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कम कमाई पर न देना पड़े आयकर

बजट की तैयारी शुरू हो गई है। पिछले सोमवार से वित्त मंत्री ने सरकार के बाहर के आर्थिक विशेषज्ञों और तमाम ऐसे तबकों के साथ बजट-बैठकें शुरू कर दीं, जिन पर बजट का असर पड़ता है। बजट का नाम सुनते ही...

कम कमाई पर न देना पड़े आयकर
Pankaj Tomarआलोक जोशी, वरिष्ठ पत्रकारSun, 27 Nov 2022 11:52 PM
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बजट की तैयारी शुरू हो गई है। पिछले सोमवार से वित्त मंत्री ने सरकार के बाहर के आर्थिक विशेषज्ञों और तमाम ऐसे तबकों के साथ बजट-बैठकें शुरू कर दीं, जिन पर बजट का असर पड़ता है। बजट का नाम सुनते ही मध्यवर्ग के मन में फिर टैक्स का सवाल उठने लगा है। अर्थशा्त्रिरयों, उद्योगपतियों और बड़े व्यापारियों को छोड़ दें, तो कुछ साल पहले तक आम आदमी दो चीजें समझने के लिए ही बजट देखा या पढ़ा करता था। एक, क्या महंगा और क्या सस्ता हुआ। और दूसरा, आयकर में क्या घटा और क्या बढ़ा। जीएसटी लागू होने के साथ ही महंगे-सस्ते का खेल करीब-करीब बंद हो चुका है, लेकिन अभी आयकर के मामले में उम्मीद और आशंका के दरवाजे खुले हुए हैं।
साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरी सरकार आने के बाद से बजट में आयकर के मोर्चे पर एक ही बड़ा एलान हुआ है। 2020 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टैक्स स्लैब में बदलाव के साथ ही एक नई कर प्रणाली की शुरुआत की थी। इसके तहत जो लोग किसी भी तरह की टैक्स छूट नहीं मागेंगे, उनके लिए टैक्स की दरें कम कर दी गईं। यही नहीं, 30 प्रतिशत कर-सीमा, जो बरसों से 10 लाख रुपये पर अटकी पड़ी थी, उसे भी बढ़ाकर 15 लाख कर दिया गया। मगर इसके साथ ही जिन चीजों पर आयकर से छूट ली जा सकती थी, उस सूची में से 70 मद हटा दिए गए। एक बड़ा बदलाव यह भी हुआ कि कंपनियों पर डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स हटा दिया गया। अब डिविडेंड पर टैक्स भरने की जिम्मेदारी 
वापस उन शेयरधारकों की हो गई, जिनके खाते में डिविडेंड जाता है। 

हालांकि, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल का आखिरी बजट पेश करते हुए 2019 में कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने मध्यवर्ग को खुश करने का इंतजाम किया था। उन्होंने आयकर में स्टैंडर्ड डिडक्शन को 40 हजार से बढ़ाकर 50 हजार रुपये किया, साथ ही, यह इंतजाम भी किया कि पांच लाख रुपये तक कमानेवाले को टैक्स न देना पड़े। उन्होंने खाली पड़े मकान के संभावित किराये पर लगनेवाले टैक्स को भी खत्म किया और बैंक खातों के ब्याज पर टीडीएस की सीमा भी 10 हजार से बढ़ाकर 40 हजार कर दी।
इस तरह देखें, तो अब आयकर में राहत की उम्मीद पालना गलत नहीं है। परंपरा यही कहती है कि चुनाव जीतने के बाद सरकार पहले अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए कठोर फैसले करती है, फिर चुनाव नजदीक आने पर लोकलुभावन बजट पेश करती है। इसीलिए चुनाव से पहले के वर्षों में उम्मीदें बढ़नी शुरू हो जाती हैं। इस बार यह मांग बढ़ने की और भी वजहें हैं कि सरकार को करमुक्त आमदनी की सीमा बढ़ानी चाहिए और टैक्स स्लैब भी ऊपर उठाने चाहिए। सबसे बड़ी वजह यह है कि कोरोना-काल में जहां देश की अर्थव्यवस्था और कारोबार को झटका लगा, वहीं आम आदमी की जेब और परिवार के बजट को भी चोट पहुंची। सरकार ने उद्योगों, व्यापारियों, गरीबों, यहां तक कि ईएमआई भरनेवालों और किराये पर रहनेवाले लोगों तक को कुछ न कुछ राहत देने की कोशिश की, पर जो लोग मध्यवर्ग में आते हैं, पूरा टैक्स चुकाते हैं, अपने मकान में रहते हैं और शायद एक और मकान से किराया पाते हैं, जिन पर किसी तरह का कर्ज नहीं है, उनको बेसहारा छोड़ दिया। पिछले दो साल तो उन्होंने सब्र कर लिया, लेकिन इस साल जब महीने-दर-महीने रिकॉर्डतोड़ टैक्स वसूली की खबरें आ रही हैं, तो उन्हें लगता है कि अब सरकार इस हाल में है कि उनकी भी सुध ले।

