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मतलब कि खोदा पहाड़ और निकली चुहिया 

मैं इस बिल का समर्थन करने के लिए खड़ा हुआ हूं। मगर इस बिल में सरकार की तरफ से जो कदम उठाया गया है, उसका मैं सख्त विरोध करता हूं, क्योंकि मैं समझता हूं कि इस संशोधन के जरिये से जो हिस्सा निकाल दिया गया.

मतलब कि खोदा पहाड़ और निकली चुहिया 
Naman Dixitसी माधव रेड्डी, वरिष्ठ राजनेता, तेलुगुदेशमSat, 25 Jun 2022 09:51 PM
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मैं इस बिल का समर्थन करने के लिए खड़ा हुआ हूं। मगर इस बिल में सरकार की तरफ से जो कदम उठाया गया है, उसका मैं सख्त विरोध करता हूं, क्योंकि मैं समझता हूं कि इस संशोधन के जरिये से जो हिस्सा निकाल दिया गया है, उससे इस बिल के दांत उखड़ गए हैं और यह बिल बिल्कुल बेजान हो गया है। हम यह समझते थे कि इस बिल के जरिये दलबदल रुक जाएंगे, टूट रुक जाएगी और हिन्दुस्तान में राजनीतिक पार्टियों के सुदृढ़ीकरण का सिलसिला शुरू हो जाएगा। मगर ऐसा लगा इस बिल से कि खोदा पहाड़ और निकली चुहिया। इस बेजान बिल से यह ठीक है कि कुछ  शुरुआत हुई है, अच्छी शुरुआत हुई है।

यह पहला कदम है और सही दिशा में है। हमें आशा करनी चाहिए कि यह अंतिम कदम नहीं होगा। कई चीजें इसमें कही गई हैं, जिनमें सुधार जरूरी है और आहिस्ता-आहिस्ता सुधार होगा। मैं यह सब इसलिए कह रहा हूं, हमारी पार्टी इस नीति पर इसलिए यह सोचती है कि हमारे जख्म बहुत ताजा हैं। हम अभी अपने घावों को सहला रहे हैं। हमारे माननीय दोस्त मधु दण्डवते जी और कुछ और लोग जो हैं, उनके जख्म पुराने हो गए हैं और उन्हें याद नहीं है कि किस तरह से वह टूट-फूट के शिकार हो गए थे। मगर आंध्र प्रदेश में हमें याद है, हमें किस मुसीबत से गुजरना पड़ा।
... हमारी समझ में नहीं आता कि आप एक पार्टी की तरफ से चुने जाते हैं, यहां आ जाते हैं, बैठते हैं और पार्टी के खिलाफ काम करते हैं, मगर पार्टी में बने रहते हैं। निष्कासित होने के बावजूद लोगों को आजादी मिलती है कि एक दफा पार्टी की तरफ से चुन लिए जाते हैं, लेकिन पार्टी की फिक्र नहीं होती है। पार्टी का कोई काम नहीं करेंगे, अनुशासन नहीं मानेंगे और पार्टी का जब व्हिप जारी होता है, उसके खिलाफ काम करेंगे, लेकिन फिर भी वे सदस्य बने रहेंगे।... 

अपनी राजनीतिक पार्टी का जो अनुशासन होता है, उसको मानना हर एक के लिए जरूरी होता है। मैं मानता हूं कि पार्टी के खिलाफ जाकर फिर यहां मेंबर बने रहना, यह कोई उचित बात नहीं है। इसलिए मैं इसका विरोध करता हूं।
इसी तरह से टूट की बात है। टूट में भी मैं समझता हूं कि टूट एक शोधित दल-बदल है। जब एक आदमी निकलता है, तो उसको कहेंगे दल-बदल और जब 40 लोग इकट्ठे होकर निकलते हैं, तो उसको टूट कहेंगे। इसका मतलब है आप 40 लोगों को लाइसेंस दे रहे हैं। मैं समझता हूं कि यह विभाजन और विलय का इतिहास है व इसमें विभाजन अधिक और विलय कम है।
विलय तो थोड़ा हुआ, लेकिन हर बार पार्टी टूटी। जिस राजनीतिक पार्टी का मैं सदस्य था, 35 साल पहले उस पार्टी के तीन टुकड़े हो गए। वह पार्टी दूसरी पार्टी में मिल गई, फिर उस पार्टी के भी चार टुकड़े हो गए। हर पार्टी के एक-एक, दो-दो टुकड़े हो गए । पार्टी बनी टूटी और फिर टूटी, फिर बनी और फिर टूटी। यह टूटने और फिर विलय का सिलसिला काफी दर्दभरा रहा और हम कुछ नहीं कर पाए।
हम देश में दो दलीय व्यवस्था विकसित नहीं कर पाए,... पार्टियां बनती गईं और बिगड़ती गईं। पार्टी बनाना तो आसान है, हाजी मस्तान जैसे लोग भी पार्टी बना देते हैं। एक आदमी रहेगा और पार्टी बन जाएगी। उसका एक घोषणापत्र भी होगा और बयान भी जारी होगा।...पार्टी बनाने के सिलसिले में कोई अनुशासन नहीं है।

देश में पहली बार हम दल प्रणाली में अनुशासन कायम कर रहे हैं और आप वह चाहते नहीं हैं। आप यह चाहते हैं कि इस वक्त जो कुछ मिल रहा है, उससे हमें खुश होना चाहिए, किंतु जैसा कि मैंने कहा, यह एक सही दिशा में सही कदम है। मैं जानता हूं कि अलबर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि हम जो भी कदम उठाते हैं, पिछले कदम का परिणाम होता है।
अब तक जितने कदम आपने लिए, वे सब गलत लिए। अब कम से कम एक कदम तो सही पड़ा और मैं उम्मीद करता हूं कि दूसरे कई कदम अब सही आएंगे। जैसा राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी कहा गया है कि चुनावी कानून संशोधित होगा और उसमें कई चीजें आ जाएंगी। मीडिया का इस्तेमाल (अभी) सिर्फ एक पार्टी करती है, सबको चांस (अवसर) मिलेगा। इलेक्शन के लिए फंडिंग की भी बात कही गई है, ताकि धन की राजनीति खत्म हो जाए।
    (लोकसभा में दिए गए भाषण का अंश) 

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