जिन चुनौतियों से विपक्ष को टकराना है
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, वैसे-वैसे सियासी सरगर्मियां बढ़ती चली जा रही हैं। लोगों के मन में यह सवाल उमड़ रहा है कि चुनावी मैदान में कैसी बिसात बिछेगी, किन मुद्दों के पासे फेंके जाएंगे...
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, वैसे-वैसे सियासी सरगर्मियां बढ़ती चली जा रही हैं। लोगों के मन में यह सवाल उमड़ रहा है कि चुनावी मैदान में कैसी बिसात बिछेगी, किन मुद्दों के पासे फेंके जाएंगे, कहां, किसमें और किसका पलड़ा भारी रहेगा? फिलहाल, यह तो तय हो गया है कि 2024 का आम चुनाव दो राष्ट्रीय महागठबंधनों के बीच होगा। एक तरफ, सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन है, जिसकी रूपरेखा और एजेंडा लगभग तय है, तो दूसरी तरफ, विपक्षी गठबंधन है, जिसे ‘इंडिया’ कहा जा रहा है, परंतु क्या इंडिया का स्वरूप यही रहेगा या आने वाले दिनों में बदल जाएगा, यह देखने वाली बात है।
पिछले तीन-चार महीनों से इन विपक्षी पार्टियों के बीच बातचीत का जो सिलसिला चल रहा है, उससे यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हुआ है कि इस गठबंधन का प्रारूप क्या होगा? अभी चर्चा तो यही है कि एक सीट पर एक उम्मीदवार को खड़ा किया जाएगा, लेकिन इस मुद्दे पर ठोस चीजें धरातल पर उतरती नजर नहीं आई हैं। दूसरी ओर, पिछले एक महीने में कई ऐसी भी चीजें हुई हैं, जिनसे कई लोगों में यह आशंका प्रबल हो गई है कि कहीं चुनाव आते-आते इसमें दरार न पड़ जाए। जिन मुसीबतों से यह गठबंधन जूझ रहा है, उसे हम तीन भागों में बांटकर देख सकते हैं।
पहला पहलू तो यही है कि कौन-कौन सी पार्टियां इस गठबंधन के साथ अंत तक रहेंगी? गत दिनों में कई जगह इस गठबंधन की पार्टियों में अंदरूनी टूट हुई है या उसकी आशंका दिखी है। इसका बड़ा उदाहरण महाराष्ट्र में शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का विभाजन है। फिर इसके घटक दलों के बीच लगातार आपस में कहा-सुनी भी हो रही है। लोग देख रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता अधीर रंजन चौधरी पश्चिम बंगाल में किस तरह से तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी पर तंज कसते रहते हैं, तो तृणमूल कांग्रेस और सीपीएम के बीच भी तनातनी बनी रहती है।
दूसरा पहलू यह भी है कि ऐसी कुछ पार्टियां हैं, जो इस विपक्षी महागठबंधन का हिस्सा होना चाहती थीं या जिन्हें इसका हिस्सा होना चाहिए, पर ये अपनी-अपनी वजहों से साथ नहीं आ पाई हैं। बहुजन समाज पार्टी विपक्षी गठबंधन की किसी बैठक में नहीं गई है, इसी तरह से असम, आंध्र प्रदेश आदि की कुछ ऐसी पार्टियां हैं, जो विपक्षी गठबंधन को मजबूत कर सकती थीं। क्या विपक्ष के नेता इस पर ध्यान दे रहे हैं?
