अगर आप दूर नहीं कर सकते गरीबी, बीमारी
माननीय वित्त मंत्री ने कहा है कि आयव्ययक (या बजट) तैयार करते हुए उन्हें कुछ ऐसी परिस्थितियों का ख्याल रखना पड़ा है, जिनका संबंध भारत से ही नहीं, अपितु सारे संसार से है। हो सकता है कि मंत्री महोदय...
माननीय वित्त मंत्री ने कहा है कि आयव्ययक (या बजट) तैयार करते हुए उन्हें कुछ ऐसी परिस्थितियों का ख्याल रखना पड़ा है, जिनका संबंध भारत से ही नहीं, अपितु सारे संसार से है। हो सकता है कि मंत्री महोदय इससे संतुष्ट हो जाएं, पर इससे करोड़ों व्यक्तियों की आकांक्षाएं शांत नहीं होंगी। वह तो अनुमान लगा रहे थे कि प्रथम निर्वाचित संसद का प्रथम आयव्ययक वर्तमान कठिन समस्याओं का कोई न कोई संतोषजनक हल अवश्य निकालेगा, पर वास्तव में हुआ विपरीत। लोगों की आकांक्षाएं पूरी नहीं हुई हैं। ...ऐसा मालूम होता है कि स्वतंत्रता के पांच वर्ष बीतने पर हमारी रोकड़ बाकी में कोई 200 करोड़ रुपये की कमी आ गई है और अब वह घटकर 40 करोड़ रुपये मात्र रह गई है।... वित्त मंत्री ने इस बात पर गर्व का प्रदर्शन किया है कि हमारा औद्योगिक उत्पादन बढ़ गया है। मैं यह मानता हूं, परंतु क्या पूछ सकता हूं कि क्या हम अपनी वस्तुओं को विदेश में बेच सकते हैं? ...हम अपनी बहुत सी चीजों को देश के अंदर बेचने में भी सफल नहीं हो सके हैं। वित्त मंत्री ने तो प्रतीक्षा की नीति अपना ली है, परंतु लोगों के कष्ट बढ़ते जा रहे हैं ।
...हम लगभग 250 या 300 करोड़ रुपये का खाद्य प्रति वर्ष बाहर से मंगाने लगे हैं। ...हम दो वर्ष से 40-50 लाख टन खाद्यान्न का आयात कर रहे हैं। कीमत भी हम अधिक दे रहे हैं। खाद्य-सहायता के बंद किए जाने से भी स्थिति बहुत गंभीर हो गई है। ...हमसे कहा जाता है कि देश में खाद्यान्न का अभाव नहीं है। ...लोगों को तो भोजन चाहिए। आंकड़े मात्र प्रस्तुत करने से भूखों का पेट नहीं भरा जा सकता। आंकड़े तो जिस तरह चाहें, दिए जा सकते हैं। अधिक अन्न उपजाओ आंदोलन तो असफल सिद्ध हुआ है। मैं नहीं कह सकता कि वित्त मंत्री इस बात को मानने के लिए तैयार हैं या नहीं। अब तक हम अधिक अन्न उपजाओ आंदोलन पर 70 करोड़ रुपये खर्च कर चुके हैं।
मैं जानता हूं कि वित्त मंत्री आंकड़ों में बहुत दिलचस्पी लेते हैं। खाद्य स्थिति के संबंध में कार्रवाई करते समय हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम अपनी वास्तविक दशा को समझें, हमें यही पता नहीं होता कि हम कितना उत्पादन करते हैं या हमें कितने खाद्यान्न की जरूरत है। ...किसी न किसी प्रकार राशन की व्यवस्था के अंतर्गत हम केवल 12 करोड़ 60 लाख व्यक्तियों को खाद्यान्न दे रहे हैं। उनके लिए हमें 90 लाख टन खाद्यान्न की आवश्यकता पड़ती है, परंतु हम 30 लाख टन खाद्यान्न का समाहार कर सकते हैं, अत: 60 लाख टन सारे देश की कमी रही। मैंने गत वर्ष सरकार को चेतावनी दी थी कि यदि हम इस आधार पर चले, तो भारत कभी भी आत्मनिर्भर नहीं हो सकेगा और हम किसी भी समस्या का हल नहीं निकाल सकेंगे।
निस्संदेह, हम इन विकास योजनाओं से बड़ी-बड़ी आशाएं लगाए बैठे हैं, परंतु इनके संबंध में हमें बहुत सावधान रहना है। ...क्या सरकार के पास इतना धन है कि वह इन योजनाओं को पूरा कर सके? हम इन योजनाओं पर करीब 500-600 करोड़ रुपये खर्च करते हैं, परंतु इन योजनाओं के लिए हमें अधिकाधिक विदेशी सहायता लेनी पड़ रही है। मैं उन व्यक्तियों में से नहीं हूं, जो यह समझते हैं कि विदेशी सहायता लेने से भारत अपने आपको बेच देगा। ...परंतु हमें विदेशी मदद की कोई न कोई सीमा तय करनी ही होगी। ...आज हम अपनी खाद्य जरूरतों के लिए भी विदेश पर निर्भर हैं। ऐसे देश की स्वतंत्र विदेश नीति नहीं हो सकती, तो फिर इस सबका इलाज क्या है?
...उस दिन प्रधानमंत्री ने कहा कि आज विदेशी लोग हमारी सरकार की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे हैं। इसमें तो कोई संदेह नहीं कि भारत ने कुछ महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, परंतु हमें केवल विदेशियों द्वारा की गई सराहना पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए। हमें यह भी देखना चाहिए कि हमारी अपनी जनता हमारे बारे में क्या कुछ कह रही है। यदि आप जनता को उचित मूल्य पर खाद्यान्न नहीं दे सकते, यदि आप देश से बीमारी और गरीबी दूर नहीं कर सकते, तो आपकी सरकार के अस्तित्व का आधार ही खत्म हो जाता है। जब तक जनता की ये समस्याएं हल नहीं होंगी, तब तक वह आप की राष्ट्र-निर्माण की योजनाओं में पर्याप्त सहयोग नहीं देगी। अत: मैं कहता हूं कि प्रस्तुत आयव्यय सर्वथा अनुपयोगी है और उससे जन साधारण में आशा का संचार नहीं होता है।
(लोकसभा में दिए गए भाषण के अंश)