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एक बड़ी जीत के बाद की संभावनाएं

बुधवार को भारत ने पाकिस्तान पर एक शानदार कानूनी जीत हासिल की, जब इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) ने कुलभूषण जाधव मामले में उसके सभी दावे को सही ठहराया। इस कोर्ट में भारत का अब तक का अनुभव धूप-छांव...

एक बड़ी जीत के बाद की संभावनाएं
टी सी ए रंगाचारी, पूर्व राजनयिकFri, 19 Jul 2019 12:32 AM
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बुधवार को भारत ने पाकिस्तान पर एक शानदार कानूनी जीत हासिल की, जब इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) ने कुलभूषण जाधव मामले में उसके सभी दावे को सही ठहराया। इस कोर्ट में भारत का अब तक का अनुभव धूप-छांव जैसा रहा है। जाधव मामले से पहले यहां तीन बार भारत और पाकिस्तान आमने-सामने आ चुके हैं। पहली बार 1971 में, जब अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन द्वारा पाकिस्तान के हक में दिए गए फैसले के खिलाफ भारत ने अर्जी दी थी। अंतरराष्ट्रीय अदालत ने तब भारत का दावा खारिज कर दिया था। सन 1973 के दूसरे मामले में आईसीजे ने भारत का साथ दिया था और पाकिस्तान के इस दावे को गलत माना था कि उसके कैदियों के साथ भारत में दुव्र्यवहार किया जा रहा है। तीसरा मामला 2000 का है, जब पाकिस्तानी विमान को मार गिराने संबंधी शिकायत पर अदालत ने भारत के तर्कों से सहमति जताई थी। हालांकि इन सबसे पहले 1950 के दशक में यह अदालत दमन, दादर और नागर हवेली पर पुर्तगाल के दावे को निरस्त करते हुए अपना फैसला भारत के पक्ष में सुना चुकी है। इसी तरह, 2014 में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोक पाने में कथित विफलता के कारण जब मार्शल आइलैंड ने आईसीजे का दरवाजा खटखटाया था, तो उसने 2016 में फैसला सुनाते हुए भारतीय पक्ष से सहमति जताई थी और द्विपक्षीय विवाद न होने के कारण कोई व्यवस्था करने से इनकार कर दिया था।

8 मई, 2017 को भारत ने कुलभूषण जाधव का मामला अंतरराष्ट्रीय अदालत में उठाया था। इन दो वर्षों में भारत और पाकिस्तान ने लिखित व मौखिक रूप से अपना-अपना पक्ष रखा। अब आईसीजे ने 42 पेज का अपना फैसला सुनाया है, जो करीब-करीब सर्वसम्मति से तय किया गया है। 16 जजों में से सिर्फ एक जज (पाकिस्तानी) ने फैसले से असहमति जताई, जबकि चीन के जज भी सभी बिंदुओं पर फैसले के साथ रहे। जाधव की सजा पर ‘प्रभावी समीक्षा और पुनर्विचार’ का ताजा अदालती आदेश 2017 के उस अस्थाई आदेश की अगली कड़ी है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय अदालत ने अंतिम फैसला आने तक जाधव को फांसी न देने की बात कही थी। अगर उन्हें फांसी दे दी जाती, तो फैसले की समीक्षा का यह पूरा मामला अप्रासंगिक हो जाता।

