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सियासी रंजिश और बदले की राजनीति

बीती 11 सितंबर को आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू अमरावती के अपने घर में एहतियातन ‘नजरबंद’ कर दिए गए। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि पास के गुंटूर जिले में कुछ ग्रामीणों को...

सियासी रंजिश और बदले की राजनीति
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बीती 11 सितंबर को आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू अमरावती के अपने घर में एहतियातन ‘नजरबंद’ कर दिए गए। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि पास के गुंटूर जिले में कुछ ग्रामीणों को गांव से बाहर निकालने के विरोध में आयोजित रैली में भाग लेने के लिए वह जाने वाले थे। उन्हें और उनके बेटे नारा लोकेश को जहां घर में ही रोके रखा गया, वहीं तेलुगु देशम पार्टी के कई अन्य नेताओं, सांसदों और पूर्व मंत्रियों को अलग-अलग जगहों पर हिरासत में लिया गया। सियासी प्रतिशोध की भावना से की जा रही ऐसी कोशिशों की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आंध्र प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष कोडेला शिव प्रसाद को फर्नीचर और एसी की चोरी के आरोप में ऐसा फंसाया गया कि सोमवार को उन्होंने आत्महत्या कर ली।
 

यह संभवत: पहला मौका था, जब सूबे में एक पूर्व मुख्यमंत्री और उनके पार्टी-सहयोगियों के खिलाफ इस तरह की अभूतपूर्व कठोर कार्रवाई की गई; वह भी इसलिए कि वे एक राजनीतिक रैली में शामिल होना चाहते थे। प्रशासन का मानना था कि इस विरोध-प्रदर्शन से राज्य में ‘कानून-व्यवस्था’ की समस्या पैदा हो सकती थी। मगर असलियत में, नए मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी तो नायडू से बदला ले रहे थे, जिन्हें वह 2012 में भ्रष्टाचार के मामले में अपने जेल जाने की वजह मानते हैं। साल 2017 में एक चुनावी सभा में उन्होंने कहा भी था कि ‘जितने पाप चंद्रबाबू नायडू ने किए हैं, उसको देखते हुए यदि बीच सड़क पर उन्हें गोली मार दी जाए, तो इसमें कोई बुराई नहीं है’। इसे महज चुनावी बयान कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। जगन चुनाव जीतने के बाद अपनी नापसंदगी को उस स्तर तक ले जा रहे हैं, जहां उनका अपना जनादेश खतरे में आ सकता है।
 

जगन मोहन ने पहले नायडू की ‘जेड सिक्योरिटी’ घटाई, और अब हवाई अड्डों पर उनकी तलाशी ली जाने लगी है। यह शायद बदला लेने का जगन का अपना तरीका है, क्योंकि नायडू सरकार ने 2017 में उन्हें हवाई अड्डे पर हिरासत में लेकर विशाखापट्टनम में घुसने से रोक दिया था। बतौर मुख्यमंत्री जगन मोहन ने नायडू के रिवर फ्रंट बंगले को गिराने का आदेश दिया और नई राजधानी अमरावती को लगभग बिसरा दिया है। इससे नई राजधानी में निवेश करने वाले सैकड़ों निवेशक अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। जगन ने प्रस्तावित औद्योगिक क्लस्टर विकास को चार अलग-अलग शहरों में ले जाने का भी फैसला किया है, जैसे आईटी हब को विजयवाड़ा ले जाया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक यह तो मान रहे थे कि दोनों पक्ष एक-दूसरे के कटु विरोधी हैं, लेकिन प्रतिशोध की यह आग बयानबाजी से इतनी आगे बढ़ जाएगी, इसका अंदाजा उन्हें भी शायद नहीं था।
 

मुख्यमंत्री जगन ने नायडू पर 1.34 लाख करोड़ रुपये के घपले का आरोप लगाया है और कहा है कि विभिन्न परियोजनाओं को मंजूरी देते हुए उन्होंने ये रकम गलत तरीके से कमाए हैं। जगन ने कुछ परियोजनाओं को रद्द भी कर दिया है, तो कुछ की नई निविदाएं जारी की हैं। हालांकि उनके कुछ प्रयासों पर केंद्र सरकार ने पानी फेर दिया है और राष्ट्रीय परियोजनाओं में यथास्थिति बनाए रखने की सलाह उन्हें दी है। 
 

