पुलिस में अपनी मंजिल से दूर महिलाएं 

साल 2013 में ही केंद्र सरकार ने राज्यों को यह सुनिश्चित करने की सलाह दी थी कि हर पुलिस स्टेशन में कम से कम 10 महिला कांस्टेबल और तीन सब-इंस्पेक्टर की तैनाती होनी चाहिए.............

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पुलिस में अपनी मंजिल से दूर महिलाएं 
Naman Dixit मजा दारूवाला, वरिष्ठ सलाहकार, सीएचआरआई
Thu, 12 May 2022 9:06 PM

हाल ही में उत्तर प्रदेश ने राज्य के पुलिस बल में महिलाओं की संख्या को 20 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर पुलिस भर्ती अभियान की घोषणा की है। साल 2013 में ही केंद्र सरकार ने राज्यों को यह सुनिश्चित करने की सलाह दी थी कि हर पुलिस स्टेशन में कम से कम 10 महिला कांस्टेबल और तीन सब-इंस्पेक्टर की तैनाती होनी चाहिए। राष्ट्रीय स्तर पर ्त्रिरयों के अनुपात का नीतिगत बेंचमार्क 33 प्रतिशत है, मतलब देश में कुल पुलिसकर्मियों में महिलाएं 33 प्रतिशत होनी चाहिए। गौर करने की बात यह है कि बिहार में 2010 में पुलिस बल में दो प्रतिशत से भी कम महिलाएं थीं, मगर 2019 तक 25.3 प्रतिशत हो गईं, यहां पुलिस में महिलाओं की हिस्सेदारी में सबसे तेज वृद्धि देखी गई।

ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट (बीपीआरऐंडडी) के अनुसार, देश में अभी भी ऐसे राज्य हैं, जहां चार प्रतिशत महिला पुलिसकर्मी भी नहीं हैं। तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य में न्यूनतम 3.31 प्रतिशत महिलाएं पुलिस बल में थीं। सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि पुलिस लिंगानुपात में बिहार अभी सबसे बेहतर स्थिति में है। भारत को महिला पुलिसकर्मियों के मामले में साल 2010 में 4.25 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 10.49 प्रतिशत से ऊपर जाने में एक दशक से अधिक का समय लग गया है। इसके उलट, मलेशिया और चीन में क्रमश: 18 एवं 14 प्रतिशत महिला पुलिसकर्मी हैं। इंग्लैंड में 33 प्रतिशत से अधिक महिला पुलिसकर्मी होने का दावा किया जा सकता है।
ऐसा नहीं कि पुलिस बल में रिक्तियां नहीं हैं, राष्ट्रीय औसत लगभग 21.4 प्रतिशत है, पर आम चलन यही है कि किसी भर्ती में महिलाओं की बहाली एक तिहाई से अधिक न हो। इस दर से, जैसा कि ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020’ बताती है, बिहार को 33 प्रतिशत महिला पुलिसकर्मियों तक पहुंचने में तीन और साल लगेंगे, जबकि मध्य प्रदेश जैसे राज्य को 180 साल लग जाएंगे। भर्ती में कांस्टेबल स्तर की रिक्तियों को भरने पर जोर दिया जाता है, जबकि मुख्य जांच व पर्यवेक्षी भूमिकाएं पुरुषों के लिए बनी रहती हैं। नतीजतन, ्त्रिरयां खुद को निम्न श्रेणी में समूहबद्ध पाती हैं। जिन राज्यों में महिला पुलिसकर्मियों का प्रतिशत सर्वाधिक है, जैसे बिहार एवं हिमाचल प्रदेश, वहां भी अधिकारी स्तर पर सिर्फ छह और पांच प्रतिशत महिलाएं हैं।
फिर भी पुलिस बल में महिलाओं की संख्या बढ़ाने का इरादा स्वागतयोग्य है। साल 2015 और 2020 के बीच, महिला पुलिसकर्मी के मामले में तमिलनाडु 13 से 19 प्रतिशत, गुजरात चार से 16 प्रतिशत व तेलंगाना तीन से आठ प्रतिशत पर पहुंच गया। अन्य राज्य पिछड़ गए या फिर स्थिर पाए गए, जैसे मिजोरम (6.8 से सात प्रतिशत), सिक्किम (आठ से 8.4 प्रतिशत), और ओडिशा (8.8 फीसदी से 9.1 प्रतिशत)।
सामान्य रूप से यह बहाना बनाया जाता है कि महिलाएं अपनी शारीरिक और मानसिक दृढ़ता की कमी का हवाला देते हुए पुलिस में शामिल होने के लिए तैयार नहीं होती हैं। खतरनाक कार्रवाई और शारीरिक कौशल पर कई बार ज्यादा निर्भरता के बावजूद वास्तव में पुलिस के जिम्मे बहुत सारे ऐसे कार्य होते हैं, जिनमें अधिक दिमाग के इस्तेमाल की जरूरत पड़ती है।
पुलिस में रोजमर्रा के अधिकांश कार्यों में स्थानीय समुदायों के साथ संवाद, शिकायत निवारण, सुलह, समस्या समाधान, गश्त, अपराध रोकथाम, यातायात नियमन, गंभीर अपराध दर्ज करना, सुबूत जुटाना, रिकॉर्ड रखना और अदालत में पेश करना शामिल है। इन सभी कार्यों के लिए कुशल बुद्धि, संवाद कौशल और ज्ञान की जरूरत पड़ती है। पुलिस को सड़कों पर नागरिकों के साथ लड़ाई में भाग लेने या हर दिन सशस्त्र लुटेरों को रोकने की जरूरत नहीं है। इन हालात में भी महिलाएं बहादुरी से खुद को बरी करती नजर आ रही हैं। केरल के पूर्व पुलिस महानिदेशक जैकब पुन्नूस का कहना है, ‘महिलाओं को पुलिस में जितनी नौकरी चाहिए, उससे कहीं अधिक अच्छी पुलिसिंग के लिए पुलिस बल में महिलाओं की जरूरत है।’ यह सच है।
फिर भी पुलिस बल में महिलाओं को ज्यादा संख्या में शामिल करने के लिए संस्थागत तैयारियों का अभाव है। अलग शौचालय की व्यवस्था, काम के उचित घंटे, और फ्लेक्सी-टाइम (सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं) देने की अनिच्छा से लेकर, आदेशों को स्वीकार करने तक और गहन पितृ-सत्तात्मक प्रतिरोध तक अनेक समस्याएं हैं, जिन्हें दूर करना चाहिए। यौन उत्पीड़न समितियों और सख्त आदेशों के माध्यम से कार्यस्थल पर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम नहीं होना पुलिस के लिए भी एक गंभीर मुद्दा है। पुलिस बल में किसी भी अनुचित व्यवहार के लिए शून्य सहनशीलता की नीति होनी चाहिए। ध्यान रहे, यहां बदमाशी और उत्पीड़न के मामले कम रिपोर्ट किए जाते हैं।
2019 की पुलिसिंग रिपोर्ट की स्थिति पर आधारित एक सर्वेक्षण में एक चौथाई पुलिसकर्मियों ने कहा कि उनके थाने/क्षेत्राधिकार में कोई यौन उत्पीड़न समिति नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में पुलिस बल में महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह उच्चतम स्तर पर है, यानी इन राज्यों में कर्मियों के यह मानने की सबसे अधिक आशंका है कि महिला पुलिसकर्मी कम कुशल होती हैं और उन्हें अपने व घर पर ध्यान देना चाहिए। संस्थागत आवास की कमी भी उन्हें सामाजिक रूप से ज्यादा परेशान करती है। दूसरों को सुरक्षा देने से पहले महिलाओं को अपने पेशेवर परिवेश में सुरक्षित और सम्मानित महसूस करने में सक्षम बनाना होगा। पुलिस बल की छवि भले आकर्षक न हो, लेकिन रोजगार की जरूरत और बेहतर जीवन के अवसरों की स्वाभाविक महत्वाकांक्षा अक्सर इस पर हावी हो जाती है।
महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा को कम करने के लिए भी महिला पुलिसकर्मियों की बड़ी जरूरत है। पुलिस बल में जब समानता की स्थिति होगी, तो महिलाएं भी ज्यादा संख्या में उसमें शामिल होंगी। जाहिर है, महिलाएं उन क्षेत्रों में ज्यादा जाती हैं, जहां उनका स्वागत होता है। बिहार एक प्रमाण है, परंपराओं से बंधे हुए इस राज्य में जब महिलाओं को सामूहिक रूप से पुलिस बल में शामिल होने का मौका मिला है, तो वे अपनी इच्छा से आगे आई हैं।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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