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बजट पर विपक्षी दावे में कितना दम

संसद में बजट पर चर्चा के दौरान विपक्ष ने बजट में अलग-अलग इलाकों और मदों पर हुए खर्च पर सवाल उठाए हैं। सवालों में यह भी शामिल था कि बजट में किस-किस का नाम लिया गया और किसका नहीं? जब जवाब देने...

बजट पर विपक्षी दावे में कितना दम
Pankaj Tomarआलोक जोशी, वरिष्ठ पत्रकारSun, 04 Aug 2024 11:05 PM
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संसद में बजट पर चर्चा के दौरान विपक्ष ने बजट में अलग-अलग इलाकों और मदों पर हुए खर्च पर सवाल उठाए हैं। सवालों में यह भी शामिल था कि बजट में किस-किस का नाम लिया गया और किसका नहीं? जब जवाब देने वित्त मंत्री खड़ी हुईं, तो उन्होंने भी फेहरिस्त गिनानी शुरू कर दी कि पिछली सरकार के किस बजट में कितने-कितने राज्यों का नाम नहीं लिया गया था। उन्होंने पिछली सरकार के दस बजट गिना डाले कि कब-कब कितने राज्यों को नजरंदाज किया गया था। कई उदाहरण देकर उन्होंने यह भी समझाने की कोशिश की कि जिन परियोजनाओं और जिन खर्चों का जिक्र किया गया है, उनसे किस-किस राज्य को साफ-साफ फायदा पहुंचने वाला है।
हालांकि, सीधा हिसाब देखें, तो बजट में बिहार को लगभग 65,000 करोड़ रुपये और आंध्र प्रदेश को 15,000 करोड़ रुपये सीधे मिले हैं। इस बार के बजट में कुल मिलाकर 48 लाख करोड़ रुपये से ऊपर का खर्च गिनाया गया है। सोचने वाली बात है कि क्या तब भी इतनी रकम दो राज्यों को देना ज्यादती है? जाहिर है, बाकी रकम का कुछ हिस्सा भी इन राज्यों में आ सकता है और बाकी देश में भी। बाकी देश में कहां कितना खर्च होगा, इसके तमाम उदाहरण वित्त मंत्री ने बाकायदा संसद में गिनाए हैं।
यह तो रही बात नाम लेने की, सवाल यह भी उठाए गए हैं कि किस मद में कितना खर्च हो रहा है और किस-किस चीज के लिए बजट में आवंटन घटा दिया गया है? यहां रक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, युवा और किसान के साथ-साथ महिलाओं का भी जिक्र किया गया और यह भी कहा गया कि मनरेगा पर खर्च घटा दिया गया है। वित्त मंत्री ने इनमें से ज्यादातर सवालों का सीधा जवाब देने की कोशिश की। मगर उससे पहले यह समझना भी जरूरी है कि सरकार जो खर्च कर रही है, उसके पीछे क्या सोच काम कर रही है? 
दरअसल, दस साल पहले जब यह सरकार बनी थी, तभी से यह इस कोशिश में है कि देश में औद्योगिक उत्पादन बढ़ाया जाए और इस रास्ते से नए रोजगार भी पैदा किए जाएं। ‘कॉरपोरेट टैक्स’ में कटौती और ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के साथ-साथ भारत में उत्पादन के लिए कई तरह की रियायतें इसीलिए लाई गई थीं। यही नहीं, सरकार ने बुनियादी सुविधाओं पर खर्च भी बढ़ाया, ताकि औद्योगिक विकास के लिए जमीन तैयार हो और माहौल भी। मगर इस किस्से के सिरे चढ़ने से पहले ही कोरोना महामारी का झटका आ गया। उससे उबरने के लिए सरकार को जबर्दस्त खर्च करना पड़ा। अब कई सालों के बाद ऐसा माहौल दिखता है कि शायद निजी क्षेत्र भी अपनी जेब ढीली करने की हिम्मत दिखाए और तब सरकार की कोशिशें रंग ला सकेंगी। इसके बावजूद सरकार को न सिर्फ नई नौकरियों के लिए, बल्कि इंटर्नशिप, यानी ट्रेनिंग के लिए भी देश की सबसे बड़ी कंपनियों को अपनी तरफ से मदद देनी पड़ रही है। इसका मतलब साफ है कि निजी उद्योग अब भी पूरी तरह हौसला दिखा नहीं रहे हैं। बजट के बाद की चर्चाओं में कुछ मंत्रियों की तरफ से इस तरह के रवैये पर नाराजगी भी जताई गई है। 
