क्यों खास है हमारे लिए यह जंग
स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह पुष्टि कर दी है कि कर्नाटक के 76 वर्षीय बुजुर्ग की मृत्यु कोविड-19 के संक्रमण से हुई है। देश में इस संक्रमण से मौत का यह पहला मामला है। अब तक संक्रमण के ज्ञात तमाम मामलों में...

स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह पुष्टि कर दी है कि कर्नाटक के 76 वर्षीय बुजुर्ग की मृत्यु कोविड-19 के संक्रमण से हुई है। देश में इस संक्रमण से मौत का यह पहला मामला है। अब तक संक्रमण के ज्ञात तमाम मामलों में अधिकतर विदेश, खासकर कोविड-19 प्रभावित देशों से लौटे मरीज हैं। एकाध मामले में देश में ही संक्रमण होने की खबर भी आई है, पर अभी तक अपने यहां समुदाय के स्तर पर इस वायरस के प्रसार का एक भी मामला सामने नहीं आया है। मगर सवाल यह है कि आखिर कब तक हम इससे बचे रह सकेंगे?
पूरे 100 दिनों की मुश्किल जंग के बाद चीन ने अंतत: स्थिति को काफी हद तक संभाल लिया है, मगर इटली में संक्रमित मामलों की संख्या 15,000 से ज्यादा हो गई है। वहां तीन सप्ताह पहले तक कोविड-19 संक्रमण के महज तीन मामले सामने आए थे, लेकिन अब वहां मौत का आंकड़ा 1,000 के पार जाने के साथ ही डॉक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियों की चुनौतियां बढ़ गई हैं। यह बताता है कि संक्रमण का प्रसार होते ही स्वास्थ्य ढांचा किस हद तक चरमरा सकता है। ऐसे में, यह स्वाभाविक सवाल पैदा होता है कि भारत अब तक इससे कैसे बचा रहा और आगे क्या करना चाहिए?
भारत के लिए शुरुआती खतरे असल में वे यात्री थे, जो कोविड-19 प्रभावित देशों से आ रहे थे। लिहाजा हवाई अड्डों पर संदिग्ध मामलों को पहचानने का काम शुरू हुआ और उनकी स्क्रीनिंग की गई, हालांकि अब ऐसी रिपोर्टें भी आ रही हैं कि इस प्रक्रिया से कुछ यात्री बच निकले थे। इसके बाद, विदेश से आने वाले तमाम यात्रियों की जांच शुरू की गई। 12 प्रमुख बंदरगाहों पर भी ऐसी व्यवस्था की गई, लेकिन अपेक्षाकृत छोटे बंदरगाह और लंबे समुद्री तट वाले इलाकों में खतरा हो सकता है, क्योंकि वहां कई कमियां बदस्तूर कायम हैं। क्वारंटाइन (मरीजों या संदिग्धों को अलग-थलग रखना) सुविधा देश के सशस्त्र बलों ने मुहैया कराई, खासतौर से चीन और ईरान जैसे देशों से लाए गए भारतीयों के लिए। जाहिर है, एक बड़ी आबादी और बड़े आकार वाले भारत में अब तक अपनाए गए उपायों में से ज्यादातर प्रभावी साबित हुए हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा घोषित इस महामारी का बहुपक्षीय होना भारत की अगली चुनौती है। स्थिति को संभालने के लिए सभी राज्यों में अस्पतालों को तैयार कर दिया गया है, विशेषकर 10 फीसदी से अधिक इसके मामलों में गहन देखभाल की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे में, सरकारी चिकित्सा संस्थानों की क्षमता बढ़ाने की दरकार तो होगी ही, निजी चिकित्सकीय संस्थानों की मदद की भी जरूरत पड़ेगी। राज्यों को भी महामारी प्रबंधन उपायों के तहत आपसी समन्वय स्थापित करना होगा और सुविधाएं साझी करनी होंगी। यह स्थिति कस्बों और ग्रामीण इलाकों के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती साबित होगी, जहां मरीज को जिला मुख्यालय के आस-पास के शहरी अस्पतालों में आना होता है। संक्रमण बढ़ने की सूरत में चिकित्सकीय सामानों की सप्लाई भी अनिवार्य हो जाएगी, जो इसलिए चुनौती भरा काम है, क्योंकि कोविड-19 संक्रमण से वैश्विक आपूर्ति शृंखला प्रभावित हुई है।
