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ज्यादा मदद की उम्मीद में दक्षिण

कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में केरल सबसे आगे है। देश का पहला संक्रमित मरीज यहीं पर मिला था और तब से यह राज्य टेस्ट करने, संक्रमित लोगों का पता लगाने और रोगियों के इलाज में अत्यधिक सक्रिय रहा है। इसी...

ज्यादा मदद की उम्मीद में दक्षिण
एस श्रीनिवासन, वरिष्ठ पत्रकारThu, 16 Apr 2020 10:49 PM
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कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में केरल सबसे आगे है। देश का पहला संक्रमित मरीज यहीं पर मिला था और तब से यह राज्य टेस्ट करने, संक्रमित लोगों का पता लगाने और रोगियों के इलाज में अत्यधिक सक्रिय रहा है। इसी का नतीजा है कि 15 अप्रैल तक यहां कोरोना संक्रमण से जान गंवाने वाले मरीजों की संख्या सिर्फ दो थी, जबकि 179 रोगी ठीक होकर अपने घर लौट चुके थे। कोई दूसरा राज्य इस तरह कोरोना के खिलाफ सफल नहीं हो सका है। देखा जाए, तो केरल ने कोरोना संक्रमण को थामने में वाकई सफलता हासिल कर ली है।
पड़ोसी राज्य तमिलनाडु में भी संक्रमित मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा है। यहां अब तक 1,200 से ज्यादा लोग इस संक्रमण का शिकार हो चुके हैं। बेशक यहां ठीक होने वाले रोगियों की संख्या दो अंकों में है, मगर मृत्यु-दर थामने के लिए यह राज्य भरसक कोशिश कर रहा है, जिसमें यह सफल होता हुआ भी दिख रहा है।
देश के ज्यादातर राज्यों की तुलना में इन दोनों सूबों में चिकित्सा ढांचा पहले से बेहतर रहा है और यहां स्वास्थ्यकर्मी भी खासे प्रशिक्षित हैं। तमिलनाडु ने तो निजी चिकित्सा सेवाओं को अच्छी तरह से विकसित किया है, जिसके कारण यह ‘चिकित्सा पर्यटन’ के एक ठिकाने के रूप में जाना जाता है। ये दोनों राज्य बीते कुछ वर्षों से अपने कुल व्यय का करीब पांच प्रतिशत सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्य भी अब अपने यहां बुनियादी स्वास्थ्य ढांचा खड़ा करने को लेकर काम करने लगे हैं, लेकिन उन्हें इन दोनों दक्षिणी सूबों की बराबरी करने के लिए अभी काफी कुछ करना होगा।
लेकिन इन दोनों दक्षिणी राज्यों की यह शिकायत भी है कि उन्हें केंद्र से पर्याप्त मदद नहीं मिल रही है। दिलचस्प यह है कि केरल में वामपंथियों का शासन है, जो केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की विरोधी है, जबकि तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक की सरकार है, जो भगवा पार्टी की करीबी सहयोगी है। दक्षिणी राज्य, खासतौर से केरल और तमिलनाडु को 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों से खासा नुकसान हुआ है। दोनों राज्य अपने चालू बजट से जूझ रहे हैं। केरल को चालू वित्तीय वर्ष में 4,300 करोड़ रुपये के घाटे का अनुमान है, क्योंकि विभाज्य पुल में इसकी हिस्सेदारी 2.5 फीसदी से घटकर 1.94 फीसदी हो गई है। 15वें वित्त आयोग की प्रतिकूल शर्तों और केंद्र द्वारा करों के किए गए बंटवारे के कारण राज्य के फंड कम हुए हैं। अनुमान है कि केरल को विभाज्य पुल में 22 फीसदी का नुकसान हुआ है और यदि करों के बंटवारे के कारण हुए घाटे को इसमें जोड़ दिया जाए, तो यह घाटा करीब 31 प्रतिशत हो जाएगा। 
