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प्रतिष्ठा का सवाल बनता बंगाल

भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह ने कहा था, पार्टी का सबसे बड़ा लक्ष्य है राष्ट्रव्यापी पार्टी बनना। भाजपा के बारे में धारणा रही है कि यह हिंदी हृदय प्रदेश की पार्टी है। लेकिन...

प्रतिष्ठा का सवाल बनता बंगाल
जयंत घोषाल, वरिष्ठ पत्रकारMon, 21 Dec 2020 11:10 PM
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भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह ने कहा था, पार्टी का सबसे बड़ा लक्ष्य है राष्ट्रव्यापी पार्टी बनना। भाजपा के बारे में धारणा रही है कि यह हिंदी हृदय प्रदेश की पार्टी है। लेकिन दक्षिणी और पूर्वी भारत में पार्टी को पहुंचना है और धीरे-धीरे अपने बल पर पूरे देश में ही बढ़ना है। अब देखिए, असम, त्रिपुरा में भाजपा सत्ता में आ चुकी है। पूर्वोत्तर के आठ राज्यों (जिनको सात बहन और एक भाई- सिक्किम कहते हैं) में भाजपा का कमोबेश प्रसार हुआ है। दक्षिण भारत में कर्नाटक  में वह मजबूत हुई है, तेलंगाना में भी विस्तार हुआ है, लेकिन पश्चिम बंगाल में बहुत वर्षों से कोशिश चल रही है। 
पश्चिम बंगाल के श्यामा प्रसाद मुखर्जी जनसंघ के संस्थापक थे, लेकिन इस राज्य में भाजपा कभी सत्ता में नहीं आई है। मुझे याद है, अटल बिहारी वाजपेयी के साथ कालका मेल में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी कवर करने मैं जा रहा था। मैंने वाजपेयी से पूछा, आप पश्चिम बंगाल जा रहे हैं, आपका मकसद क्या है? तब उन्होंने जवाब दिया था कि हम श्यामा प्रसाद मुखर्जी के राज्य में भाजपा का सूर्योदय देखना चाहते हैं। तब पंचायत या वार्ड तक में भाजपा का कोई प्रतिनिधि नहीं था। बहुत कोशिश के बाद भी कामयाबी नहीं मिल रही थी, लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह के समय परिदृश्य बदला है, लोकसभा में पश्चिम बंगाल से भाजपा के 18 सांसद हैं। अब विधानसभा चुनाव की तैयारी है, तीन दिन पहले दस विधायक व नेता भाजपा में शामिल हुए हैं। अमित शाह बोल रहे हैं और लोग आएंगे, ममता अकेली रह जाएंगी। जिस तरह से अमित शाह सक्रिय हैं, उससे लगता है, वे तृणमूल की कमजोरी जान गए हैं। 
अमित शाह ने बंगाल दौरे में सबसे पहले क्या किया? वह बीरभूम जिले में महामाया मंदिर गए, उन्होंने दुर्गा और काली को एक बताया। महामाया मंदिर जाने से स्थानीय लोगों से उनके जुड़ाव की इच्छा को समझा जा सकता है। वह स्वामी विवेकानंद की जन्मस्थली गए, जो कोलकाता में है। उत्तरी कोलकाता का क्षेत्र है, जहां ईश्वरचंद्र विद्यासागर की प्रतिमा तोड़ी गई थी, जिसे बांग्ला अस्मिता से जोड़कर ममता बनर्जी ने मुद्दा बना दिया था और कोलकाता में आखिरी चरण के मतदान में एक भी सीट भाजपा को नसीब नहीं हुई थी। अब अमित शाह चुपचाप सुधार में लगे हैं। वह खुदीराम बोस के घर भी गए। बांग्ला अस्मिता से खुद को जोड़ने का प्रयास किया और साथ ही, संकेत दे दिया कि बंगाल का ही कोई मुख्यमंत्री बनेगा, किसी को थोपा नहीं जाएगा। फिलहाल मनोवैज्ञानिक युद्ध में भाजपा काफी आगे बढ़ गई है, यह भाजपा का संघर्ष का अपना तरीका है। लेकिन यह बंगाल की समकालीन राजनीति का एक पक्ष है, हमें दूसरे पक्ष को भी देखना चाहिए।   
