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खरीदारी बढ़ेगी तो घटेगी महंगाई

...बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई।  सन1974 में आई सुपरहिट फिल्म रोटी कपड़ा और मकान  का यह गाना आज के हाल पर एकदम फिट बैठता है। कोरोना की बीमारी और उससे उपजी बेरोजगारी की मार झेल रहे देश को अब...

खरीदारी बढ़ेगी तो घटेगी महंगाई
आलोक जोशी, वरिष्ठ पत्रकारSun, 13 Jun 2021 09:16 PM
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...बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई।  सन1974 में आई सुपरहिट फिल्म रोटी कपड़ा और मकान  का यह गाना आज के हाल पर एकदम फिट बैठता है। कोरोना की बीमारी और उससे उपजी बेरोजगारी की मार झेल रहे देश को अब महंगाई भी बुरी तरह सता रही है।

पेट्रोल और डीजल के चर्चे तो हुए भी, पेट्रोल का दाम शतक लगा भी चुका है। बंगाल चुनाव खत्म होने के बाद से बीते शनिवार तक इनके दाम 22 बार बढ़ चुके हैं। सोशल मीडिया पर एक नया मीम चल रहा है- पेट्रोल का नया भाव, 25 रुपये पाव! मजाक उड़ाने का अंदाज दिलचस्प हो सकता है, लेकिन पेट्रोल कोई पाव भर तो लेता नहीं है। पाव, यानी 250 ग्राम और उससे भी कम यानी, 100 या 50 ग्राम में जो तेल बिकता है, वह है खाने का तेल। मगर पेट्रोल-डीजल के चक्कर में उसके भाव पर खास बातचीत नहीं हो रही है, जबकि उसके भाव में भी कम आग नहीं लगी हुई है। पिछले कुछ महीनों में तो इन तेलों की महंगाई बहुत तेज हुई है। सरसों के तेल ने तो डबल सेंचुरी मार दी, लेकिन चर्चा वैसी ही हुई, जैसे सचिन, द्रविड़ और गांगुली के आगे मिताली राज की बल्लेबाजी की होती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मूंगफली का तेल 20 फीसदी, सरसों का तेल 44 फीसदी से ज्यादा, वनस्पति करीब 45 फीसदी, सोया तेल करीब 53 फीसदी, सूरजमुखी का तेल 56 फीसदी और पाम ऑयल करीब 54.5 फीसदी महंगा हुआ। ये आंकड़े 28 मई, 2020 से 28 मई, 2021 के बीच का हाल बताते हैं।

मई में ही अप्रैल महीने के लिए थोक महंगाई का जो आंकड़ा आया, उसमें महंगाई बढ़ने की दर 11 साल की नई ऊंचाई पर दिख रही है। पिछले साल के मुकाबले 10.5 प्रतिशत ऊपर। जाहिर है, थोक भावों का असर कुछ ही समय में खुदरा बाजार में दिखता है, और वह दिख भी रहा है। किराने के सामान, यानी घर में रोजमर्रा इस्तेमाल की चीजें औसतन 40 फीसदी महंगी हो गई हैं, जबकि खाने के तेल 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुके हैं। और, अभी हालात यही बता रहे हैं कि इनके दाम बढ़ने का सिलसिला रुकने वाला नहीं है। सिर्फ तेल नहीं, सभी कमॉडिटीज के दाम बढ़ रहे हैं। कमॉडिटी कारोबारी और सट्टेबाजों का कहना है कि इस वक्त तेजी का एक सुपर साइकिल, यानी महातेजी चल रही है। दुनिया भर में खाने-पीने की चीजों और बाकी इस्तेमाल की चीजें, जैसे धातुओं और कच्चे तेल के दाम भी लगातार बढ़ रहे हैं। इस तेजी की एक बड़ी वजह वही है, जो शेयर बाजार में तेजी की है। यानी, महामारी से निपटने के लिए सरकारी राहत पैकेजों की रकम बड़े पैमाने पर बाजार में आना। अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों में कोरोना राहत के नाम पर नोट छाप-छापकर जनता को जो पैसा बांटा जा रहा है, वह घूम-फिरकर इक्विटी और कमॉडिटी बाजार में पहुंच रहा है। इसके अलावा, अमेरिका और अर्जेंटीना के कुछ हिस्सों में सूखा पड़ने की वजह से सोया की फसल कमजोर हुई है। और, अगले साल भी वहां किसान इसकी खेती से बचने की सोच रहे हैं। यानी, खतरा अभी और बढ़ने वाला है। दुनिया भर में खाने के तेल की कीमत बढ़ने की एक वजह यह भी है कि यह तेल अब सिर्फ खाने के लिए इस्तेमाल नहीं होते, बल्कि बहुत से देशों में इनका इस्तेमाल पेट्रोल और डीजल के साथ ईंधन के लिए भी होने लगा है।

