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गिफ्ट और ग्लैमर के दौर में करवाचौथ

आज करवाचौथ है। 80 साल की उम्र में पीछे पलटकर इस त्योहार को याद करती हूं, तो स्मृतियों की आलमारी से कई सुनहरी यादें आंखों के सामने रूप धरकर घूमने लगती हैं। मैं जम्मू में अपने माता-पिता, भाई-बहनों के...

गिफ्ट और ग्लैमर के दौर में करवाचौथ
पद्मा सचदेव, चर्चित साहित्यकारThu, 17 Oct 2019 12:07 AM
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आज करवाचौथ है। 80 साल की उम्र में पीछे पलटकर इस त्योहार को याद करती हूं, तो स्मृतियों की आलमारी से कई सुनहरी यादें आंखों के सामने रूप धरकर घूमने लगती हैं। मैं जम्मू में अपने माता-पिता, भाई-बहनों के साथ रहती थी। हमारा सामूहिक परिवार था। कोई आठ-दस साल की थी, जब मैंने गौर किया कि मेरे घर और पड़ोस की ब्याहता औरतों को करवाचौथ का बड़ा इंतजार रहता है, क्योंकि इस मौके पर उनके लिए नए-नए कपड़े खरीदे जाते थे। हम लड़कियों को भी नए-नए कपड़े मिलते थे। वैसे तो करवाचौथ के त्योहार का संबंध विवाहित महिलाओं से है। इस दिन वे निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चांद देखकर ही अपना व्रत तोड़ती हैं। लेकिन हमारे जम्मू में कई अविवाहित लड़कियां भी चुपके से यह व्रत रखती थीं। मोहल्ले की बड़ी-बूढ़ी दादियों को अगर पता चल जाता, तो वे खूब ताने मारतीं कि इसलिए व्रत रखा है, ताकि अच्छा पति मिले।

करवाचौथ से एक रात पहले खूब मस्ती होती थी। नए-नए कपडे़ पहनकर औरतें गोलाकार झुंड बना रात भर ढोलक के साथ लोकगीत गाती रहती थीं। घर में यदि कोई नई बहू आई हो, तो उसके लिए यह त्योहार खास मायने रखता था। उसके मायके से कपडे़, गहने, मिठाई, फल-फूल, खिलौने और ढेर सारा सामान आता था। पीतल की बड़ी थाल में सुहाग की चूड़ियां, फूल, रोली, चंदन आदि को महिलाओं-लड़कियों के गोलकार झुंड में सजाकर रखा जाता। उस रात हम खूब मिठाई और फल खाते थे, ताकि अगले दिन अच्छी तरह से उपवास रख सकें। सामूहिकता का यह जश्न रात भर चलता। पूरी रात औरतें गीत गाती रहतीं। हमारे लिए तो यह आयोजन जैसे एक ट्रेनिंग की तरह होता था।

हम लड़कियों को दरअसल बचपन से ही यह एहसास कराया जाता था कि माता-पिता के जिस घर में हम पैदा हुए हैं, यह हमारा घर नहीं है। इसके लिए हमारे यहां कई तरह के लोकगीत गाए जाते थे। एक लोकगीत में छोटी लड़की अपनी मां से कहती है- ‘मां, तुम्हारे महल की दीवारें बहुत ऊंची हैं, हमारा डोला बाहर नहीं निकल पाएगा।’ तब मां कहती है- ‘तुम्हारा डोला निकलवाने के लिए हम महल के बीच की ईंटें निकलवा देंगे, ताकि तुम्हारा डोला चला जाए।’ बेटी कहती है- ‘मां, मैं ससुराल नहीं जाना चाहती। इसी घर में तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं।’ तब मां उसे जवाब देती है- ‘मुझे भी अपने माता-पिता का घर छोड़कर यहां आना पड़ा था, तुम्हें भी एक दिन अपने ससुराल जाना पड़ेगा। यही रीत है।’

