तमिलनाडु : सजने लगा चुनावी चौसर
तमिलनाडु की मौजूदा राजनीति में यदि किसी व्यक्ति की कामयाबी देखने लायक है, तो वह मुख्यमंत्री ई के पलानीसामी ही हैं। वह न सिर्फ जयललिता मंत्रिमंडल के एक महत्वहीन मंत्री की छवि से बाहर निकलने में कामयाब...
तमिलनाडु की मौजूदा राजनीति में यदि किसी व्यक्ति की कामयाबी देखने लायक है, तो वह मुख्यमंत्री ई के पलानीसामी ही हैं। वह न सिर्फ जयललिता मंत्रिमंडल के एक महत्वहीन मंत्री की छवि से बाहर निकलने में कामयाब रहे, बल्कि आज तमिलनाडु की राजनीति के केंद्र में हैं और बदलाव की पटकथा लिखते हुए दिख रहे हैं। आने वाले विधानसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक का नेतृत्व पलानीसामी ही करेंगे। निस्संदेह, यह एक बेहद मुश्किल काम है कि अन्नाद्रमुक को लगातार तीसरी बार वह सत्ता में लेकर आएं, मगर उन पर यह आरोप नहीं लगाया जा सकता कि उन्होंने इसकी पर्याप्त कोशिश नहीं की।
जिस राज्य की राजनीति में लगातार दूसरा कार्यकाल ही किसी पार्टी या गठबंधन के लिए बड़ी उपलब्धि हो, वहां तीसरे कार्यकाल की अपेक्षा ही अपने आप में एक दुस्साहसी ख्याल है। लेकिन पलानीसामी के पास अपनी सत्ता को कायम रखने के वास्ते कोशिश करने के सिवा और कोई विकल्प नहीं है। बल्कि मन ही मन वह अन्नाद्रमुक को अपने नियंत्रण में रखने की रणनीतियां भी बना रहे होंगे। यदि आगामी विधानसभा चुनाव में पराजय हाथ आई, तो फिर पार्टी पर नियंत्रण के लिए पन्नीरसेल्वम के साथ संघर्ष काफी महत्वपूर्ण हो जाएगा।
इन दोनों नेताओं के बीच परदे के पीछे जारी जंग सामने आ चुकी है। पन्नीरसेल्वम ने अपने समर्थकों को यह कहकर अपना दांव चल दिया है कि उन्होंने मौजूदा सरकार में नंबर-दो बनना स्वीकार कर लिया, तो इसका यह मतलब नहीं कि यह स्थिति हमेशा के लिए स्वीकार कर ली है। पिछले महीने के मध्य में उनके समर्थकों ने एक तरह से आभासी बगावत कर दी थी। पन्नीरसेल्वम के गृह नगर तेनी की दीवारों को उनके समर्थकों ने पोस्टरों से पाट दिया था, जिनमें अगले चुनाव में मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर उन्हें पेश किया गया था। मंत्रिमंडल में दोनों गुटों के मंत्रियों ने मिलकर यह कोशिश भी की थी कि मामले को ठंडा किया जाए, मगर अब यह विवाद सुलझता हुआ नहीं दिखता।
पार्टी की शीर्ष निर्णायक संस्था- कार्यकारी समिति- में तमाम मंत्री, विधायक और राज्य व जिला स्तर के पार्टी पदाधिकारी समेत 300 सदस्य हैं। ये सदस्य सोमवार को एक अलिखित एजेंडे के तहत मिले, ताकि यह तय कर सकें कि पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री का अगला उम्मीदवार कौन होगा? चूंकि इसका उत्तर पूर्व निर्धारित है, इसलिए इस कवायद का असली मकसद दोनों नेताओं की सत्ता में हिस्सेदारी तय करने की ही रही। अन्नाद्रमुक के अंदरूनी आकलन के मुताबिक, पार्टी के 80 प्रतिशत नेता और कार्यकर्ता मुख्यमंत्री पलानीसामी के समर्थन में हैं। इससे पन्नीरसेल्वम के लिए अब मौके काफी सीमित रह गए हैं। पन्नीरसेल्वम पूर्व में तीन बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। दो बार जब जयललिता को जेल जाना पड़ा था और तीसरी बार उनकी मौत के बाद अंतरिम मुख्यमंत्री के रूप में। इन तीनों ही मौकों पर उन्हें यह पद उनकी गहरी वफादारी और इस बोध के तहत मिला था कि उनमें इतना राजनीतिक कौशल नहीं है कि वह इस पद पर बिठाने वाले को उखाड़ फेंकें।
पन्नीरसेल्वम के उलट उनके उत्तराधिकारी पलानीसामी ने पहले ही मौके में उस व्यक्ति का दामन झटक दिया, जिसने उन्हें इस पद पर मनोनीत किया था। जयललिता की हमसाया रहीं शशिकला नटराजन ने उनकी मौत के बाद पहले पन्नीरसेल्वम को उनका उत्तराधिकारी मनोनीत किया था, लेकिन फिर उन्हें कुछ खतरा महसूस हुआ और उन्होंने पलानीसामी को पन्नीरसेल्वम की जगह बिठा दिया। शशिकला को संदेह था कि पन्नीरसेल्वम भाजपा के साथ सांठगांठ कर रहे हैं, जो केंद्र में अपनी सत्ता के बूते परोक्ष रूप से अन्नाद्रमुक को नियंत्रित करना चाहती है। दरअसल, पलानीसामी को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे शशिकला की मंशा यह थी कि जब तक शोक की अवधि खत्म नहीं हो जाती और वह खुद इस पद पर काबिज होने की हालत में नहीं आ जातीं, तब तक इसे सुरक्षित हाथों में रखा जाए।
लेकिन वह दुर्भाग्यशाली रहीं। उन्हें जेल की सजा तो भुगतनी ही पड़ी, अगले 10 वर्षों तक उनके कोई चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई। हालात का फायदा उठाते हुए नवनियुक्त मुख्यमंत्री पलानीसामी ने न सिर्फ पार्टी में अपनी पकड़ मजबूत बनाई, बल्कि अब वह राज्य की चुनावी राजनीति में अपना कद गढ़ने में जुटे हैं। उन्होंने सरकार में नंबर दो रहे पन्नीरसेल्वम को बडे़ करीने से किनारे लगाया है। हाशिये पर पड़े पन्नीरसेल्वम अब पार्टी के भीतर कुछ शक्ति हासिल करने की कोशिश में हैं, ताकि वह अपने समर्थकों को संतुष्ट कर सकें।
अन्नाद्रमुक को पारंपरिक रूप से थेवर जाति का समर्थन मिलता रहा है। यह तमिलनाडु की एक काफी प्रभावशाली और ताकतवर मध्यवर्ती जाति है। शशिकला और पन्नीरसेल्वम इसी सामाजिक समूह से आते हैं। जयललिता के समय भी इस जाति का समर्थन अन्नाद्रमुक की रीढ़ था। खासकर दक्षिण तमिलनाडु में इसका काफी असर है। मुख्यमंत्री पलानीसामी गोंडर हैं। यह भी एक ताकतवर मध्यवर्ती जाति है और अन्नाद्रमुक का समर्थन करती आई है। खासकर राज्य के पश्चिमी भाग में यह अपना ज्यादा प्रभाव रखती है। पलानीसामी और पन्नीरसेल्वम, दोनों एक-दूसरे के साथ इसलिए बने हुए हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि अन्नाद्रमुक के टिके रहने के लिए इन दोनों जाति समूहों का सामाजिक गठजोड़ बहुत जरूरी है। अगले साल की शुरुआत में शशिकला के बेंगलुरु जेल से बाहर आने की अटकलें हैं। राज्य की राजनीति में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं।
भाजपा के लिए महत्वपूर्ण यह है कि अन्नाद्रमुक में कोई बिखराव न हो। वह परदे के पीछे से लगातार इसके लिए प्रयास करती रही है। हाल ही में शशिकला के भतीजे दिनाकरन ने दिल्ली की यात्रा की और कहा जाता है कि भाजपा नेताओं से मिलकर उन्होंने साथ काम करने की संभावनाओं को भी टटोला। तमिलनाडु को लेकर भाजपा की अनिश्चितता का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि हाल ही में घोषित पार्टी पदाधिकारियों की नई सूची में उसने इस राज्य से एक भी नाम को शामिल करने से परहेज बरता। इस बीच, डीएमके अपने गठबंधन को ठोस शक्ल देने और इसके सर्वमान्य मुख्यमंत्री उम्मीदवार स्टालिन के नेतृत्व में विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जुट गया है। चूंकि अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए तमिलनाडु में पासा सजने लगा है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)