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कोरोना का संक्रमण और कूप-मंडूक

दुनिया भर में धर्मों और विज्ञान के बीच इस समय एक दिलचस्प मुठभेड़ चल रही है। तकरीबन सारे धर्म मानते हैं कि जीवन और मृत्यु ईश्वर के हाथ में हैं- होइहि सोइ जो राम रचि राखा। कोरोना महामारी से यह समझ गड़बड़ा...

कोरोना का संक्रमण और कूप-मंडूक
विभूति नारायण राय पूर्व आईपीएस अधिकारीMon, 06 Apr 2020 09:14 PM
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दुनिया भर में धर्मों और विज्ञान के बीच इस समय एक दिलचस्प मुठभेड़ चल रही है। तकरीबन सारे धर्म मानते हैं कि जीवन और मृत्यु ईश्वर के हाथ में हैं- होइहि सोइ जो राम रचि राखा। कोरोना महामारी से यह समझ गड़बड़ा रही है। खास तौर से तबलीगी जमात ने दुनिया भर के अपने केंद्रों में जिस तरह से व्यवहार किया है, उससे एक बहस शुरू हो गई है। यह शायद इसलिए भी संभव हुई है कि इस्लाम अपने मूल से सबसे मजबूती से जुडे़ रहने वाला धर्म है और उसमें भी तबलीगी जमात संगठन के तौर पर बना ही इस घोषित उद्देश्य के साथ था कि मुसलमानों को पैगंबर मोहम्मद के जमाने की परंपराओं की तरफ लौट जाना चाहिए और उनकी शिक्षाओं के अनुकूल अपना जीवन बिताना चाहिए।
एक बुद्धिजीवी आजाद कबीर ने अपने अनुभव साझा करते हुए लिखा कि वह वर्षों तक तबलीगी जमात के सदस्य रहे और एक स्थानीय इकाई के अमीर भी थे। उनके अनुसार, मरकज की शिक्षा मुसलमानों से प्राचीन और मिलावट रहित इस्लामी परंपराओं की तरफ लौट जाने की है। इसके तहत उन्हें अपने साथी मुसलमानों के साथ ईमानदारी, शराफत और भलमनसाहत के साथ व्यवहार करना चाहिए। जब मुसलमान शुद्ध इस्लामी रास्ते पर लौट आएंगे, तो अल्लाह का वादा है कि उन्हें खिलाफत सौंप दी जाएगी, यानी वे विश्व के शासक बना दिए जाएंगे। जब तक यह नहीं हो जाता, तब तक जमात के अनुसार मुसलमानों को राजनीति में भाग लेने की बात तो दूर, उसके बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। संगीत, शराब और नृत्य जैसे मनोरंजन तो मुसलमानों के लिए वर्जित हैं ही, आधुनिक शिक्षा भी उनके लिए हराम है, क्योंकि यह यहूदी और पाश्चात्य मूल्यों पर आधारित है और इसकी जगह इस्लामी शिक्षा दी जानी चाहिए। एक बार इस्लामी हुकूमत कायम होने के बाद काफिरों और औरतों को सख्त शरिया कानून के तहत लाया जाएगा। उनके साथ मोमिनों की दोस्तियां पूरी तरह निषिद्ध होंगी। बुतपरस्ती हराम है, इसलिए पहला मौका मिलते ही बुतों को नष्ट कर दिया जाएगा। 
आजाद कबीर ने खुद के तबलीगी जमात छोड़ने के दो कारण बताए- एक तो उन्हें संगीत प्रेम के लिए टोका-रोका गया और दूसरा, उन्हें एक काफिर से दोस्ती करने पर कोसा गया, क्योंकि उन्हें तो मारने का हुक्म है। कोरोना पर भी तबलीगी जमात बिना किसी लाग-लपेट के मानती है कि इसे अल्लाह ने इंसानों को, उसके दिखाए रास्ते से भटक जाने के कारण सजा देने के लिए भेजा है। इससे बचने का एक ही रास्ता है कि लोग बाजमात मस्जिदों में इकट्ठा होकर अपने गुनाहों की माफी मांगें। जमात के मुखिया मौलाना साद की आवाज में कई ऑडियो वायरल हुए हैं, जिनमें उसने ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ को मुसलमानों को बांटने का षड्यंत्र बताया है और उनसे मस्जिदों से दूर न जाने की अपील की है। उसने यह भी कहा है कि मस्जिद में होने वाली संभावित मृत्यु उनके लिए सबाब है। बीमार पड़ने पर वह सिर्फ मुसलमान डॉक्टरों से इलाज कराने की सलाह देता है। यह अलग बात है कि मुसीबत बढ़ने पर उसने खुद को कहीं एकांतवास में डाल दिया है और सोशल मीडिया ऐसी सूचनाओं से भरा हुआ है, जिनमें उसके खुद एम्स के गैर-मुस्लिम डॉक्टरों से इलाज कराने के जिक्र हैं। 
