बजट में अनेक खोट और अधूरी कोशिशें
बजट 2024-25 पर लोकसभा चुनाव परिणाम की स्पष्ट छाप है। जहां मोदी सरकार ने अपनी कुर्सी और गठबंधन बचाने के लिए सिर्फ दो राज्यों को लुभाने की कोशिश की, वहीं 10 साल बाद पहली बार नौकरी की बात प्रमुखता से...
बजट 2024-25 पर लोकसभा चुनाव परिणाम की स्पष्ट छाप है। जहां मोदी सरकार ने अपनी कुर्सी और गठबंधन बचाने के लिए सिर्फ दो राज्यों को लुभाने की कोशिश की, वहीं 10 साल बाद पहली बार नौकरी की बात प्रमुखता से की गई है। बजट भाषण में आठ बार जॉब (नौकरी), 32 बार एम्प्लॉयमेंट (रोजगार) शब्द बोला गया। केंद्र सरकार ने बेरोजगार युवाओं का आक्रोश समझकर उन्हें अपने पाले में करने की कोशिश की है, मगर इस कोशिश में भी खोट है।
असलियत यह है कि जिस देश में 60 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है, वहां प्रधानमंत्री बेरोजगारी की महामारी को स्वीकारना ही नहीं चाहते हैं। बजट से दो दिन पहले तक प्रधानमंत्री कह रहे थे कि हमने आठ करोड़ नौकरियां दे दीं। ये नौकरियां किसको, कहां, कब और कैसे दी गईं, इसका कोई विवरण तो है नहीं। यही नहीं, सरकार रोजगार सृजन को लेकर कितनी गंभीर है, इसका प्रमाण बार-बार पीएलएफएस के आंकड़े से बेरोजगारी कम सिद्ध करने की विफल कोशिश से भी मिलता है। 9.2 प्रतिशत बेरोजगारी दर को 3.2 प्रतिशत सिद्ध करने से अपने मन को तो बहलाया जा सकता है, पर समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
वित्त मंत्री ने कांग्रेस की ‘पहली नौकरी पक्की’ स्कीम को कॉपी पेस्ट करने का अधूरा प्रयास तो किया, मगर स्कीम को 5,000 रुपये प्रति महीना, 500 टॉप कंपनियों और एक करोड़ लोगों तक सीमित रखा। बजट में युवाओं को लेकर घोषणा की गई कि सरकार पहली बार नौकरी करने वाले लोगों का एक महीने का वेतन देगी, पर यह सुविधा सिर्फ नए कर्मचारियों के लिए है। विशेषज्ञों का मानना है कि कंपनियों को ईपीएफओ योगदान के लिए 2 साल तक प्रतिमाह 3,000 रुपये मिलने वाली रकम से युवाओं को प्रत्यक्ष कोई फायदा नहीं होगा। इन योजनाओं में व्यापक सोच की कमी है। टुकड़ों में किए गए फैसलों से रोजगार सृजन नहीं होगा।
आखिर रोजगार का चक्र टूटा क्यों और उसे दोबारा पटरी पर कैसे लाया जा सकता है? 8.2 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि की दर में अगर उपभोग वृद्धि मात्र चार प्रतिशत के पास है, कृषि वृद्धि 1.4 प्रतिशत है और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर शिथिल रहेगा, तो नौकरियां कहां से बनेंगी? जब उपभोग और मांग बढ़ेगी, तभी उत्पादन व निवेश बढ़ेगा, जिसके बाद ही रोजगार सृजन होगा। सरकार को हवा-हवाई दावों के बजाय सबसे पहले खपत बढ़ानी होगी।
इस बार अपनी सरकार बचाने के लिए सरकार ने बजट को आंध्र प्रदेश और बिहार पर केंद्रित कर दिया। बिहार को करीब 60 हजार करोड़ और आंध्र प्रदेश को 15 हजार करोड़ रुपये दिए गए हैं। सहकारी संघवाद का राग अलापने वालों ने देश के बड़े राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल के लिए इस बजट में कुछ भी खास नहीं दिया है। क्या इन राज्यों की देखभाल की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की नहीं है? हिमाचल प्रदेश के आपदाग्रस्त लोगों को ऋण के अतिरिक्त क्या और सहायता मिलेगी इस केंद्रीय बजट से?
कृषि का बजट कुल बजट के अनुपात में घटाकर 3.15 प्रतिशत कर दिया गया है। शिक्षा पर खर्च कम किया जा रहा है। सरकार ने कोरोना जैसी महामारी से भी कुछ नहीं सीखा। स्वास्थ्य बजट लगातार घटाया जा रहा है। रक्षा बजट जो पूरे बजट का पिछले साल 9.6 प्रतिशत था, उसे इस साल 9.4 प्रतिशत कर दिया गया है। देश में आए दिन हो रहे रेल हादसों के बावजूद बजट में रेलवे की सुरक्षा और कवच का कोई जिक्र नहीं है।
कुल मिलाकर, इस कुर्सी बचाओ बजट से युवा, किसान, मध्यम वर्ग की अपेक्षाओं पर पानी फेरने का ही काम हुआ है। खोखले दावों से रोजगार नहीं पैदा होगा, इसे समझने के लिए बेरोजगारी की समस्या को स्वीकारना होगा, पर सरकार ऐसा करने के मूड में नहीं है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)