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विरोधियों को निशाना बनाने की हर कोशिश

कुछ चीजें बहुत साफ होनी चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। नतीजा यह कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तनाव शायद जरूरत से ज्यादा बढ़ता चला जा रहा है। वास्तविकता यह है कि जो लोग राजनीतिक-कानूनी जमीन...

विरोधियों को निशाना बनाने की हर कोशिश
Amitesh Pandeyमनोज झा, राज्यसभा सदस्य, राष्ट्रीय जनता दलFri, 17 Mar 2023 09:15 PM
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कुछ चीजें बहुत साफ होनी चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। नतीजा यह कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तनाव शायद जरूरत से ज्यादा बढ़ता चला जा रहा है। वास्तविकता यह है कि जो लोग राजनीतिक-कानूनी जमीन पर हमसे लड़ नहीं पाए, वे हमें दूसरी वजहों से घेरने के काम में जुट गए हैं। आज विपक्ष के एक-दो नेताओं की बात नहीं है, अनेक नेता निशाने पर हैं। जो भी विपक्षी नेता वर्तमान सरकार का ज्यादा विरोध कर रहा है या सीधे राजनीतिक मुकाबले में आ रहा है, वह ईडी और सीबीआई के निशाने पर आ जा रहा है। सवाल बड़ा है कि क्या वाकई भ्रष्टाचार के खिलाफ ईमानदारी से कार्रवाई हो रही है? केवल दावे किए जा रहे हैं।
एक उदाहरण देखिए, असम में जो वर्तमान मुख्यमंत्री हैं, उनके खिलाफ कभी 242 पेज का डोजियर आया था, लेकिन जब वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए, तो एक तरह से तमाम आरोपों से बरी कर दिए गए। जो भी नेता भाजपा में गया, साफ-सुथरा हो गया। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस में रहे शुभेंदु अधिकारी के साथ भी यही हुआ, वह भाजपा पहुंचकर आरोप मुक्त हो गए। ऐसा क्यों है कि भाजपा का पटका पहनते ही ईडी, सीबीआई का निशाना या ध्यान भटक जाता है। आरोप पत्र गायब हो जाते हैं, कानूनी कार्रवाई को भुला दिया जाता है। आज भाजपा में जाकर सुकून हासिल करने वाले नेता भी खूब हैं और विपक्ष में रहकर तकलीफ पाने वाले भी बहुत हैं। 
बिहार का ही उदाहरण अगर लें, तो कथित रूप से नौकरी के लिए भूमि मामला साल 2008 में ही जांच के बाद सीबीआई ने बंद कर दिया था। मामला साल 2009 में फिर खुला, लेकिन साल 2010 में सीबीआई ने इसे फिर बंद कर दिया। सीबीआई ने एकाधिक बार कहा कि यह मामला बनता ही नहीं है। मगर मामला साल 2017 में तब लौटा, जब भाजपा का जद-यू से गठबंधन टूट गया। राजद सत्ता में आ गई और भाजपा सत्ता से बाहर हो गई, तो सीबीआई ने मामले को फिर खोल दिया। इस पर तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी टिप्पणी की है और साफ कहा है कि परेशान किया जा रहा है। भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ऐसे पहले भी परेशान कर चुकी है। साल 2017 में भी छापा मारा गया था, छह साल बाद फिर सक्रियता आई है, तो आखिर मंशा क्या है?
दरअसल, निशाने पर बिहार की सरकार है। जदयू-राजद गठबंधन को सीबीआई की कार्रवाई के जरिये तुड़वाकर सरकार गिराने का लक्ष्य है। बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को निशाने पर लिया गया है। तेजस्वी यादव परिपक्व नेता हैं, वह भागने वालों में नहीं हैं, वह राजनीतिक साजिश का सामना करेंगे और कामयाब होंगे। सीबीआई द्वारा यह पूरा मामला ही कल्पना के आधार पर बनाया गया है, इसमें कोई दम नहीं है। अगर मामले में दम था, तब सीबीआई ने पहले ही कार्रवाई क्यों नहीं की? स्वयं सीबीआई ने मामले को आगे चलाने लायक नहीं माना था। दरअसल, आज जो भी गंभीर विपक्षी नेता है, उसे निशाने पर लिया जा रहा है। 
वैसे अभी असली संकट तो भाजपा के सामने है, जो उसके रवैये से भी जाहिर हो रहा है। सरकार अडानी मामले पर बुरी तरह घिरी हुई है, सुप्रीम कोर्ट ने भी जांच के लिए कह दिया है, लेकिन हम संयुक्त संसदीय समित (जेपीसी) द्वारा जांच की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट अडानी मामले में कानूनी पक्ष की पड़ताल करेगा, जबकि जेपीसी के जरिये राजनीतिक पहलू को देखा जाएगा। सरकार की कोशिश है कि लोगों का ध्यान अडानी मामले से हट जाए। इसके लिए छापा मारा जा रहा है, ईडी और सीबीआई को काम पर लगाया गया है। राहुल गांधी के बयान को निशाना बनाया जा रहा है। मूल कोशिश तो अडानी मामले पर बहस को रोकना है। बिहार में सरकार जाने की जो टीस है, उसे कम करने का काम भाजपा ने सीबीआई, ईडी को सौंप दिया है।
जनता सब देख रही है। साल 2024 में जनता अपना फैसला सुनाएगी। हमारी सरकार बनी, तो ईडी और सीबीआई की स्वायत्तता को सुनिश्चित किया जाएगा। एक नई शुरुआत करेंगे। आज केवल हम नहीं शिकायत कर रहे। पिछले वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई पर जो तल्ख टिप्पणियां की हैं, उस पर गौर कीजिए। अगर जांच एजेंसियां सरकार के पार्टनर के रूप में काम करेंगी, तो ऐसा ही होगा।
      (ये लेखक के अपने विचार हैं) 

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