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अमेरिकी सहयोग से बढ़ती सुरक्षा

भारत और अमेरिका के बीच मंगलवार को नई दिल्ली में 2 प्लस 2 वार्ता का तीसरा दौर पूरा हुआ। पहली वार्ता 2018 में हुई थी, तो दूसरी 2019 में। कह सकते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में...

अमेरिकी सहयोग से बढ़ती सुरक्षा
अरविंद गुप्ता, पूर्व डिप्टी एनएसए, डायरेक्टर, वीआईएफTue, 27 Oct 2020 10:22 PM
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भारत और अमेरिका के बीच मंगलवार को नई दिल्ली में 2 प्लस 2 वार्ता का तीसरा दौर पूरा हुआ। पहली वार्ता 2018 में हुई थी, तो दूसरी 2019 में। कह सकते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका-भारत के संबंधों में जो तीव्र विकास दिखा है, यह वार्ता एक तरह से उसकी अहम कड़ी है। इसलिए दोनों ही पक्ष इसे बहुत अधिक महत्व दे रहे हैं। 
तीसरी वार्ता पिछली दो वार्ताओं में लिए गए दूरगामी निर्णयों को आगे बढ़ाने और पुख्ता करने में महत्वपूर्ण योगदान करेगी। इस वार्ता का महत्व इसलिए भी है, क्योंकि अभी चीन व भारत के बीच सीमा पर तनाव है और दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने खड़ी हैं। चीन का जो आक्रामक रुख है, उसे दक्षिण चीन सागर और पूर्वी सागर में भी देखा जा सकता है, जहां जापान के साथ भी चीन का तनाव चल रहा है। अमेरिका ने चीन की इस संदर्भ में कड़ी आलोचना भी की है।
डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में चीन और अमेरिका के आपसी संबंधों में बहुत गिरावट आई है। दोनों देशों में व्यापार युद्ध चल रहा है। तकनीकी और व्यापार, दोनों ही मोरचों पर दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ चुका है। इसका दूरगामी असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। 
यह सब कोविड-19 के परिदृश्य में हो रहा है। अमेरिका ने चीन को विश्व में कोरोना वायरस फैलाने के लिए सीधे जिम्मेदार माना है। इस महामारी ने विश्व व्यवस्था पर गहरा असर डाला है। वैश्विक आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई है। लाखों लोग मारे गए हैं। इस पूरे परिप्रेक्ष्य में देखें, तो इस तीसरी 2प्लस 2 वार्ता का महत्व बहुत बढ़ जाता है। यानी, इस वार्ता की पृष्ठभूमि में तीन बातें हैं, पहली, चीन-भारत के बीच लद्दाख क्षेत्र में भीषण तनाव, दूसरी, चीन का आक्रामक रुख, और तीसरी, कोविड-19 महामारी का वैश्विक दुष्प्रभाव।
भारत और अमेरिका के बीच पिछले कुछ वर्षों में रक्षा सहयोग काफी बढ़ चुका है, खासतौर से वर्ष 2005 के बाद से, जब दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग पर सहमति बनी थी। इसके बाद दोनों देशों ने 2006 में एक रक्षा कार्य-ढांचे संबंधी समझौते पर भी हस्ताक्षर किए थे। अमेरिकी विदेशी मंत्री माइक पोम्पियो की हालिया भारत यात्रा और इस 2प्लस2 वार्ता में खास बात यह भी रही कि दोनों पक्षों ने एक बुनियादी आदान-प्रदान और सहयोग समझौता यानी बेका (बीईसीए) एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए हैं। यह समझौता अपनी शृंखला में चौथा है। इस पर हस्ताक्षर के बाद अमेरिका-भारत की सेनाओं में सूचनाओं का आदान-प्रदान बढ़ जाएगा। महत्वपूर्ण सैटेलाइट डाटा और रक्षा सूचनाओं को साझा करने के लिए भी सहयोग बढ़ेगा। दोनों देशों की सेनाओं में समन्वय इस कदर मजबूत होगा कि आपसी युद्धाभ्यास की गुणवत्ता पर इसका गहरा और सकारात्मक असर पड़ेगा। यह एक बड़ी उपलब्धि है। इससे दोनों देशों को क्षेत्रीय सुरक्षा के मसलों पर सहयोग करने में मदद मिलेगी।
