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लॉकडाउन में छूट मिले तो कैसे

कोरोना महामारी एक अभूतपूर्व मानवीय संकट है। भारत में संक्रमण-दर थामने के लिए ठोस प्रयास करने का वक्त हमें छह सप्ताह के इस देशव्यापी लॉकडाउन में मिला। मगर अब पूरा ध्यान इस वायरस के साथ जीते हुए देश की...

लॉकडाउन में छूट मिले तो कैसे
रजत गुप्ता, सीनियर पार्टनर, मैकेंजी मुंबई कार्यालयThu, 07 May 2020 08:41 PM
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कोरोना महामारी एक अभूतपूर्व मानवीय संकट है। भारत में संक्रमण-दर थामने के लिए ठोस प्रयास करने का वक्त हमें छह सप्ताह के इस देशव्यापी लॉकडाउन में मिला। मगर अब पूरा ध्यान इस वायरस के साथ जीते हुए देश की अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करने की तरफ लगाया जा रहा है।
इन छह हफ्तों में भारत की अर्थव्यवस्था ने अपनी क्षमता का कमोबेश आधा काम किया है। कुल 26.2 करोड़ गैर-कृषि श्रमिकों में से 14 करोड़ से अधिक कामगार बेकार रहे हैं। साफ है, लॉकडाउन एक ऐसा भार है, जिसको भारत बार-बार नहीं उठा सकता। चूंकि लॉकडाउन खत्म होने के बाद संक्रमण बढ़ने का खतरा लगातार बना रहता है और इसमें बढ़ोतरी होने की ही आशंका होती है, इसलिए संभवत: लंबे समय तक कोविड-19 से लड़ते हुए हमें अर्थव्यवस्था को गति देने की दरकार होगी। लिहाजा भारतीय प्रशासकों के लिए यह बड़ी चुनौती है कि स्वास्थ्य-सेवा और संक्रमित मरीजों का पता लगाने की क्षमता को सुधारते हुए वे लॉकडाउन का बेहतर प्रबंधन करें और आर्थिक गतिविधियों को फिर से शुरू कराने का प्रभावी प्रयास करें। इस लिहाज से तीन बातों पर विशेष ध्यान देना उचित होगा।
पहली बात, भारत का मैन्युफेक्चरिंग यानी विनिर्माण क्षेत्र, श्रमिक और वितरण-शृंखला आपस में मजबूती से जुड़े हुए हैं, और लॉकडाउन में छूट देते समय इस पर गौर किया जाना चाहिए। जैसे, इलेक्ट्रॉनिक सामान के निर्माण-कार्य में मेटल वर्किंग, प्लास्टिक मोल्डिंग व पेपर प्रोसेसिंग जैसे अलग-अलग क्षेत्रों की जरूरत पड़ती है। इनमें से किसी को भी खोलने की अनुमति न देने से इलेक्ट्रॉनिक सामान का उत्पादन बाधित हो सकता है। 
दूसरी बात, अपने यहां पूरे देश में समान रूप से आर्थिक गतिविधियां नहीं होती हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जिन 130 जिलों को रेड जोन घोषित किया है, वहां पर देश की कुल जीडीपी का 40 फीसदी कारोबार होता है। इसी तरह, घोषित 352 ग्रीन जोन जिलों में सबसे ज्यादा आर्थिक गतिविधि की अनुमति बेशक दी गई है, लेकिन जीडीपी में इन जिलों का योगदान एक चौथाई से भी कम है।
तीसरी बात, राज्य चाहें, तो संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए कंटेनमेंट (जिन इलाकों में संक्रमित मरीज मिले हैं) के अलावा पूरे रेड जोन जिले को लॉकडाउन कर सकते हैं, फिर चाहे गृह मंत्रालय ने उसे खोलने की अनुमति क्यों न दी हो। भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में छह फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले मुंबई और पुणे इसके उदाहरण हैं। इसके अलावा, स्थानीय प्रशासन द्वारा सरकारी दिशा-निर्देशों की अलग-अलग व्याख्या से समस्या गहरा सकती है। मौजूदा माहौल में दिशा-निर्देशों का बेहतर क्रियान्वयन जरूरी है।