बड़ा सवाल यह है कि अब इसके आगे हम करेंगे क्या? भारत का तर्क था कि किसी आम नागरिक पर सैन्य अदालत में मुकदमा चलाना अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है। मगर इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय अदालत ने गेंद पाकिस्तान के हवाले कर दी है। फैसले के मुताबिक, पाकिस्तान ‘प्रभावी समीक्षा और पुनर्विचार’ के लिए सभी प्रकार के उपाय करने को स्वतंत्र है। इसमें जरूरत होने पर उपयुक्त कानून बनाना भी शामिल है। पाकिस्तान के माहौल और वहां के प्रमुख नेताओं द्वारा जाधव को लेकर जारी बयानबाजी पर यदि गौर करें, तो यह चिंता अपनी जगह कायम है कि असैन्य अदालत में भी यह मामला निष्पक्ष तरीके से नहीं चल सकता। इतिहास में पाकिस्तानी न्यायपालिका ने अपने हितों का पोषण करते हुए कई संदेहास्पद फैसले सुनाए हैं। फौजी तख्तापलट और संविधान से छेड़छाड़ को भी वह जायज ठहरा चुकी है। हाल में, नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद के अयोग्य ठहराने का उसने जो आदेश दिया था, उसकी भी चौतरफा निंदा हुई थी। अक्तूबर, 2018 में इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के दूसरे वरिष्ठतम जज को इसलिए बर्खास्त कर दिया गया था, क्योंकि तीन माह पूर्व रावलपिंडी जिला बार एसोसिएशन में उन्होंनें यह कहा था कि ‘हमारी न्यायपालिका आजाद नहीं है और बंदूक वाले (फौज) के नियंत्रण में है’। कई मामलों में यह देखा भी गया है कि अपने मुफीद फैसले के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने पसंदीदा बेंच का गठन कराया।  

पाकिस्तानी न्यायपालिका का यह स्याह पहलू निश्चित तौर पर भारतवासियों के लिए चिंता की बात है। इसीलिए भारत (सरकार और अवाम, दोनों स्तरों पर) को वे तमाम उपाय करने होंगे, जो पाकिस्तान को कानूनी और मानवीय सिद्धांतों व मूल्यों को मानने के लिए मजबूर करें। अभी तो हम यही उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान आईसीजे का फैसला मानेगा और जाधव का मुकदमा असैन्य अदालत में चलाएगा। ऐसा होने पर हमें तत्काल सक्रियता दिखानी होगी। इसका मतलब सिर्फ जाधव से मिलना-जुलना नहीं है, बल्कि उन्हें हरसंभव कानूनी मदद उपलब्ध कराना भी है। क्या पाकिस्तानी कानून किसी भारतीय नागरिक को अपने यहां जिरह करने की अनुमति देता है? अगर हां, तो भारत सरकार को अपना काबिल वकील वहां भेजना चाहिए। और अगर ऐसा प्रावधान नहीं है, तो हमें किसी विदेशी वकील की तलाश करनी होगी, क्योंकि जिन मुकदमों में पाकिस्तानी फौज पर सवाल उठते हैं या उसकी आलोचना होती है, उनमें पाकिस्तानी वकीलों के लिए जिरह करना खासा कठिन होता है। इसके अलावा, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जाधव को अंतरराष्ट्रीय कानूनों व कन्वेंशन के तहत उचित राजनयिक मदद मिले।

एक सवाल यह भी है कि क्या भारत के साथ अपने संबंध सुधारने के लिए पाकिस्तान इस मौके का इस्तेमाल करेगा? इसमें कोई शक नहीं कि जाधव के भारत लौटने का भारतीय जनमानस पर सकारात्मक असर पडे़गा। यह तब और प्रभावशाली होगा, जब अमेरिका, चीन या किसी अन्य देश के दबाव में आए बिना पाकिस्तान यह काम खुद करे। पाकिस्तानी आर्मी ऐक्ट-1952 का एक प्रावधान यह भी है कि अगर कोर्ट मार्शल की कार्रवाई अन्यायपूर्ण है, तो संघीय सरकार उसे रद्द कर सकती है। पाकिस्तान यह कर सकता है। इस मामले को मानवीय आधार पर सुलझाने से अन्य मानवीय गतिविधियां भी तेज होंगी, जैसे सीमा-पार लोगों की आवाजाही बढे़गी और सुगम यात्रा सुनिश्चित हो सकेगी। ये सब द्विपक्षीय और सार्थक बातचीत के आधार भी बन सकते हैं। 

अभी मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसे दहशतगर्दों के खिलाफ पाकिस्तान ने कार्रवाई की है (चाहे वह अंतरराष्ट्रीय दबाव का नतीजा हो या फिर विकल्पहीनता की उसकी स्थिति)। ऐसे में, जाधव मामले में मानवीय नजरिया अपनाकर वह भारत के साथ ‘सामान्य’ संबंध बनाने की दिशा में उत्साहजनक माहौल बना सकता है। मगर क्या वह ऐसा करेगा? इसका पता तो आने वाले दिनों में चलेगा। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
 

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