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ताकि और गर्व से कहें, हम बिहारी हैं

पिछले दो सप्ताह से अभिनेता मनोज वाजपेयी द्वारा गाया गया एक रैप गीत बम्बई में का बा  दिलो-दिमाग में गूंज रहा है। यू ट्यूब पर 50 लाख से ज्यादा बार इसे देखा जा चुका है और इससे कई गुना ज्यादा लोगों...

ताकि और गर्व से कहें, हम बिहारी हैं
ज्ञानेश उपाध्याय, फीचर एडिटर, हिन्दुस्तानFri, 25 Sep 2020 10:58 PM
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पिछले दो सप्ताह से अभिनेता मनोज वाजपेयी द्वारा गाया गया एक रैप गीत बम्बई में का बा  दिलो-दिमाग में गूंज रहा है। यू ट्यूब पर 50 लाख से ज्यादा बार इसे देखा जा चुका है और इससे कई गुना ज्यादा लोगों के बीच यह स्वतंत्र रूप से देखा-सुना जा रहा है। आधुनिक ध्वनियों के कोलाज के बीच इस भोजपुरी गीत की व्यंजना किसी भी बिहारी के मन को अंदर तक भिगोने की क्षमता रखती है। यह कोई उत्सव गीत नहीं है, यह शोक गीत भी है और चुनौती गीत भी। यह बिहारियों के आगे कुआं और पीछे खाई वाली स्थिति को सामने रख देता है। यह गीत बता देता है कि न मुंबई में कुछ धरा है और न लौटकर आराम है, कुल मिलाकर, बिहारियों के सामने बहुत काम हैं। 
यह गीत पूरा परिदृश्य सामने रख देता है, आज परदेस गए असंख्य बिहारी किस तरह से ठोकर खा रहे हैं, क्या सोच रहे हैं और घर-जवार लौट जाना उनका एक हर पल दिल-लगा सपना है। बिहार में दो बीघे में घर है, लेकिन दूर किसी शहर में टेंपू में सोने वाले कितने बिहारी होंगे? प्रवासी बिहारियों का सही हिसाब-किताब ही जब किसी के पास न हो, तो उनके दर्द और आंसुओं पर भला किसकी निगाह जाएगी? 
इस गीत का असली सवाल यह नहीं कि मुंबई में क्या है, कायदे का सवाल तो यह है कि बिहार में क्या है? संक्षेप में कहें, तो बिहारी बुनियाद बहुत मजबूत है और इतिहास भी अचंभित करता है, लेकिन वर्तमान को हम कितना संवार पाए हैं? कभी गौरव का प्रतीक रहे बिहार को हम कितना संजो पाए हैं? 
लोग बिहारियों को अक्सर याद दिलाते रहते हैं कि होंगे कभी आप ऐसे कि डरकर सिकंदर भी लौट गया होगा, लेकिन आप आज क्या हैं? बस नाम भर ही तो रह गया है, आप उलझ गए हैं। जैसे ठेपहां गांव में जीरादेई रेलवे स्टेशन बना दिया, लेकिन देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थली जीरादेई तो वहां से करीब चार-पांच किलोमीटर दूर है। ऐसे में, ठेपहां गांव भी अपनी पहचान तलाश रहा है और जीरादेई को भी अपने इतिहास से उठकर अपनी नई गौरव गाथा लिखनी है। राज्य की करीब 21 नदियों के जल से नम होती हवा में एक पुरबिया पुकार है, बिहार अपने पुरुषार्थ से अतीत में इतनी लंबी लकीरें खींच चुका है कि अब छोटी-छोटी लकीरों से काम नहीं चलने वाला। अब इक्का-दुक्का नए आदर्शों के दम पर सीना चौड़ा नहीं किया जा सकता, बाहरी दुनिया की गति के साथ कदमताल करना होगा। पुरानी गौरवगाथा से निकलकर वर्तमान की जमीन पर आना होगा। वैशाली गणतंत्र के गुणगान में खोने की बजाय श्रमिकों का बाड़ा हो जाने की जमीनी वजहों को खंगालना होगा। अपने राष्ट्रीय राजनीतिक रसूख की कमजोर पड़ती मचान से नीचे उतरना होगा। जिन बिहारी मजदूरों को मुंबई-दिल्ली में हांका जाता है, वे अपने राज्य में अपने लोगों के बीच कितने दुलारे जाते हैं? 
