
स्पष्ट है, अगले 15 दिनों का प्रचार अभियान दिल्ली के मुख्यमंत्री के लिए निर्णायक साबित होने वाला है। अगर आम आदमी पार्टी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी, तो अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता सवालों के घेरे में आ सकती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
 

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