इसी तरह, स्वास्थ्यकर्मियों का बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण और उन्हें सुरक्षा उपकरणों से लैस करना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। चूंकि भारत में मधुमेह, उच्च रक्तचाप और किडनी से जुड़ी बीमारियों के मरीजों की संख्या अच्छी-खासी है, लिहाजा कोविड-19 संक्रमित होने के बाद गंभीर मामलों को संभालना कठिन हो सकता है। जिन जिलों में स्वास्थ्य ढांचा कमजोर है, वहां खतरा ज्यादा है, क्योंकि हम शायद धीमे-धीमे संक्रमण के दूसरे दौर की तरफ बढ़ने लगे हैं।
अभी सबसे बड़ा काम ‘रिस्क कम्युनिकेशन’ और स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों के मार्फत जवाबी रणनीति का ऐसा तंत्र बनाना है, जो साक्ष्य पर आधारित हो। भारत ने जीका और निपाह वायरस का बेशक बखूबी सामना किया था, पर वर्तमान स्थिति बिल्कुल अलग है। राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर हेल्पलाइन नंबर तो जारी कर दिए गए हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर अधिक विकेंद्रीकृत जानकारी व प्रतिक्रिया तंत्र बनाने की जरूरत है, जो कहीं अधिक कारगर साबित होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, ‘रिस्क कम्युनिकेशन’ का मतलब है, विशेषज्ञों और स्वास्थ्य के लिहाज से जोखिम वाले लोगों के बीच सूचनाओं, सलाहों और राय-मशविरों का आदान-प्रदान और सुरक्षा की सटीक सूचनाएं पहुंचाना।
भारत में ऐसा कोई आजमाया हुआ प्राथमिक तंत्र नहीं है, जो लोगों की आशंकाओं और जिज्ञासाओं को शांत करे। वैश्विक एडवाइजरी सिर्फ यही है कि यदि किसी को कोविड-19 से संक्रमित होने का अंदेशा हो या उसके लक्षण उसमें उभर आए हों, तो वह पहले टेलीफोन से स्वास्थ्यकर्मी से संपर्क करेगा। यदि स्वास्थ्यकर्मी को लगता है कि उस शख्स को जांच की जरूरत है, तो वह इस बाबत उसे पूरी जानकारी देगा और बताएगा कि कहां व कैसे यह जांच करवाई जा सकती है। ऐसी व्यवस्था बनाने के पीछे सोच यही है कि संदिग्ध मरीज बिना सुरक्षात्मक उपाय के अस्पताल नहीं आए, क्योंकि वह बड़े पैमाने पर यह संक्रमण फैला सकता है। अपने यहां ऐसी कोई रणनीति नहीं दिखी है।
सोशल मीडिया से प्रसारित होने वाले गलत तथ्यों या बचाव के उपायों के खिलाफ भी संजीदगी से काम करने की जरूरत है। मसलन, अमेरिका में फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने उन तमाम कंपनियों को नोटिस जारी किया, जिनके उत्पाद कोविड-19 संक्रमण को रोकने या ठीक करने का दावा करते थे। मगर अपने यहां तो सोशल मीडिया के बयानवीर चिकन और अंडे से भी संक्रमण फैलने की बात करते हैं, जिसके कारण कई राज्यों में चिकन के दाम 60 फीसदी तक घट गए।
कोविड-19 के खिलाफ भारत का स्वास्थ्य महकमा अकेले जंग नहीं लड़ सकता। कई देशों ने इस महामारी को थामने में सफलता हासिल की है। वे जनहानि को भी नियंत्रित रखने में सफल हुए हैं। भारत एक बड़़ा देश है, इसलिए इस महामारी को रोकने के लिए सरकार को हर स्तर पर काम करने की दरकार है। कुछ सख्त कदम उठाने की जरूरत पड़ सकती है, मगर ऐसा करते हुए सरकार को संवेदनशीलता भी दिखानी होगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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