भूलना थोड़ा मुश्किल है, पिछली सदी में एक बुरा वक्त था, जब बिहारी शब्द कुछ महानगरों में अपशब्द बन गया था। लोग बिहारियों को किराये पर मकान देने में हिचकते थे। यह बिहारियों ही नहीं, बल्कि हमारे देश के लिए उपलब्धि है कि हम उस स्याह दौर से निकल आए हैं। लोग अब बिहारियों को भी समझने लगे हैं। लोग जानने लगे हैं कि सूर्य जैसे सबसे उपयोगी ग्रह की पूजा करने वाले बिहारियों की भी एक समृद्ध चिंतन परंपरा है। छठ के नए दीप बिहार के बाहर अमेरिका तक तमाम घाटों पर अपना उजाला बढ़ाने लगे हैं। 
दुनिया इतना तो जान गई है कि बिहारियों की भी अपनी खासियत है। सबसे बड़ी खासियत है इनका मेहनतकश होना। अनेक गुजराती, मारवाड़ी या पंजाबी उद्यमी मिल जाते हैं, जो मानते हैं कि बिहारियों की मेहनत से ही उनकी उद्यमशीलता, फैक्टरी या खेती चल रही है। दूसरी खासियत है आत्मविश्वास। लॉकडाउन के समय देश ने बिहारियों को 1,200 से 1,500 किलोमीटर तक पैदल चलकर घर-जवार लौटते देखा है। वे चलना शुरू करते हैं और कहीं भी पहुंचने का दमखम रखते हैं। तीसरी खासियत है संतोष। जेब में पैसे कम होंगे, लेकिन मन में पूरा आत्मबल होगा। कम से कम में गुजारा करके भी आनंद में रहने का ऐसा माद्दा विरल ही है। 
यह मेहनत, आत्मविश्वास और संतोष बिहार की अपनी सबसे गाढ़ी पूंजी है, जिसके दम पर बिहार को अपनी नई गाथा रचनी है। एक बार फिर ठीक से देख लेना चाहिए कि बिहार में जो या जैसा है, वह या वैसा क्यों है? कब और कैसे बिहार और बिहारी गौरव पूरी तरह लौटेगा? 
आजाद देश में कभी बिहार सबसे सुशासित राज्य था, अब फिर हो सकता है, लेकिन अगर हम ध्यान देंगे, तो पाएंगे कि उस सुशासित राज्य में उसके घर-घर और गांव-गांव का योगदान हुआ करता था। आज किसी एक गांव के झगड़े गिनना शुरू कीजिए, तो मन भारी हो जाएगा। सरकारें आती-जाती रहेंगी, लेकिन अपने घर-गांव के झगड़े तो हमें खुद सुलझाने पड़ेंगे, ताकि ये हमारी राह न रोकें। बिहार से ही देश की आजादी की जंग शुरू करने वाले महात्मा गांधी ने चेताया था कि विकास चाहते हो, तो केवल सरकार के भरोसे मत रहना। यह चेतावनी आज बिहारियों के संदर्भ में ज्यादा सार्थक लगती है। राज्य के लोग आगे आएंगे, तभी राज्य तेजी से विकसित होगा। हम विकास कर रहे हैं, लेकिन हमारी गति दूसरे अपेक्षाकृत विकसित राज्यों से तेज होनी चाहिए, तभी हमारी गिरावट को लोग भुला पाएंगे। 
आज बिहारियों की नाकामियों ही नहीं, बल्कि कामयाबियों की सूची भी बहुत लंबी है। ऐसे में, जो चीजें और जो लोग बिहारी अस्मिता के दामन पर दाग लगाते हैं, उन्हें छोड़कर उन खूबियों के साथ आगे बढ़ना होगा, जो हमें गौरव से भर देती हैं। हम तमाम बिहारी और प्रवासी बिहारियों को अपने गिरेबान में झांकना होगा, ‘बम्बई में का बा’ जैसे सवाल उठाते गीत को दो सप्ताह में सिर्फ 50 लाख व्यू और किसी हल्के-भटकाते गीत को दो दिन में ही 50 लाख व्यू क्यों मिल जाते हैं?

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