कामगारों की दशा और आर्थिक गतिविधि को जांचने के लिए हमने देश के 700 से अधिक जिलों के कुल 19 क्षेत्रों में रोजगार के जिला-स्तरीय डाटा का अध्ययन किया। निष्कर्ष बताते हैं कि अगर सबसे अधिक शहरी क्षेत्र वाले 27 रेड जोन जिलों में, जहां संक्रमण-दर भी अपेक्षाकृत ज्यादा है, लॉकडाउन जारी रहा, तो देश में सिर्फ 80 फीसदी आर्थिक गतिविधि होगी और 6.7 करोड़ गैर-कृषि श्रमिकों को घर बैठना होगा। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात और दिल्ली जैसे राज्यों में ऐसे 40 लाख कामगार बेकार हो जाएंगे। यह 19.5 करोड़ लोगों के जीवन को प्रभावित करेगा और सरकार द्वारा दी जाने वाली राहत में प्रति तिमाही 12 अरब डॉलर से अधिक का इजाफा करेगा।
इसलिए जरूरी यह है कि स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन लागू हो और अर्थव्यवस्था को फिर से शुरू करने की प्रबंधन क्षमता जुटाई जाए। मगर इस तरह की क्षमता पैदा करने के लिए कई तरह के उपाय करने होंगे। ये उन जरूरी उपायों से अलग होंगे, जिनकी जरूरत स्वास्थ्य सेवा को है। मसलन, क्रिटिकल केयर की क्षमता को बेहतर बनाना, संक्रमित मरीजों को खोजने और वायरस-प्रसार की रोकथाम से संबंधित उपाय करना आदि।
बहरहाल, पहला उपाय है, अनुमति-प्राप्त गतिविधियों की सूची बनाने की बजाय नकारात्मक सूची या प्रतिबंधित गतिविधियों की सूची बनाई जाए। इसे समझना और लागू कराना आसान होगा। इससे दिशा-निर्देशों की व्याख्या में अंतर की वजह से महत्वपूर्ण मध्यवर्ती उद्योगों को काम की अनुमति न मिलने संबंधी मुश्किलें भी दूर होंगी। दूसरा उपाय है, गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के तहत सिर्फ कंटेनमेंट जोन को लॉकडाउन किया जाए, पूरे जिले को नहीं। स्थानीय प्रशासक, खासकर जिला-स्तरीय अधिकारी प्रतिदिन संक्रमण के आंकडे़ पर ही अभी ध्यान केंद्रित करते हैं, क्योंकि यही उन्हें रिपोर्ट करना है। मगर उन्हें जीवन और आजीविका, दोनों पर स्वास्थ्य-प्रभाव की जांच का दायित्व देने का फैसला हो, जिससे नीति-निर्माण की प्रक्रिया अधिक सूचनात्मक होगी।
तीसरा उपाय, गांव से शहर आने-जाने वाले कामगारों की सुरक्षित एवं नियंत्रित आवाजाही हो। शहरों के बीच होने वाली आवाजाही के लिए भी इसी तरह की व्यवस्था बननी चाहिए। चौथा उपाय, जिला स्तर पर क्रियान्वयन की क्षमता बढ़ाई जाए। इसके लिए सभी 700 से अधिक जिलों में जिलाधिकारी के साथ काम करने के लिए सक्षम और प्रशिक्षित अधिकारी तैनात किए जाएं, ताकि वे स्थानीय स्तर पर कामकाज और लॉकडाउन के प्रबंधन में प्रशासन की मदद कर सकें। इसके लिए हर राज्य में संबंधित विभागों के अधिकारियों की सेवा ली जा सकती है। ऐसा हर भारतीय चुनाव के समय होता ही है। 
पांचवां उपाय, आपसी समन्वय और संचार को मजबूत बनाया जाए। केंद्रीय विभाग, राज्य, स्थानीय प्रशासन और नियामक जैसे तमाम सरकारी अंगों और उद्योग व वाणिज्य के तमाम हितधारकों के बीच सामंजस्य होना महत्वपूर्ण है। वरिष्ठ अधिकारियों का एक राज्य-सह-केंद्र सरकार कोविड-19 फोरम बनाया जा सकता है, जो हर हफ्ते बैठक करे। इससे वे अक्सर मिल सकेंगे और एक-दूसरे के कामकाज को समझ सकेंगे। इससे सभी स्तरों पर हितधारकों को स्पष्ट सूचना पहुंचाने में मदद मिल सकती है। छठा, चूंकि भविष्य को लेकर अभी अनिश्चितता है व महामारी के हालात बने रहेंगे, इसलिए आकस्मिक योजना बहुत जरूरी है। कोरोना के प्रसार के संभावित परिदृश्यों के आधार पर सरकार के हर स्तर पर आकस्मिक योजनाएं बनाने में ही बुद्धिमानी है।
जाहिर है, भारत की अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक कोविड-19 के साथ काम करना पड़ सकता है। लिहाजा लॉकडाउन का प्रभावी प्रबंधन और अर्थव्यवस्था को फिर से खोलना भारतीय प्रशासकों के लिए बड़ी चुनौती है।
(साथ में अनु मडगावकर और हनीश यादव)

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