करवाचौथ में गाए जाने वाले लोकगीतों के जरिए हम छोटी लड़कियों को यह सुनहरा ख्वाब दिखाया जाता था कि हमारा दूल्हा कहीं न कहीं होगा। वह घोडे़े पर सवार होगा। उसके हाथों में तलवार होगी और गले में रुपयों का हार होगा। इस तरह, हमारे सामने ससुराल की एक बड़ी मोहक तस्वीर उभरती थी। हम सोचते थे कि हमें भी एक दिन एक दूल्हा मिलेगा। वह बहुत प्यार करेगा। साथ ही यह सोचकर दुख भी होता था कि मां-बाप का घर छोड़कर जाना पड़ेगा। आज सोचती हूं कि उस वक्त की माएं अपनी बेटियों की शादी के लिए उसके बचपन से ही तरह-तरह के गहने, कपड़े और जरूरत के अन्य सामान जमा करके रखती थीं, ताकि ब्याह के वक्त उसे यह सब देकर विदा कर सकें।

जब मैं जम्मू से बाहर आई और आकाशवाणी से जुड़ी, तो वक्त के साथ करवाचौथ के इस त्योहार का स्वरूप बदलते देखा। पिछले कई दशकों से मैं देश की राजधानी दिल्ली में ही हूं। यहां देखती हूं कि पति की लंबी उम्र की कामना से जुड़े इस त्योहार को बाजार ने काफी कुछ बदल दिया है। हिंदी फिल्मों ने भी करवाचौथ को ग्लैमराइज किया है। कई लोग बताते हैं कि आजकल की लड़कियां यह कठिन उपवास तो नहीं रखतीं, अलबत्ता नए-नए गिफ्ट खूब लेती हैं।
 
हमारा समाज पारंपरिक रूप से पुरुष सत्तात्मक था। महिलाओं को अपने पति और सास-ससुर पर निर्भर रहना पड़ता था। वे घरवालों से छिपकर करवाचौथ के लिए अलग से खरीदारी करती थीं। लेकिन अब स्त्री-पुरुष के रिश्ते बदल गए हैं। महिलाएं अब खुद कामकाजी हो गई हैं। नौकरी करती हैं। पैसे कमाती हैं। इसलिए करवाचौथ या अन्य त्योहार भी वे अपनी इच्छा के अनुसार मनाने लगी हैं। जाहिर है, ज्यादा पैसे कमाने वाली या अमीर महिलाएं महंगे उपहारों का लेन-देन करती हैं। आजकल तो नए मकान, नई कार, महंगी ज्वैलरी और लग्जरी सामान करवाचौथ की गिफ्ट में शामिल हो गए हैं। सुखद बात यह है कि कमाऊ  बहुएं करवाचौथ पर अपनी बूढ़ी सास को भी गिफ्ट देने लगी हैं।

कुछ आजाद ख्याल स्त्रियां आजकल इस त्योहार को पुरुष सत्तात्मक समाज का पोषक कहकर इसका विरोध करने लगी हैं। लेकिन मेरा मानना है कि पति-पत्नी के आपसी संबंधों को मजबूत करने वाले इस त्योहार के साथ हमारी सदियों पुरानी आस्था और भावनाएं जुडी हुई हैं। करवाचौथ के बहाने कामकाजी और अन्य स्त्रियों की भागदौड़ भरी जिंदगी में साल में एक ऐसा दिन आता है, जब वे अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिए दिन भर उपवास रखती हैं, तो इसमें हर्ज क्या है?

त्योहार कोई भी हो, यदि वह पति-पत्नी के रिश्ते को मधुर बनाने का सशक्त माध्यम है, तो यह अच्छी बात है। इसी तरह, करवाचौथ स्त्रियों की एकता और सामूहिकता का भी त्योहार है। घर, परिवार और मोहल्ले की महिलाएं समूह में इस त्योहार को मनाती हैं और इसकी तैयारियों के दौरान अपने सुख-दुख भी साझा करती हैं। इस तरह करवाचौथ का त्योहार स्त्रियों को जोड़ने, समाज में उनकी अहमियत को स्थापित करने में भी अहम भूमिका निभाता है। 
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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