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ‘स्ट्रीट फाइटर’ हैं, वह पश्चिम बंगाल से कम्युनिस्ट शासन को हटाने में कामयाब हुई थीं, कांगे्रस में कई नेता थे, जो यह काम नहीं कर पाए थे। वह अभी भी सड़क पर लड़ने वाली बहुत व्यावहारिक राजनेता हैं, भाजपा के लोग भी यह मानते हैं। भाजपा के एक नेता ने मुझसे कहा था कि पश्चिम बंगाल में भाजपा की कमजोरी है कि हमारे पास राज्य स्तर पर कोई ममता जैसा नहीं है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की छवि बहुत मजूबत है, इसलिए भाजपा के कई लोग पार्टी को सुझाव दे रहे हैं कि ममता पर व्यक्तिगत रूप से हमला मत कीजिए। अत: लोग उनके भतीजे पर ज्यादा हमले कर रहे हैं। भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय आरोप लगा रहे हैं कि सफेद साड़ी, हवाई चप्पल के पीछे भतीजा पैसे कमा रहा है। ममता का अभी भी लोकप्रिय आधार है। दूसरे प्रदेशों में अनेक नेताओं ने भाजपा से समझौते किए हैं, लेकिन ममता ने कोई समझौता नहीं किया है। 
वैसे भाजपा में जाने वालों में तृणमूल के लोग कम हैं। दरअसल, ममता बनर्जी कम से कम 50 विधायकों को टिकट न देने का मन बना रही हैं। हर पार्टी में ऐसा होता है, भाजपा भी जब किसी को टिकट नहीं देती है, तो अनेक नेता दूसरी पार्टी में चले जाते हैं। विधायक एक संख्या हैं, उनसे आप यह परिणाम नहीं निकाल सकते कि आप चुनाव जीत गए हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी से विधायक हैं, विधायकों से ममता बनर्जी नहीं। सुवेंदु अधिकारी के पास तीन मंत्रालयों का भार था, पांच निगमों के वह अध्यक्ष थे। वह भी अकेले नहीं थे, पूरा अधिकारी परिवार लाभ ले रहा था। यह सवाल उठाया जा सकता है कि ममता ने पहले कार्रवाई क्यों नहीं की, अधिकारी परिवार पर लगाम क्यों नहीं कसी? दूसरी बात, सुवेंदु जब तक पार्टी में थे, तृणमूल ने उनको निशाना नहीं बनाया, लेकिन अब सवाल उठाया जा रहा है कि भाजपा क्या वॉशिंग मशीन है? वीडियो में यह सबने देखा था, मुकुल रॉय पैसा ले रहे हैं, उनके खिलाफ सीबीआई जांच भी चल रही है। ऐसे नेताओं को  साथ लेकर कोई पार्टी अपनी विचारधारा कैसे दिखाएगी? क्या भाजपा पश्चिम बंगाल में अपमानित तृणमूल की शाखा बनने जा रही है?  
ये सभी सवाल चुनाव प्रचार के दौरान पूछे जाएंगे? मुकाबले के लिए ममता बनर्जी रणनीतिक रूप से तैयार हो रही हैं। तृणमूल कांग्रेस हरेक ब्लॉक से ममता बनर्जी केसीधे जुड़ाव के कार्यक्रम शुरू करने जा रही है। आपके दरवाजे पर सरकार कार्यक्रम चल रहा है। सोशल मीडिया क्षेत्र में भी कुरुक्षेत्र का मैदान सजने वाला है। कौन जीतेगा, कौन हारेगा, यह तो वक्त बताएगा। 
इस बीच प्रधानमंत्री विश्व भारती जा रहे हैं, वर्चुअल सम्मेलन कर रहे हैं, जिसमें ममता बनर्जी भाग नहीं लेंगी। विरोध करेंगी। पश्चिम बंगाल को पूरा सम्मान न दिए जाने की शिकायत है, जन-गण-मन को बदलने की चर्चा पर रोष है। सांप्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता, बांग्ला अस्मिता जैसे विषय पश्चिम बंगाल में बहुत महत्व रखते हैं, दिल्ली में बैठकर इसका पता नहीं चलता। जैसे वर्ष 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में मीडिया ने कह दिया था, वह जीतेंगे। बाद में कांग्रेस सत्ता में आ गई। मीडिया को तब जवाब देने में परेशानी हो गई थी। जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने, तो उनका पहला दौरा बैंकाक का था, हम वहां गए, तो अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने हमें घेर लिया था कि भारतीय मीडिया आखिर वाजपेयी को लेकर इतना पूर्वाग्रही क्यों हो गया था? 
यह भी देखा गया है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के नतीजे हमेशा समान नहीं होते हैं। नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने, लेकिन आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुआ, तो राव की पार्टी हार गई और एन टी रामाराव जीत गए। इसलिए जल्दबाजी में किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए। आगामी महीनों में अमित शाह और ममता बनर्जी के अपने-अपने तुरुप के पत्ते सामने आएंगे, हमें तब तक इंतजार करना होगा। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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