फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियनआम बजट से कुछ खास उम्मीदें

आम बजट से कुछ खास उम्मीदें

बजट अब आने ही वाला है। राष्ट्रपति भवन से अधिसूचना जारी हो चुकी है। नया साल शुरू होने के बाद अब बजट के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता। फरवरी के अंतिम दिन से खिसककर यह फरवरी के पहले दिन तक तो आ चुका...

आम बजट से कुछ खास उम्मीदें
आलोक जोशी, वरिष्ठ पत्रकारMon, 20 Jan 2020 12:16 AM
ऐप पर पढ़ें

बजट अब आने ही वाला है। राष्ट्रपति भवन से अधिसूचना जारी हो चुकी है। नया साल शुरू होने के बाद अब बजट के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता। फरवरी के अंतिम दिन से खिसककर यह फरवरी के पहले दिन तक तो आ चुका है, और ऐसी चर्चा भी गरम है कि अभी यह और खिसकेगा। फिर हमारा वित्त वर्ष भी अप्रैल की बजाय जनवरी में शुरू होने लगेगा। यानी कैलेंडर वर्ष और वित्त वर्ष का कनफ्यूजन नहीं रह जाएगा। इसके साथ ही एक और तर्क यह चल रहा है कि फिर बजट का मुहूर्त दिवाली के साथ तय कर दिया जाए। यूं भी दिवाली पर बही-खातों और लक्ष्मी की पूजा होती है, तो सरकार भी अपना बही-खाता उसी दिन खोले।

पिछले बजट में ब्रीफकेस की जगह आए लाल बस्ते को देखकर इसकी संभावना बहुत बढ़ भी गई थी। लोग काफी उत्साहित थे कि अब बजट भी संस्कृति के अनुरूप होगा और मुहूर्त देखकर ही आएगा। लेकिन उसके बाद से हालात बदलते चले गए और अब जब बजट नजदीक आ गया है, तो लोग न वैसी बातें कर रहे हैं, न ही वैसी उम्मीद। अब सारी चर्चा इस बात पर केंद्रित है कि परेशानी में दिख रही भारत की इकोनॉमी को उबारने में यह बजट क्या कोई भूमिका निभा पाएगा?

यह सवाल इसलिए भी अधिक गंभीर होता जा रहा है, क्योंकि पिछले कई वर्षों से, बल्कि कई दशकों में एक से ज्यादा वित्त मंत्री कई बार यह कह चुके हैं कि वे देश की अर्थ-नीति में बजट की महत्ता धीरे-धीरे कम करना चाहते हैं। वे नहीं चाहते हैं कि वित्त मंत्री बजट के दिन टोपी से कबूतर निकालने वाले जादूगर की भूमिका निभाते रहें। यह बात सिर्फ वित्त मंत्री नहीं कह रहे हैं। आर्थिक क्षेत्र के जानकार भी यही सलाह देते रहे हैं कि इस मामले में सरकार अगर नियम-कानून बनाने का काम सलीके से करे, तो लोग निश्चिंत भाव से कारोबार कर पाएंगे, योजना बना पाएंगे और हर साल किसी अनहोनी की आशंका या किसी लॉटरी के इंतजार में वे वित्त मंत्री की ओर ताकते नहीं रहेंगे।

सरकारी नीतियां जल्दी-जल्दी बदलती न रहें, तो फिर बजट सिर्फ सरकार की कमाई और खर्च का हिसाब ही तो रह जाएगा। यह चिंता हर बार बजट के साथ नहीं करनी होगी कि इस बार न जाने किस चीज पर टैक्स बढ़ जाए और न जाने हमें मिलने वाली कौन सी टैक्स छूट गायब हो जाए। एक मोर्चे पर तो यह काम हो गया है। जीएसटी आने के बाद अब बजट का वह हिस्सा लगभग खत्म हो गया है, जिसमें अप्रत्यक्ष कर और ड्यूटी में कटौती-बढ़ोतरी के एलान हुआ करते थे। इस लिहाज से उद्योग-व्यापार में लगे एक बहुत बड़े तबके के लिए अब बजट कोई त्योहार का दिन नहीं रह गया है, क्योंकि जीएसटी की दरें तय हो गई हैं और उसमें शामिल चीजों को ऊपर-नीचे करने या फिर स्लैब बदलने का भी फैसला करना हो, तो उसके लिए जीएसटी कौंसिल बन चुकी है।