तीसरा, विपक्षी गठबंधन में वैचारिक सहमति भी नहीं बन पाई है, जातिगत गणना और सनातन ऐसे ही कुछ मुद्दे हैं। सनातन के मामले में द्र्रमुक विपक्षी गठबंधन की समस्या को लगातार बढ़ा रहा है। द्रमुक नेता उदयनिधि स्टालिन व अन्य नेताओं ने सनातन पर लगातार बयानबाजी की है, तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेता कमलनाथ ने हिंदू राष्ट्र के अनुकूल एक अलग राग छेड़ा है। कांग्रेस की ओर से भी यह कोशिश यदा-कदा दिखती ही है कि उसे भी सनातन या हिंदू धर्म के मुद्दों के लिए खड़ी होने वाली पार्टी के रूप में देखा जाए।
समग्रता में देखें, तो अभी यह पता नहीं चल रहा है कि इंडिया के नेता किस मुद्दे पर क्या कहेंगे, किस बात पर टिके रहेंगे? नेतृत्व किस नेता के हाथों में होगा, यह भी अभी तय नहीं है और शायद यह फैसला जल्दी करना गठबंधन को मुश्किल में डाल सकता है। फिर भी विपक्षी गठबंधन को सोचना होगा कि जहां भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ रही है, वहां उसका नेतृत्व कौन करेगा? अभी शायद इस बात पर भी सहमति नहीं है कि 2024 के आम चुनाव में विपक्षी गठबंधन मोदी पर कितना हमलावर होने जा रहा है।
एक बड़ी समस्या सीटों के बंटवारे को लेकर भी दिख रही है। इसका मान्य फॉर्मूला क्या होगा? इंडिया को आने वाले दिनों में जल्द फैसला करना होगा। अपनी योजनाओं व मकसद का एक ब्लूपिं्रट बनाना पड़ेगा, ताकि उसमें नीतिगत या रणनीतिगत दृढ़ता आ सके। आगे का एजेंडा अगर विपक्षी गठबंधन पहले तय कर ले, तो उसके घटक दलों और नेताओं में किसी प्रकार का भ्रम नहीं रहेगा और इससे सीटों के बंटवारे में भी ज्यादा परेशानी नहीं आएगी। गौरतलब है, अभी विधानसभा के चुनाव होने हैं। मुख्य रूप से चार राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में लड़ाई होनी है। परिणामों का पता तो दिसंबर में चलेगा, पर उसके बाद विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस और राहुल गांधी की क्या भूमिका होगी, यह भी देखना होगा, क्योंकि जैसे ही दिसंबर में विधानसभा चुनाव पूरे होंगे, वैसे ही लोकसभा चुनाव की घोषणा सिर पर होगी।
विपक्षी गठबंधन को ध्यान रखना होगा कि उनका मुकाबला एक संगठित पार्टी से है। सत्तारूढ़ गठबंधन के विचार को आप सही मानें या गलत मानें, उसकी विचारधारा में तुलनात्मक रूप से ज्यादा स्पष्टता है। सत्तारूढ़ गठबंधन को पता है कि उसका नेता कौन है और किसके फैसले पर आगे बढ़ना है। उसके नेता की अपनी लोकप्रियता है, उसके मुकाबले का कोई नेता विपक्षी गठबंधन में अभी उभरा नहीं है। फिर इंडिया को यह भी ध्यान रखना होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के पास गिनाने के लिए मुद्दे हैैं, चाहे वे लोक-कल्याणकारी योजनाएं हों या विदेश नीति संबंधी कोई कामयाबी। सत्तारूढ़ गठबंधन परिवारवाद की राजनीति और भ्रष्टाचार पर भी हमला करने वाला है।
पहले यह लग रहा था कि विपक्ष एकजुट नहीं होगा, लेकिन कई दलों के साथ आ जाने से भाजपा के लिए भी चुनौती बढ़ गई है। कई जगह सरकार विरोधी लहर, कनार्टक में कांग्रेस की जीत, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में कांग्रेस की मजबूत पकड़ और भारत जोड़ो यात्रा के दौरान लोगों का उत्साह भी विपक्ष की ताकत बना है। विपक्षी गठबंधन की बुनियाद में एक व्यापक सामाजिक गठजोड़ भी है, जो कई राज्यों में कड़े मुकाबले की स्थिति में है। ऐेसे में, चिंता भाजपा में भी हैै। हमने मध्य प्रदेश में देखा है, भाजपा अपने आला नेताओं व केंद्रीय मंत्रियों को भी उतार रही है।
दरअसल, भाजपा केंद्रीय स्तर पर बहुत मजबूत है और इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। आज भारतीय राजनीति में विपक्ष एक बहुत संगठित पार्टी के सामने खड़ा है और इसके लिए उसे दो-तीन मुद्दों को जल्दी सुलझाना होगा कि जैसे विचार, नेतृत्व और टीम संबंधी अड़चनों को जल्दी दूर करना होगा। विपक्षी गठबंधन अपने विवादों को जितनी जल्दी सुलझा ले, उसके लिए उतना ही अच्छा होगा। भाजपा से अगर मजबूती से लड़ना है, तो ऐसा करना ही होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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