निशाने पर आया उनका नाचना
तीन दिन पहले केरल में सोशल मीडिया पर अचानक से उथल-पुथल मच गई, जब दो मेडिकल छात्रों ने बोनी एम के सदाबहार गीत रसपुतिन पर शानदार डांस पेश किया। उनका वीडियो जल्द ही ‘स्टेप अगेंस्ट...
तीन दिन पहले केरल में सोशल मीडिया पर अचानक से उथल-पुथल मच गई, जब दो मेडिकल छात्रों ने बोनी एम के सदाबहार गीत रसपुतिन पर शानदार डांस पेश किया। उनका वीडियो जल्द ही ‘स्टेप अगेंस्ट हेट्रड’ और ‘स्टेप विद रसपुतिन’ हैशटैग के साथ ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर ट्रेंड करने लगा। यह कुछ राजनीतिक दलों द्वारा सूबे में की जा रही नफरत भरी सियासत से लड़ने का उनका अपना तरीका था। मगर त्रिशूर मेडिकल कॉलेज के इन छात्रों के नृत्य को जहां अधिकांश लोग पसंद कर रहे थे, एक दक्षिणपंथ समर्थक ने उनको निशाना बनाना शुरू किया। उसने बताया कि इन दोनों का पूरा नाम है- जानकी ओमकुमार और नवीन रज्जाक, और परोक्ष रूप से उसने इसे ‘लव जेहाद’ से जोड़ दिया। मेडिकल छात्रों ने घृणा फैलाने की इस कोशिश का जवाब और अधिक वीडियो जारी करके दिया। इस बार सर्जिकल मास्क पहनकर कई छात्रों ने वीडियो में दिखाए गए ‘डांस मूव्स’ की नकल की।
कॉलेज के फेसबुक पेज पर लिखा गया, ‘अगर आप नफरत फैलाने की योजना बना रहे हैं, तो हम इसका खुलकर विरोध करेंगे’। कोचीन के इंजीनियरिंग कॉलेज की एसएफआई (माकपा का छात्र संगठन) इकाई ने तो बाकायदा एक नृत्य प्रतियोगिता की घोषणा ‘देयर इज समथिंग रांग’ (वहां कुछ तो गड़बड़ है) थीम के साथ की। ऐसा इसलिए, क्योंकि उस दक्षिणपंथ समर्थक ने इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल यह बताते हुए किया था कि एक हिंदू लड़की एक मुस्लिम लड़के के साथ नृत्य कर रही है। वकील भी इस मुहिम में शामिल हो गए और उन्होंने डांस मूव्स की नकल करते हुए अपने वीडियो जारी किए। और इस तरह जल्द ही, सोशल मीडिया इस तरह के डांस वीडियो से भर गया। ‘लव जेहाद’ देश के उत्तरी हिस्सों में खासा चर्चित अवधारणा है, जिसमें माना जाता है कि मुस्लिम युवक हिंदू लड़कियों को अपने प्रेम-जाल में फंसाते हैं और फिर उनसे निकाह करके उनका जबरन धर्म परिवर्तन कराते हैं। हिंदुत्ववादियों का मानना है कि इसका मकसद पूरे देश की जनसांख्यिकी को बदलना है। उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में तो लव जेहाद के खिलाफ कानून भी बनाया गया है। कुछ नेता चुनावी सभाओं में उत्साहपूर्वक इस कानून का प्रचार भी करते रहे हैं। ऐसे नेताओं ने केरल की वाम मोर्चा सरकार को राज्य में बढ़ती ऐसी घटनाओं की अनदेखी करने और लव जेहाद के खिलाफ कानून न लाने के लिए आड़े हाथों लिया। हाल के विधानसभा चुनाव में केरल में लव जेहाद को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की गई, लेकिन इसमें एक ट्विस्ट था। यह वह लव जेहाद था, जिसे कथित रूप से मुसलमानों ने हिंदुओं के खिलाफ नहीं, बल्कि ईसाइयों के खिलाफ छेड़ा था। रूढ़िवाई ईसाइयों ने इसकी आशंका जताई थी। दरअसल, एक साल पहले केरल के सबसे बड़े चर्च में से एक सायरो-मालाबार ने बयान जारी करके चिंता जाहिर की थी कि मुस्लिम लड़के लव जेहाद कर ईसाई लड़कियों से खेल रहे हैं। राजनेता पूरे चुनाव प्रचार में यही रटते रहे।