दूसरी बड़ी समस्या यह है कि कोरोना की वजह से कारोबार भी अटका है और पैदावार भी। लेकिन मांग में कमी के बजाय बढ़ोतरी हो रही है। चीन जैसे कुछ देश इस वक्त अपना भंडार बढ़ाने के लिए यह तेल खरीद रहे हैं, जिसकी वजह से भाव बढ़ रहे हैं। भारत में खाने के तेल की खपत करीब 2.4 करोड़ टन है, जबकि उत्पादन एक करोड़ टन के आसपास ही होता है। ऐसे में, 1.3 टन से ऊपर, यानी जरूरत का 56 फीसदी तेल आयात करना पड़ता है। अब दुनिया भर के बाजार में तेजी का असर तो दिखना ही है। ऊपर से टैक्स और ड्यूटी इसे और महंगा बनाते हैं। महंगाई की यह बीमारी सिर्फ भारत में नहीं, दुनिया भर में कोरोना की ही तरह फैल रही है। पड़ोसी देश पाकिस्तान में महंगाई करीब 11 फीसदी पर पहुंच गई है, तो अमेरिका में मई में खुदरा भावों का सूचकांक पांच फीसदी पर पहुंच गया, जो वहां 2008 के बाद से सबसे ऊंचा स्तर है। महंगाई का ही एक दूसरा आंकड़ा है, कोर प्राइज इंडेक्स, यानी जरूरी चीजों के भाव की रफ्तार का मीटर। अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेड रिजर्व अपनी पॉलिसी के लिए इसी मीटर पर नजर रखता है। इसमें खाने-पीने की चीजों और पेट्रोल के भाव हटाकर देखने पर 3.1 प्रतिशत की बढ़त दिख रही है। यह 1992 के बाद से सबसे ज्यादा है। उधर चीन में यही आंकड़ा 0.9 प्रतिशत है। इस लिहाज से चीन के हालात बहुत अच्छे दिख रहे हैं, पर फैक्टरी गेट इन्फ्लेशन, यानी फैक्टरी में बने सामान के दाम बढ़ने की रफ्तार नौ फीसदी से ऊपर पहुंच चुकी है। चीन में महंगाई की वजह से अमेरिका जाने वाले चीन के सामान के दाम भी 2.1 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ गए हैं, और दुनिया भर में यह खतरा जताया जा रहा है कि सस्ता माल निर्यात कर-करके दुनिया के बाजार पर कब्जा करने वाला चीन कहीं अब महंगाई तो निर्यात नहीं करने वाला है। उधर अमेरिका में महंगाई बढ़ने से उन अमीरों के बीच भी हड़कंप सा मचा हुआ है, जिन्हें देखकर हम और आप सोचेंगे कि इन्हें महंगाई से क्या फर्क पड़ता है। इनकी चिंता की एक बड़ी वजह महंगाई नहीं, बल्कि उसके साथ जुड़ी यह आशंका है कि इसकी वजह से अगर ब्याज दरें बढ़ने लगीं, तो शेयर बाजार पर दबाव बन सकता है और दूसरी तरफ कर्ज लेना भी मुश्किल हो जाएगा। लेकिन चीन हो या अमेरिका, महंगाई के इस संकट से निकलने का रास्ता तो कोरोना का टीका लगने के बाद ही दिखाई पड़ेगा। जैसे-जैसे लोग बाहर निकलेंगे, और जरूरी खरीद से हटकर घूमने-फिरने और बाहर खाने पर खर्च करने लगेंगे, वैसे-वैसे महंगाई में राहत मिलने के आसार हैं। पर साथ में यह भी जरूरी होगा कि लोगों के रोजगार का इंतजाम हो।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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