यह सोचनेवाले सिर्फ मध्यवर्ग के लोग नहीं हैं। भारत का सबसे तेजतर्रार और धनी उद्योगपतियों का संगठन सीआईआई भी वित्त मंत्री से अपनी बजट-चर्चा में सलाह दे आया है कि सरकार आयकर में कटौती और स्लैब में बदलाव पर विचार करे। उसका कहना है कि बाजार में मांग बढ़ाने के लिए यह जरूरी है। विशेषज्ञ लंबे समय से मानते रहे हैं कि जब भी आयकर में छूट या राहत दी जाती है, तो यह बाजार में खपत बढ़ाने में मददगार होती है। इस तरह खपत या मांग बढ़ने के कारण कारखानों की क्षमता बढ़ाने की जरूरत पड़ने लगती है और कंपनियां कारोबार में नया पैसा लगाती हैं। यानी, बैंकों से कर्ज की मांग बढ़ती है और रोजगार का रास्ता खुलता है।
उधर एक नया वितंडा खड़ा हो चुका है ईडब्ल्यूएस या आर्थिक रूप से कमजोर तबकों को आरक्षण के फैसले से। इसमें कहा गया है कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लिए वही लोग पात्र माने जाएंगे, जिनकी आमदनी आठ लाख रुपये से कम हो। अब सवाल उठ रहा है कि एक तरफ तो ढाई लाख से ऊपर की कमाई पर आयकर और दूसरी तरफ आठ लाख से कम कमाने वाला आर्थिक रूप से कमजोर, यह उलटबांसी कैसे चलेगी? मद्रास हाईकोर्ट में बाकायदा याचिका दायर कर मांग की गई है कि आठ लाख रुपये तक की आमदनी को करमुक्त किया जाए। अदालत ने इस पर सरकार को नोटिस भेजा है और सुनवाई के लिए अगले महीने की तारीख दी है।

कुल मिलाकर, हालात ऐसे बनते दिख रहे हैं कि वित्त मंत्री इस बार मध्यवर्ग को, खासकर नौकरीपेशा लोगों को खुशखबरी दे सकती हैं। मगर यहां भी एक पेच है। दरअसल, महंगाई का आंकड़ा लगातार 10 महीने से रिजर्व बैंक के काबू से बाहर है। इसके आसार भी बहुत कम हैं कि अगले दो महीने में इस मोर्चे पर कोई बड़ी फतह हो पाएगी। लिहाजा, वित्त मंत्री रिजर्व बैंक के रास्ते में शायद ही कोई और अड़चन खड़ी करना चाहेंगी। इस वक्त महंगाई पर काबू पाना सिर्फ रिजर्व बैंक के लिए नहीं, भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती है, और अगर आयकर की छूट मिली, तो मामला उलटा हो सकता है।
एक वजह और है, जो सीधे राजनीति से जुड़ी है। अगला बजट लोकसभा चुनाव के पहले का आखिरी बजट नहीं है। 2024 में भी वित्त मंत्री के पास मौका होगा। संभव है कि सरकार अपनी लोकलुभावन योजनाएं और घोषणाएं उस वक्त के लिए सुरक्षित रखना चाहे। स्पष्ट है, यह अभी नहीं कह सकते कि तमाम मांग व सिफारिशों के बावजूद आयकर कम होने या टैक्स स्लैब में भारी फेरबदल जैसी खबरें इस बजट से साकार हो सकेंगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) 

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