बेशक देश के उत्तरी हिस्सों में लव जेहाद एक सामान्य बात हो, लेकिन केरल में 2009 के आस-पास पहली बार इसका प्रयोग किया गया था, जब भगवा दल, वामपंथ (एलडीएफ इसका प्रतिनिधित्व करता है) और कांग्रेस (यूडीएफ इसकी अगुवाई करता है) के साथ विचारधारा की कटु लड़ाई में उलझा था। चर्च ने दावा किया था कि लव जेहाद के मामलों में अचानक से तेजी आई है और इसे राज्य सरकार के संज्ञान में लाया गया था, मगर उसने इस पर कान नहीं दिया। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने भी इस मसले को उठाया और केंद्रीय गृह मंत्रालय को लिखा कि पूरे मामले की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से तहकीकात होनी चाहिए, क्योंकि यह आतंकवाद से जुड़ा मामला है। हालांकि, सूबे की सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि राज्य में मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए दक्षिणपंथी पार्टी यह कीचड़ उछाल राजनीति कर रही है। केरल की काफी अलग जन-सांख्यिकी है। यहां 55 फीसदी हिंदू हैं, 26 फीसदी मुस्लिम और शेष 19 फीसदी ईसाई। एलडीएफ की ऊंची जाति के हिंदू नायर और ओबीसी एझावा में गहरी पैठ है, जबकि यूडीएफ का आधार ईसाई और मुस्लिम हैं। केरल का मध्य हिस्सा, जो ईसाई बहुल है, मौजूदा विधानसभा चुनाव में खासा महत्वपूर्ण हो गया, क्योंकि केरल कांग्रेस (एम) के एक प्रभावशाली गुट ने यूडीएफ को छोड़कर एलडीएफ का दामन थाम लिया है और समुदायों के इस महीन ताने-बाने को झकझोर दिया था।
चर्च के नेतृत्व ने लव जेहाद का मसला जरूर उठाया था, पर वे चिंतित थे कि एलडीएफ और यूडीएफ, दोनों के कर्ताधर्ता इस पर उनका साथ नहीं दे रहे हैं। वह राज्य के मुस्लिम नेतृत्व के एक वर्ग द्वारा तुर्की के ऐतिहासिक हागिया सोफिया को मस्जिद में बदले जाने का समर्थन करने से भी परेशान थे। एलडीएफ और यूडीएफ, दोनों अब भी कमोबेश चुप हैं, क्योंकि उन्हें अपने मुस्लिम मतदाताओं के छिटकने का डर था। इसके अलावा, वे इस बात से चिंतित थे कि यह मसला तूल पकड़ रहा है और भाजपा इसमें कूद गई है। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में लव जेहाद के खिलाफ कानून बनाने का वादा किया है। भाजपा शासित राज्य उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तो इस विषय पर कानून बना चुके हैं, जो मूल रूप से जबरन धर्मांतरण के खिलाफ हैं, लेकिन समाचार रिपोर्टों में कहा गया है कि ये कानून राज्य के दमन का हिस्सा हैं और ये अंतर-धार्मिक विवाह को कमजोर करते हैं। केंद्र सरकार इस विषय में साफ कर चुकी है कि ऐसा कोई देशव्यापी कानून बनाने की उसकी कोई योजना नहीं है, और ये कानून विशुद्ध रूप से राज्य के विषय हैं। बहरहाल, लव जेहाद का मसला चुनावों में तो खूब सुर्खियां पाता है, लेकिन संगठित रूप से धर्मांतरण के नाममात्र के सुबूत हैं। केरल के हादिया मामले में भी, जिसे लव जेहाद कहा गया था, सर्वोच्च अदालत को जबरन धर्मांतरण का कोई सुबूत नहीं मिला था। कई तबकों से यह भी कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश सरकारें तक व्यापक पैमाने पर धर्मांतरण का कोई सुबूत नहीं दे पाई हैं। यानी, यह मसला चुनावों में अधिक से अधिक नफरत भरा अभियान ही साबित हुआ है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)