इसी तरह, बेहतर जनसंख्या नियंत्रण उपायों के कारण तमिलनाडु को भी नुकसान उठाना पड़ा है। चूंकि जनसंख्या के आधार पर ही केंद्र और राज्यों के बीच संसाधनों के बंटवारे का फॉर्मूला तय किया गया है, इसलिए जनसंख्या वृद्धि-दर को नियंत्रित करने वाले केरल और तमिलनाडु जैसे राज्य इससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। जबकि ज्यादातर राज्यों की तरह केरल और तमिलनाडु में भी खर्च बढ़ ही रहे हैं, और राजस्व में तेजी नहीं आ रही है। अनुमान है कि केरल में पिछले छह वर्षों में खर्च 15 फीसदी बढ़ा है, लेकिन राजस्व में महज 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 
आम बजट की कुल प्राप्ति में राज्यों की हिस्सेदारी कम होना भी एक अन्य मसला है। पिछले साल राज्यों को विभाज्य पुल में उनके हिस्से के रूप में 35 प्रतिशत मिला था, जबकि 14वें वित्त आयोग ने 2015-16 में उन्हें 42 फीसदी हिस्सा दिया था। मगर 15वें वित्त आयोग ने राज्यों के विभाज्य पुल में हिस्सेदारी घटाकर 41 फीसदी कर दी। दक्षिणी राज्य शिकायत कर रहे हैं कि 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों को यह कहकर प्रचारित किया गया था कि भारत को सहकारी संघवाद की ओर ले जाया जा रहा है, मगर जब इस पर अमल करने की बारी आई, तो इसे नकार दिया गया।
आमदनी के लिहाज से भी देखें, तो केरल को करीब 7,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। केरल इतनी ही राशि अपने स्वास्थ्य मद में खर्च करता है और इसका तीन गुना, यानी 21,000 करोड़ रुपये अपनी शिक्षा पर। केंद्र से जीएसटी का बकाया न मिलने के कारण भी राज्यों को अभी नकदी-संकट का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि कोरोना संकट को देखते हुए केंद्र ने अपने सभी बकाये के भुगतान का वादा किया है।
बीते दिनों मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा जारी आदेश में यह आश्चर्य जताया गया कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए तमिलनाडु को महज 510 करोड़ रुपये क्यों दिए गए हैं? अदालत ने माना कि यह पैसा पर्याप्त नहीं है। कोर्ट का यह आकलन इस तथ्य पर आधारित था कि तमिलनाडु में संक्रमित मरीजों की संख्या काफी ज्यादा है, लेकिन मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की तुलना में इसे बहुत कम पैसा मिला है। दरअसल, 3 अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने महामारी की रोकथाम के उपाय के लिए राज्य आपदा जोखिम प्रबंधन कोष (एसडीआरएमएफ) के तहत सभी राज्यों को 11,092 करोड़ रुपये जारी करने की मंजूरी दी। आवंटन 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर किया गया। लिहाजा सबसे अधिक संक्रमित मरीजों वाले राज्य महाराष्ट्र को 1,611 करोड़ रुपये मिले, जबकि केरल को महज 157 करोड़ रुपये, जो उत्तर प्रदेश (966 करोड़ रुपये), मध्य प्रदेश (910 करोड़ रुपये), ओडिशा (802 करोड़ रुपये), राजस्थान (740 करोड़ रुपये), बिहार (708 करोड़ रुपये), गुजरात (662 करोड़ रुपये) जैसे ज्यादातर राज्यों की तुलना में काफी कम है।
फिर उत्तरी राज्यों की तुलना में दक्षिणी राज्यों की आबादी भी कहीं तेजी से बुजुर्ग हो रही है। कोरोना वायरस से बुजुर्गों को ज्यादा खतरा होने के बावजूद इन दोनों राज्यों को महामारी से लड़ने के लिए कम फंड दिए गए। अव्वल तो घटती आबादी के कारण उन्हें पहले से ही कम धन आवंटित किया जा रहा है, और अब बुजुर्ग आबादी के कारण वे फिर से नुकसान के मुहाने पर हैं। इन राज्यों ने पहले ही न्यू इंडिया इनिशिएटिव-2022 के प्रति नाखुशी जता दी थी और कहा था कि ‘राज्यों को ऐसा निश्चित नीतिगत रुख अपनाने के लिए मजबूर किया गया, जो अपनी प्रकृति में राजनीतिक है’।
    (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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