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सैन्य राहों पर महिलाओं की नई मंजिल

सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन देने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है। इस आदेश का लंबे समय से इंतजार था। इसके खिलाफ एक तर्क यह दिया जाता रहा कि पुरुष जवानों को महिला अफसर से आदेश लेने में...

सैन्य राहों पर महिलाओं की नई मंजिल
ऋषिता आचार्य, लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त)Mon, 17 Feb 2020 11:03 PM
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सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन देने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है। इस आदेश का लंबे समय से इंतजार था। इसके खिलाफ एक तर्क यह दिया जाता रहा कि पुरुष जवानों को महिला अफसर से आदेश लेने में हिचकिचाहट होती है। दलील दी जा रही थी कि हमारा ग्रामीण समाज अब भी पुरुषवादी सोच रखता है और पुरुष मानसिकता महिलाओं को बतौर अफसर स्वीकार नहीं कर पाती। मगर असलियत इसके बिल्कुल अलग है। 13 साल मैंने सेना में रहकर देश की सेवा की है। इन वर्षों में कभी ऐसा नहीं लगा कि किसी जवान को मेरे आदेश से कोई परेशानी हुई या उसने उसे स्वीकार न किया हो। हमारी सेना विश्व की इतनी अच्छी संस्था है कि ऐसी किसी चीज के बारे में आप सोच ही नहीं सकते। अगर आप एक बेहतर अफसर हैं, तो आपसे किसी जवान को कोई दिक्कत नहीं आती, बल्कि वे हमेशा सहयोग करते हैं। पुरुषवादी मानसिकता कहीं भी आडे़ नहीं आती, और न ही महिला अफसर होने के नाते आपको वहां कमतर आंका जाता है। रही बात जवानों के आदेश न मानने की (जो होती नहीं है), तो यह बात किसी के साथ हो सकती है; फिर चाहे वह पुरुष अफसर हो या फिर महिला अफसर।

असल में, स्थाई कमीशन न मिलने के कारण कुछ अन्य तरह की दिक्कतें पेश आती थीं। सबसे पहली दिक्कत तो यह कि महिला अफसरों को यह पता नहीं होता था कि 14 साल तक सेवा देने के बाद उन्हें अपने पुरुष समकक्षों की तरह आगे मौका मिलेगा या नहीं? वे एक उलझन में जीती थीं। मैंने खुद 13 साल तक सेना में सेवा दी है। पर इसके बाद मैं एक कॉरपोरेट कंपनी में शामिल हो गई। इसकी वजह यही थी कि अगर मैं और ज्यादा इंतजार करती, तो संभव है कि इस तरह के अवसर मुझे नहीं मिल पाते। और मेरे लिए वे तमाम दरवाजे भी बंद हो जाते, जहां मैं बेहतर कर सकती थी। यह समस्या दूसरी तमाम महिला अफसरों के सामने भी आती रही है। जब आपको यह पता नहीं होगा कि आपकी नौकरी स्थाई है या नहीं, तो इस तरह की समस्या आएगी ही। सुखद बात यह है कि अब ऐसा नहीं हो सकेगा। अब महिलाएंं भारतीय सेना को नौकरी के एक अवसर के रूप में नहीं, बल्कि एक करियर के रूप में लेंगी। अपना पूरा कार्यकाल करेंगी।

सुप्रीम कोर्ट का सोमवार का आदेश देर से जरूर आया है, मगर दुरुस्त आया है। वायु सेना और नौसेना ने काफी पहले से ही महिलाओं को स्थाई कमीशन देना शुरू कर दिया था। वहां महिलाएं वे तमाम काम करती हैं, जो पुरुष अफसर करते हैं। थल सेना में कॉम्बैट आम्र्स में ऐसा नहीं है। अब सेना में स्थाई कमीशन मिलने के बाद बतौर करियर अपनी सेवा देने वाली महिलाएं बीच में अपनी सेवा छोड़ने से बचेंगी। उन्हें अपने पुरुष समकक्षों के समान अवसर मिलेंगे। पेंशन मिलेगी। देखा जाए, तो उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में सर्वोच्च अदालत का यह आदेश मील का पत्थर साबित होगा। 

बेशक यह फैसला उनके स्थाई कमीशन को लेकर आया है और इसमें युद्धक्षेत्र में उनके काम करने को लेकर कुछ ठोस नहीं कहा गया है, लेकिन यह आदेश भरोसा जगाता है। उम्मीद है कि जल्द ही महिलाएं दुश्मनों से मोर्चा लेने की सबसे अगली कतार में खड़ी दिखेंगी। दरअसल, सेना के सभी युद्धक अंग अपनी-अपनी जरूरतों के हिसाब से कोर्स कराते हैं। चूंकि अब तक युद्धक अंगों में इन्फेंटरी, आर्मर्ड और आर्टिलरी में महिलाओं को कमीशन नहीं दी गई है, इसलिए महिलाएं इनमें कोर्स कर ही नहीं सकतीं। बाकी सभी अंगों में वे कमीशंड होती रही हैं। ट्रेनिंग खत्म करते ही बतौर लेफ्टिनेंट उनकी नियुक्ति होती थी। अब स्थाई कमीशंड होते ही पुरुषों के समान लेफ्टिनेंट कर्नल के ऊपर पदानुक्रम में तरक्की पाने का उन्हें मौका मिलेगा। उनमें नए उत्साह का संचार होगा। जोश-जुनून के साथ वे आगे बढ़ने के बारे में सोचेंगी।

थल सेना में इन्फेंटरी, आर्मर्ड और आर्टिलरी को छोड़कर बाकी सभी अंगों के सहयोगी सदस्य के तौर       पर महिलाएं अशांत क्षेत्रों में अपनी सेवा देती रही हैं। इसलिए यह मानसिकता कि महिलाएं युद्ध भूमि में सफल नहीं हो सकेंगी, गलत है। मैं इससे इत्तफाक नहीं रखती। सेना में एक मुहावरा काफी चर्चित है, शांतिकाल में  सैन्य अभ्यासों की कहीं ज्यादा जरूरत होती है। हमारी फौज भी ऐसा ही करती है। तपते रेगिस्तान हों या ठंडे प्रदेश, महिलाएं इन सैन्य अभ्यासों में बराबर शामिल होती        रही हैं। इन अभ्यासों में ठीक उसी तरह के माहौल पैदा किए जाते हैं, जैसे  युद्ध में होते हैं। यहां तो महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अभ्यास करती हैं। कहीं भी शारीरिक दुर्बलता का एहसास नहीं होता। तो फिर कॉम्बैट आम्र्स में उनका प्रवेश वर्जित क्यों हो? अपने कार्यकाल में मैं भी तमाम तरह के अभ्यासों में शामिल हुई, और कहीं भी मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई। हां, महिला होने के नाते कभी कुछ अलग जरूरत महसूस हो सकती है, लेकिन उसे महिलाएं कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने देतीं। याद रखिए, बलिदान देने में हम महिलाएं कभी पीछे नहीं रही हैं।

कुल मिलाकर, सोमवार का सुप्रीम कोर्ट का आदेश महिलाओं के लिए भविष्य की नई राह दिखाता है। उसने सही कहा गया है कि महिलाओं को लेकर हमें अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए। स्थाई कमीशन देकर जिस तरह सेना में सेवा दे रही महिलाओं को एक समान मौके दिए गए हैं, उसी तरह उम्मीद है कि कॉम्बैट आम्र्स में भी उन्हें शामिल किया जाएगा, जहां वे कहीं से भी कमतर साबित नहीं होंगी। 
(ये लेखिका के अपने विचार हैं) 

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