दूसरी ओर, आठ हजार से भी ज्यादा मौतों वाले अमेरिका के ईसाई धर्मगुरु टोनी स्पेल के नेतृत्व में एक दर्जन से अधिक पादरियों ने घोषित किया है कि सरकार कुछ भी कहे, वे चर्च में रविवार की प्रार्थनाएं स्थगित नहीं करेंगे। वे शायद भूल गए कि दक्षिण कोरिया में कोरोना पहुंचा ही चर्च में वुहान से लौटी एक संक्रमित भक्तिन की उपस्थिति से। बड़ी मुश्किल और सख्ती से दक्षिण कोरिया सरकार पूरे देश में चर्चों को बंद करके कोरोना को नियंत्रित कर पाई। और यह सब तब है, जबकि वेटिकन सिटी में पोप ने शुरुआती दौर में ही अपने सारे कार्यक्रम स्थगित कर दिए थे।
अयोध्या में रामनवमी के अवसर पर बहुत बड़ा मेला लगता है। इस बार नवरात्रि के शुरू होने के पहले ही कोरोना शुरू हो गया था। पहले तो महंतों ने मेला स्थगित करने से इनकार कर दिया। उनके अनुसार, अपने भक्तों की रक्षा तो भगवान राम स्वयं करेंगे, इसमें सरकार को चिंतित होने की जरूरत नहीं है। गनीमत है कि सरकार की सख्ती से उन्हें सद्बुद्धि आ गई। लेकिन पूरे देश में सामूहिक आयोजनों में गोमूत्र पिलाते या हवन कराते और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते चित्र दिखते ही रहे हैं। कुछ दिनों पहले तक तिरुपति में दर्शन चलते रहने की खबरें हैं। इसलिए सिर्फ तबलीगी जमात को निशाना बनाना उचित नहीं है। मानव जाति ने इतिहास में इससे बड़ी मुसीबतों पर विजय पाई है और इस बार भी वही जीतेगी, पर क्या इसके बाद धर्म से जुड़ी इस सोच में कुछ बदलाव आएगा?
कालजयी वैज्ञानिक आइंस्टीन से अक्सर छात्र पूछते थे कि क्या वह ईश्वर में विश्वास करते हैं? आइंस्टीन का उत्तर होता कि वह स्पिनोजा के ईश्वर में विश्वास करते हैं। पुर्तगाली यहूदी मूल के दार्शनिक स्पिनोजा 17वीं सदी के एक बडे़ तर्कवादी बुद्धिजीवी थे। उनका ईश्वर अपने अनुयायियों से कहता था कि खुद को कष्ट देकर मेरी उपासना मत करो। मैंने दुनिया की तमाम खूबसूरत चीजें तुम्हारे लिए बनाई हैं, बाहर निकलो और उनका उपभोग करो। तुमने मेरे घर के नाम पर जो कुरुचिपूर्ण स्थल बना रखे हैं, वहां मेरी उपासना के लिए जाना बंद करो। मैं तो पहाड़ों, जंगलों, झरनों, नदियों, समुद्र तटों समेत प्रकृति के सुरम्य स्थलों में रहता हूं। अपने को पापी मानकर कोसना बंद करो। मैं कौन हूं तुम्हारा फैसला करने वाला? मैं सिर्फ तुमसे प्यार करता हूं। मुझसे माफी मांगना बंद करो। अगर मैंने ही तुम्हें बनाया है, तो तुम जो भी हो, उसके लिए सजा कैसे दे सकता हूं? अपने ही बच्चों के लिए अनंत काल तक जलाने वाले नरक को मैं कैसे गढ़ सकता हूं? मैंने तुम्हें पूरी तरह से आजाद बनाया है और मेरी तरफ से न कोई पुरस्कार है और न ही कोई दंड। बिना इस जीवन के बाद की चिंता किए अपने आसपास के जीव-जंतुओं और जीवन से प्यार करो।
स्पिनोजा के ईश्वर सांस्थानिक ईश्वर से भिन्न हैं और उन्हें किसी धर्मगुरु की जरूरत नहीं। संभवत: कोरोना स्पिनोजा के ईश्वर को कुछ मजबूत करे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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