इसका मतलब यह नहीं कि बजट का कोई अर्थ ही नहीं रह गया। मिडिल क्लास और उससे ऊपर के इनकम टैक्स चुकाने वाले लोग तो आज भी यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि वित्त मंत्री के पिटारे से उनके लिए कोई खुशखबरी निकलेगी, यानी उन्हें टैक्स में राहत मिलेगी। ऐसी ही उम्मीद उद्योगों और व्यापारियों को भी है। उद्योग संगठनों ने तो वित्त मंत्रालय को बाकायदा अपनी मांगों की सूची भी सौंप दी है। उनकी लिस्ट में भी सबसे ऊपर यही मांग है कि आयकर में छूट दी जाए। मांग यह है कि अब पांच लाख रुपये तक की सालाना कमाई को टैक्स फ्री कर दिया जाए। वे कॉरपोरेट टैक्स में और ज्यादा कटौती, लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स में कमी, कंपनियों के लाभांश पर टैक्स खत्म या कम करने, कस्टम ड्यूटी का ढांचा सरल करने, एसईजेड पर टैक्स छूट का वक्त बढ़ाने जैसी मांगों के अलावा इस बात पर भी जोर दे रहे हैं कि सरकार जल्दी से जल्दी ‘डायरेक्ट टैक्स कोड’ लागू करे।

यह बात चौंकाने वाली लग सकती है कि उद्योग संगठनों की मांगों में भी इनकम टैक्स में कटौती की मांग न सिर्फ शामिल है, बल्कि सबसे ऊपर है। लेकिन यह बात समझनी जरूरी है कि उद्योग और व्यापार संगठनों को आम करदाता की इतनी फिक्र क्यों है। यह मांग क्या इसलिए की जा रही है कि उद्योगपति और व्यापारी भी इनकम टैक्स देते हैं? जो आम तौर पर काफी बड़ी रकम चुकाते हैं और उन्हें खुद के लिए भी राहत चाहिए? या फिर उनके पास बहुत सा स्टाफ काम करता है, जो इनकम टैक्स भरता है, अगर कटौती हुई, तो इन लोगों को राहत मिलेगी और ये मन लगाकर काम करेंगे?

ये दोनों ही बातें सही हो सकती हैं, लेकिन हैं नहीं। अभी तो जो भी किसी तरह की राहत मांग रहा है, वह इस उम्मीद में ही मांग रहा है कि किसी तरह अर्थव्यवस्था में वापस जान डाली जा सके। टैक्स कटौती की मांग भी उद्योगपति और व्यापारी इसीलिए कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि अगर ढाई से पांच लाख रुपये सालाना कमाने वाले लोग जो अभी पांच फीसदी टैक्स देते हैं, उन्हें यह टैक्स न देना पडे़, तो वे यह पैसा खर्च करेंगे। इससे बाजार में सभी तरह की चीजों की मांग पैदा होगी, बिक्री बढ़ेगी और कारोबार का चक्र चल पडे़गा।

इस साल की सबसे बड़ी चुनौती यही है कि सरकार के सामने मांगों और सुझावों की जितनी भी लिस्ट पहुंची है, उन सबमें यही उम्मीद की गई है कि सरकार टैक्स में राहत दे और खर्च तेजी से बढ़ाए। खर्च बढ़ाने के अलावा और कोई रास्ता ऐसी हालत में होता भी नहीं है अर्थव्यवस्था में जान फूंकने का। समस्या यह है कि खर्च बढ़ाने के लिए कमाई का बढ़ना भी जरूरी है। और उस मोर्चे पर कोई भी खुशखबरी तभी आएगी, जब तरक्की की रफ्तार तेज हो, काम-धंधे में तेजी आ जाए। जाहिर है, चुनौती गंभीर है, पर वित्त मंत्री को एक जबर्दस्त संदेश तो देना ही होगा, अगर वह नहीं चाहतीं कि यह परेशानी किसी गंभीर मुसीबत में बदल जाए। यानी सबसे कम रेट पर इनकम टैक्स देने वालों को तो एक खुशखबरी की उम्मीद रखनी ही चाहिए। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें