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एक तारीख जिसने भारत को बदल दिया

कुछ बड़ी घटनाएं अपने आप को सिर्फ इतिहास के पन्नों तक सीमित नहीं रखतीं, वे भविष्य का रास्ता भी तैयार करती हैं। उनकी गूंज दशकों और कई बार तो सदियों तक सुनाई देती है। 25 जून,1983 को जब भारतीय क्रिकेट...

एक तारीख जिसने भारत को बदल दिया
Pankaj Tomarहरजिंदर, वरिष्ठ पत्रकारMon, 20 Nov 2023 12:19 AM
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कुछ बड़ी घटनाएं अपने आप को सिर्फ इतिहास के पन्नों तक सीमित नहीं रखतीं, वे भविष्य का रास्ता भी तैयार करती हैं। उनकी गूंज दशकों और कई बार तो सदियों तक सुनाई देती है। 25 जून,1983 को जब भारतीय क्रिकेट टीम ने लॉर्ड्स के मैदान में विश्व कप के फाइनल में वेस्टइंडीज को हराया, तब इसे महज खेल जगत की एक अभूतपूर्व उपलब्धि भर माना जा रहा था। अगले दिन ब्रिटिश अखबारों ने लिखा था कि भारत ने क्रिकेट के समीकरण को बदल दिया है। तब किसने सोचा था कि कपिल देव की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम को जो जीत मिली है, वह अगले कुछ साल में भारत को ही पूरी तरह बदल देगी? 
इतिहास में अक्सर घटनाओं के मुकाबले उनके घटित होने का समय ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। भारतीय टीम को यह जीत जिस समय मिली, वह आधुनिक भारतीय इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दशक है। खासकर जब हम इसे अर्थव्यवस्था की यात्रा के नजरिये से देखते हैं। यह वह समय था, जब भारतीय मध्यवर्ग एक नए आत्मविश्वास के साथ अपने पैरों पर खड़ा हो रहा था। आर्थिक उदारीकरण की तूफानी रफ्तार भले ही बहुत बाद में आई हो, पर उसकी शुरुआती बयार इसी दशक में बहनी शुरू हुई थी। 
ठीक एक साल पहले दिल्ली में एशियाई खेलों का आयोजन हुआ था। इसके साथ ही देश में टेलीविजन के रंगीन प्रसारण की भी शुरुआत हुई थी। बाद के लंबे समय तक रंगीन टेलीविजन सेट भारतीयों के लिए एक सबसे बड़ी उपलब्धि और सबसे बड़ा सपना बना रहा। अपनी काली-सफेद आभा से लुभाने वाले विज्ञापन जब रंगीन होकर लोगों को रिझाने के लिए घर-घर में घुसे, तो देशवासियों की दुनिया बदलने लग गई। कई अर्थशास्त्री रंगीन टेलीविजन के आगमन को देश के उपभोक्तावाद की शुरुआत भी मानते हैं। 
राजनीतिक रूप से भी यह ऐसा समय था, जब भारतीय समाज ने समाजवाद की सोच को नमस्कार कहना शुरू कर दिया था और समृद्धि के सपनों की जमीन नया विस्तार पाने लगी थी। जिसे हम भारत की आईटी क्रांति के नाम से जानते हैं, उसकी नींव भी इसी दशक में रखी गई थी। इनफोसिस की स्थापना 1980 में हुई थी। देश के लगातार बढ़ते मध्यवर्ग को जब दुनिया के सबसे बड़े बाजार के रूप में देखा जाने लगा, तब इस वर्ग को भी अपने महत्व का एहसास हुआ। गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याएं बनी हुई थीं, लेकिन मध्यवर्ग भविष्य को लेकर ज्यादा आश्वस्त दिख रहा था। 
ठीक इसी समय 1983 की विश्व कप क्रिकेट की जीत ने देश को अचानक ही वह गौरव-बोध दिया, जो इसके पहले तक अनुपस्थित था। क्रिकेट में विश्व विजेता बनने की वह उपलब्धि जितनी बड़ी थी, उसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव उससे कहीं बड़ा था और दीर्घजीवी भी। कभी भारतीय हॉकी टीम का लोहा पूरी दुनिया मानती थी। लगातार कई ओलंपिक में हॉकी का स्वर्ण पदक भारत को ही मिला, पर एस्ट्रोटर्फ के आगमन से भारत और पाकिस्तान जैसे परंपरागत हॉकी खेलने वाले देश काफी पिछड़ गए। खेलों की लोकप्रियता का ग्राफ हॉकी से हटकर क्रिकेट की ओर बढ़ने लगा था। हॉकी वैसे भी ओलंपिक या वैसी ही उन प्रतिस्पद्र्धाओं का खेल था, जिनमें पेशेवर खिलाड़ियों से परहेज किया जाता है। मगर क्रिकेट के साथ ऐसी कोई सोच नहीं जुड़ी थी। 
इसी समय देश के मध्यवर्ग ने क्रिकेट को एक पेशेवर विकल्प के रूप में देखना शुरू किया। मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग से जितने खिलाड़ी इस दौर में आए, उतने पहले कभी नहीं आए थे। नए खिलाड़ी आगे आ सकें, इसके लिए बेंगलुरू में एक राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी बनी। कई क्षेत्रीय क्रिकेट अकादमियां भी शुरू हुईं। छोटे शहरों और कस्बों तक में क्रिकेट की कोचिंग शुरू हो गई। क्रिकेट अब एक मान्य करियर बन चुका था, जिसका अपना कारोबार भी था। जगह-जगह प्रतिभाओं के नए अंकुर भी फूटे, जिनका कमाल हम इन दिनों देख ही रहे हैं। 
यही वह जगह थी, जहां से भारत का बाजार, मध्यवर्ग और क्रिकेट हमसफर बन गए। अक्सर यह कहा जाता है कि भारत में क्रिकेट इसलिए ज्यादा लोकप्रिय हो गया, क्योंकि इसे बाजार ने बढ़ावा दिया, मगर उतना ही बड़ा सच यह भी है कि बाजार को सबसे बड़ा संबल क्रिकेट से ही मिला। क्रिकेट की लोकप्रियता के कंधों पर चढ़कर बाजार ने जो कामयाबी हासिल की, वैसी उसे इससे पहले कभी नहीं मिली थी। इस दौर में जितनी लोकप्रियता क्रिकेट खिलाड़ियों को मिली, उतनी किसी दूसरे खेल के खिलाड़ी को नहीं मिली। कुछ मामलों में तो वे फिल्मी सितारों को भी मात करने लगे। क्रिकेट खिलाड़ी मैदान में ही नहीं, विज्ञापनों में भी चमकने लग गए। विज्ञापन से कमाई के मामले में सचिन तेंदुलकर ने तो एक दौर में सदी के महानायक तक को पीछे धकेल दिया था। यह भी कहा जाता है कि नए रूप में क्रिकेट मनोरंजन का सबसे बड़ा विकल्प बनता जा रहा है। 
क्रिकेट में बाजार का निवेश लगातार बढ़ता जा रहा है। हर साल आईपीएल में हम इसे सबसे अच्छी तरह देख सकते हैं। खिलाड़ियों की नीलामी होती है, तो नए-नए खिलाड़ी भी रातोंरात करोड़पति हो जाते हैं। इसके पहले कि आईपीएल की पहली गेंद फेंकी जाए, हजारों करोड़ रुपये का कारोबार हो जाता है। यही इस बार के विश्व कप में भी हुआ है। आईपीएल में प्रसारण अधिकार और स्पॉन्सरशिप से लेकर विज्ञापनों तक अथाह कमाई होती है। यूरोपीय फुटबॉल लीग के बाद आईपीएल दुनिया की सबसे ज्यादा कमाई वाली लीग बन गई है। यहां तक कि उसने अमेरिका की बास्केट बॉल लीग को भी काफी पीछे छोड़ दिया है। 
इसी कमाई के चलते भारतीय क्रिकेट में इतना पैसा आ गया कि दुनिया की हर टीम भारत के साथ खेलने के लिए बेताब दिखने लगी। देश का क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बन गया। हालांकि, ये आरोप भी आए कि भारतीय बोर्ड पैसे के दम पर अपनी मनमानी थोपने की कोशिश करता है। 
सच जो भी हो, मगर आज भारत और उसका क्रिकेट जहां पर हैं, उसकी यात्रा 25 जून, 1983 को लॉर्ड्स के मैदान से शुरू हुई थी। उसके आगे भी भारत ने विश्व कप जीता, टी-20 का विश्व कप भी जीता, भारतीय खिलाड़ियों ने कई और बड़ी जीत भी दर्ज कराई, लेकिन सन् 1983 की जीत का अर्थ ही अलग है। उस जीत ने भारतीय क्रिकेट को ही नहीं, बल्कि भारत को भी पूरी तरह बदल दिया।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) 

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