एक और महत्वपूर्ण बात। वार्ता के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत चाहता है, रक्षा उत्पादन क्षेत्र में अमेरिकी कंपनियां भारत में निवेश करें। उनकी कंपनियां यहां आएं और अपने हथियार व औजार भारतीय कंपनियों के सहयोग से यहां बनाएं, ताकि भारत को फायदा हो। यहां जो निर्माण हो, अमेरिका की सेनाएं भी उनका उपयोग करें। अगर ये बातें साकार होती हैं, तो एक बड़ी कामयाबी हमारे हिस्से आएगी।
गौर करने की बात यह है, इस वार्ता से पहले कुछ महत्वपूर्ण राजनयिक घटनाएं इंडो-पैसिफिक के संदर्भ में हुई हैं। पिछले दिनों टोक्यो में क्वाड की बैठक हुई, जिसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच विदेश मंत्री स्तर की वार्ता हुई और उसके बाद भारत ने ऑस्ट्रेलिया की नौसेना को मालाबार युद्धाभ्यास में शामिल होने का न्योता दिया। भारत और अमेरिका, दोनों मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक के पक्ष में हैं, जहां अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक एक व्यवस्था कायम हो और समुद्री व हवाई-मार्गों से आने-जाने में रोक-टोक न हो।
जाहिर है, चीन इन बदलते घटनाक्रम को गौर से देख रहा है। उसे थोड़ी घबराहट भी हुई है। यही वजह है कि उसकी तरफ से यह बयान आया है कि क्वाड के तहत एकत्र चारों देश नाटो का एशियाई संस्करण तो नहीं बना रहे? हालांकि, भारत की ओर से जो वक्तव्य रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेशी मंत्री एस जयशंकर ने दिए हैं, उनमें चीन की खुलकर बात नहीं की गई है। हां, अमेरिकी पक्ष ने जरूर चीन की चर्चा की है। 
इस वार्ता का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि दोनों देश मैरीटाइम डोमेन, साइबर और अंतरिक्ष क्षेत्रों में अपना सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए हैं। इसका मतलब यह है कि अब दोनों देशों को यह पता रहेगा कि कौन जहाज कहां है? समुद्र में कहां-क्या चल रहा है? आदि। इन सबके बारे में सूचनाएं परस्पर साझा होंगी। दोनों पक्षों ने आतंकवाद के विरुद्ध भी बात की है। 
भारत का यह फैसला लेना भी दिलचस्प है कि हमारा एक नौसेना अधिकारी अमेरिका की सेंट्रल कमांड में पोस्टेड होगा, जो बहरीन में है, जबकि अमेरिका का एक सैन्य अफसर भारत स्थित इंटरनेशनल फ्यूजन सेंटर में बैठेगा, जहां हिंद महासागर में तमाम जहाजों की सूचनाएं दर्ज होती हैं। 
इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिका के साथ हमारा सहयोग बढ़ रहा है, क्योंकि चीन की हरकतों से क्षेत्र में तनाव बढ़ रहा है। सभी देश चाहते हैं कि चीन पर लगाम लगे। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी इशारा किया कि दुनिया बहुधु्रवीय हुई है और कहीं ऐसा न हो कि एशिया एकधु्रवीय हो जाए। इसलिए चीन की आक्रामकता को रोकना जरूरी है। उसे नहीं रोका गया, तो उसका सीधा असर भारत पर होगा। बहरहाल, नवंबर में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में सत्ता-परिवर्तन से अमेरिका के लिए भारत के महत्व में कोई कमी नहीं आएगी और जो समझौता अभी हुआ है, वह आगे भी बहुत मायने रखेगा। इससे दोनों देशों के बीच वार्ता और सहयोग बढ़ेगा।  
    (ये लेखक के अपने विचार हैं) 

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