अभी क्रीमीलेयर लागू करना ठीक नहीं
माननीय अध्यक्ष जी, आज मंडल कमीशन के बारे में चर्चा हो रही है। मैं तहेदिल से आभार प्रकट करना चाहता हूं उन सम्मानित सदस्यों के प्रति, जिन्होंने सूझबूझ के साथ सुझाव रखे। मेरे लिए आज सुख का दिन है...
माननीय अध्यक्ष जी, आज मंडल कमीशन के बारे में चर्चा हो रही है। मैं तहेदिल से आभार प्रकट करना चाहता हूं उन सम्मानित सदस्यों के प्रति, जिन्होंने सूझबूझ के साथ सुझाव रखे। मेरे लिए आज सुख का दिन है। जिस दिन से मैंने मंडल कमीशन की घोषणा की थी सदन में... हम लोगों को जातिवादी और देश को बांटने वाला कहा गया था और आज सदन के अंदर उसकी इस तरह से पुष्टि हुई, तो यह भी सुख का कारण है। मैं सीधे विषय पर आता हूं, इसकी चर्चा लंबी हो सकती है, लेकिन समय की कमी है। अब किसी क्रीमीलेयर का सवाल आता है, तो लगता है, हजारों साल से मट्ठा बन रहा है और उस मट्ठे में से क्रीमीलेयर निकल रहा है, इस पहलू को ये लोग नहीं देखते। क्रीम निकलने के बाद मट्ठा बनता है, क्रीम निकालकर उसे ‘होमोजेनाइज’ करने की जरूरत है...।
आप जानते हैं कि जहां तक एससी, एसटी का आरक्षण है, उसमें कोई पैमाना नहीं लगाया गया, न आर्थिक लगाया गया है और न कोई अन्य लगाया गया है। इसके बावजूद जब कोई पैमाना नहीं लगा, तब भी आधी शताब्दी बीतने को हो रही है, उनका कोटा आधा ही पूरा हुआ है। जहां लोग सीधी रेस में नहीं पहुंच पा रहे हैं, वहां आप बाधा दौड़ करवा रहे हैं। पहले आप देखिए कि (पिछड़ा हुआ व्यक्ति) सीधी रेस से पहुंचता है या नहीं, सीधे रहने से कोटा पूरा होता है या नहीं। अनुसूचित जाति और जनजाति का कोटा पूरा नहीं हुआ, यह अनुभव है,व्यावहारिक है। हम कहते हैं कि इतना मजबूत क्रीमीलेयर होता, आधा हिन्दुस्तान पिछड़ा वर्ग है और क्रीमीलेयर मोटी होती, तो नौकरियों में चार प्रतिशत नहीं पहुंचता। वह क्रीमीलेयर पकड़ लेता। यह सुबूत है कि जो हम कह रहे हैं, वह सही रास्ता है। हमने कहा था 10 साल सीधे भर्ती करो, 27 प्रतिशत कोटा पूरा हो जाता, तब आप उसके अंदर की बारीकियां निकालते, तो यह व्यावहारिक होता। वह तो पूरा नहीं हुआ और कानून बनाकर उसमें से निकालने की बात कर रहे हैं। आर्थिक पैमाने के बारे में हमारे मित्र ने सही कहा था। मंडल कमीशन की रिपोर्ट को पढ़िए, उसमें सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक पैरामीटर को मिलाकर इंडेक्स बनाया गया है। कहा है कि जो लोग गांव के अंदर पचास फीसदी से ज्यादा कच्चे मकानों में रहते हैं, वे परिवार, जो पचास फीसदी से ज्यादा किसी राज्य में हाथ से काम करते हैं, वे परिवार, इस तरह से आर्थिक एंगल निकाला। इनको मिलाकर इंडेक्स बनाया और तब वे इस नतीजे पर पहुंचे, जिसे हम लोगों ने सुनिश्चित किया था। दाल में नमक पड़ा हुआ है, अब दोहरिया डाला जा रहा है।...
मैं मंत्री जी से कहूंगा कि इसी सत्र में एक सांविधानिक संशोधन लाएं और जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की पदोन्नति है, जिसको मार दिया गया है, फिर से स्थापित करने का काम करें। जब हम लोग लाए थे, तो कहा गया कि शिक्षा के बिना क्या होगा? हम लोग हट गए, लेकिन हमारे हटने के बाद आप बैठे हैं, तो बताइए, आपने इन वर्गों की शिक्षा के लिए क्या किया? हमें शक होता है कि जब इन दबे हुए तबकों के लिए कोई सुझाव आता है, आप बारीकियां निकालने लगते हैं। 45 साल में नहीं हुआ और अब मंडल लागू हुआ, तो शिक्षा याद आने लगी? अब हम हट गए हैं, तो शिक्षा याद आने लगी है?...
इंसान और मशीन एक नहीं हैं। आप मशीन पर थूकेंगे, तो वह कतई स्वीकार कर लेगी, कोई जवाब नहीं देगी, लेकिन इंसान पर थूकिए, गरीब से गरीब इंसान भी बोलेगा। एक में स्वाभिमान नहीं है, दूसरे में है। इंसान और मशीन में यही तो फर्क है। यहां सालों-साल से दबे हुए स्वाभिमान का प्रश्न है। भूख लगती है, तो ...अन्न देने से शमन होता है, पर जब अपमान की आग दिल और दिमाग में लगती है, तब वह अन्न से शमन नहीं होती, क्रांति से शमन होती है।
(लोकसभा में दिए गए उद्बोधन से)