आम चुनाव के बाद इस सरकार के सामने एक बात साफ है कि देश में कहीं कोई ऐसी समस्या जरूर है, जिसका अगर इलाज न हुआ, तो सियासी परेशानी भी आ सकती है। इसलिए यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि सरकार ने जो एलान किए हैं, उनको सिरे तक पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी जाएगी। बजट में कैपिटल, यानी नई पूंजी पर 11.11 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य है, जो 2019-20 के मुकाबले तीन गुना से भी ज्यादा है। कुल मिलाकर, इस मद में 15 लाख करोड़ से ऊपर खर्च का अनुमान है।
अब सवाल है, बजट में किस पर कितना खर्च हो रहा है? तो जिस एक क्षेत्र पर सबसे ज्यादा खर्च हो रहा है, वह है रक्षा। बजट में इसके लिए 6,21,941 करोड़ रुपये का इंतजाम किया गया है। 2013-14 में यह रकम करीब ढाई लाख करोड़ रुपये थी। हालांकि, दूसरी नजर से देखें, तो पिछले बजट के संशोधित अनुमान के मुकाबले इस बार का रक्षा बजट लगभग 0.3 प्रतिशत कम है। 
विपक्षी नेताओं का आरोप है कि मोदी सरकार के पिछले दस साल में शिक्षा पर खर्च लगातार कम हो रहा है। उन्होंने कहा कि 2013-14 में जीडीपी का 4.77 प्रतिशत इस खाते में आता था, जो अब घटकर सिर्फ 2.05 प्रतिशत रह गया है। उधर वित्त मंत्री ने बताया कि शिक्षा, रोजगार और कौशल विकास के मद में 2013-14 के बजट में कुल 85 हजार करोड़ रुपये रखे गए थे, जबकि इस बार यह रकम 1.48 लाख करोड़ रुपये है और पिछले साल के मुकाबले यह 23 प्रतिशत ज्यादा है। इसी तरह खेती और उससे जुड़े क्षेत्रों पर यूपीए के आखिरी बजट में 30 हजार करोड़ रुपये की रकम रखी गई थी, जबकि इस साल यह 1.52 लाख करोड़ हो गई है। वित्त मंत्री ने यह भी बताया कि महिलाओं और बच्चियों के लिए बजट में रखी गई रकम 2013-14 के 96 हजार करोड़ से बढ़कर इस बजट में 3.27 लाख करोड़ रुपये कर दी गई है। ग्रामीण विकास के लिए भी 87 हजार करोड़ के मुकाबले 2.66 लाख करोड़ रुपये और शहरी विकास के लिए 12 हजार करोड़ के मुकाबले लगभग एक लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
गांवों में रोजगार के लिए मनरेगा के खाते में इस बार 86 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। यह पिछले बजट के संशोधित अनुमान और अंतरिम बजट के प्रावधान के बराबर है। उल्लेखनीय है कि कोरोना के साल में मनरेगा पर बजट से लगभग दोगुना खर्च हुआ था। उससे पहले भी 2018 से लगातार इस मद में अनुमान से ज्यादा ही खर्च होता रहा है। हालांकि, पिछले साल के बजट में इस पर खर्च घटाने की कोशिश की गई थी, मगर 60 हजार करोड़ के बजट के सामने अंतत: खर्च बढ़कर 86 हजार करोड़ रुपये हो ही गया।
अब एक सवाल रहता है। 2013-14 का बजट था 16.6 लाख करोड़ रुपये का और 2024-25 का बजट है 48.21 लाख करोड़ रुपये का, तो क्या हर खर्च को इसी अनुपात में देखना सही होगा? अब यह नजर-नजर का सवाल है। मगर उम्मीद यही करनी चाहिए कि सरकार बजट से बाहर भी कोशिशें करेगी और वित्त मंत्री ने रोजगार, कौशल, छोटे-मंझोले उद्योग और मध्यवर्ग को फोकस में रखने का जो दावा किया है, उसे साकार करके दिखाएगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)