निश्चय ही, जगन अभी अपनी सफलता से दूर हैं,वह खुद भ्रष्टाचार के कई मामलों में आरोपी हैं। सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा शुरू की गई मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के कई मामलों की जांच में उनके साथ कभी भी कुछ बुरा हो सकता है। जिस तरह आईएनएक्स मीडिया मामले में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति चिदंबरम जांच के घेरे में हैं, ठीक उसी तरह जगन मोहन रेड्डी भी विभिन्न व्यावसायिक सौदों में गैर-कानूनी लेन-देन के आरोपी हैं। उनके पिता पर भी ऐसे आरोप थे। असल में, जब वाईएसआर रेड्डी सूबे के मुखिया थे, तो जगन बेंगलुरु में अपना कारोबार चला रहे थे। सीबीआई और ईडी तब के कुछ व्यावसायिक सौदों की जांच कर रही हैं, क्योंकि जगन की कंपनियों में निवेशकों ने कथित रूप से इसलिए निवेश किया, ताकि उनके मुख्यमंत्री पिता से वे कुछ फायदा ले सकें। इन्हीं मामलों को लेकर साल 2012 में जगन को जेल की हवा खानी पड़ी थी। 
 

उधर, पड़ोसी राज्य कर्नाटक में वोक्कालिगा नेता डीके शिवकुमार मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ईडी की हिरासत में हैं। ईडी ने अदालत को बताया है कि शिवकुमार के पास करोड़ों की ‘बेनामी’ संपत्ति है। चुनाव आयोग के हलफनामों में घोषित की गई उनकी पारिवारिक संपत्ति (पत्नी और बेटी की संपत्ति समेत) साल 2004 में सात करोड़ रुपये से बढ़कर 2013 में 251 करोड़ हो गई। साल 2018 में यह 840 करोड़ रुपये थी। शिवकुमार जांच एजेंसियों के निशाने पर तब आए, जब 2018 के राज्यसभा चुनाव में वह सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल की जीत के लिए  44 विधायकों को गुजरात से बाहर निकाल लाए। इन विधायकों को अपने पाले में करने की विपक्षी भाजपा की रणनीति को शिवकुमार ने ध्वस्त कर दिया था। कांग्रेस के संकटमोचक के रूप में उनकी कुशलता इस साल उस वक्त भी सामने आई, जब बेंगलुरु से मुंबई ले जाए गए अनेक विधायकों को वह पार्टी में वापस लाने में सफल रहे।
 

इसी तरह, तमिलनाडु में चिदंबरम के अलावा, टीटीवी दिनाकरन के खिलाफ भी जांच एजेंसियों की कार्रवाई तब शुरू हुई, जब वह ओ पन्नीरसेल्वम सरकार को गिराने की कोशिश कर रहे थे। इसके बाद पन्नीरसेल्वम को अंतत: ई पलानीसामी के लिए कुरसी खाली करनी पड़ी। हालांकि पन्नीरसेल्वम और पलानीसामी के करीबियों पर भी आयकर छापे मारे गए थे, पर न जाने क्यों मामला ठंडा पड़ गया, और अब वे राज्य में ऐसी सरकार चला रहे हैं, जो भाजपा के साथ अघोषित गठबंधन से चल रही है। 
 

चंद्रबाबू नायडू और वाईएसआर परिवार की जंग का चरित्र कटु राजनीतिक प्रतिशोध वाला है, क्योंकि इनकी दुश्मनी दशकों पुरानी है। राजनीतिक वर्चस्व हासिल करने के लिए लड़ी जा रही यह लड़ाई अब भद्दे स्तर तक पहुंच गई है। अन्य दक्षिणी नेता, जैसे डी शिवकुमार और चिदंबरम मनी लॉन्ड्रिंग में कैद में हैं और जांच एजेंसियों की शिकायत है कि ये दोनों जांच में मदद नहीं कर रहे, इसलिए इन्हें अधिक दिनों तक हिरासत में रखे जाने की जरूरत है। चाहे केंद्र हो या राज्य, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी जांच एजेंसियों की जद में घिर चुके हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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