बढ़ता भारत अब दुनिया का हौसला
दीपावली यानी समृद्धि का उत्सव! यूं तो हर त्योहार ही किसी न किसी रूप में खुशहाली का प्रतीक है, मगर दीपावली या दिवाली की बात ही अलग है। ‘श्री लक्ष्मी जी सदा सहाय’ के साथ अपने खाते, गल्ले, कारोबार...

दीपावली यानी समृद्धि का उत्सव! यूं तो हर त्योहार ही किसी न किसी रूप में खुशहाली का प्रतीक है, मगर दीपावली या दिवाली की बात ही अलग है। ‘श्री लक्ष्मी जी सदा सहाय’ के साथ अपने खाते, गल्ले, कारोबार और तिजोरियों की पूजा करने वाले व्यापारी से लेकर आम आदमी तक इस दिन घर के दरवाजे खोलकर लक्ष्मी की प्रतीक्षा करते हैं। साथ में कामना करते हैं कि आने वाला पूरा साल, यानी नया संवत्सर हमारे लिए लाभ ही लाभ लेकर आए।
यह कोई नई बात नहीं है। युगों-युगों से दीपावली भारत के लिए ऐसा ही त्योहार रहा है। शायद यही वजह थी कि ईसा के 57 साल पहले भारत के सबसे प्रतापी राजाओं में से एक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने इसी दिन विक्रम संवत की शुरुआत की और हर दिवाली को नए संवत्सर का स्वागत भी शुरू हुआ। हालांकि, इसके पूरे 135 साल बाद, यानी 78 ई. में कनिष्क के काल में शुरू हुआ शक संवत अब भी भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है, जिसकी शुरुआत चैत्र मास में होती है, मगर धार्मिक परंपराओं और व्यापार जगत में विक्रम संवत की अलग ही प्रतिष्ठा है। अब संवत 2080 शुरू हो रहा है और ऐसे में, यह हिसाब लगाया जाना स्वाभाविक है कि पिछले संवत में क्या मिला और अगले संवत में क्या मिलने की प्रबल संभावना है।
अपने घर-बार और कारोबार की फिक्र करने वाले तो कर ही रहे हैं, पर इस वक्त इससे आगे भी बहुत कुछ दिख रहा है। एक नहीं, अनेक मोर्चों पर ऐसे लक्षण दिख रहे हैं कि अपना टाइम आएगा का नारा लगाने वालों का वक्त अब शायद आ ही गया है। उत्साह बढ़ाने वाली खबरें आसानी से ढूंढ़ी जा सकती हैं। ताजा आंकड़ा है कि पिछली दिवाली से इस दिवाली तक भारत के शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों, यानी बड़े विदेशी बैंकों और म्यूचुअल फंडों ने जितना पैसा लगाया, उससे ज्यादा पैसा भारत के अपने वित्तीय संस्थानों ने डाला है। रकम भी छोटी-मोटी नहीं है। विदेशियों ने 1.46 लाख करोड़ रुपये लगाए, तो भारतीय संस्थानों ने 1.83 लाख करोड़।
घरेलू निवेशकों का यह भरोसा न सिर्फ उनके लिए फायदेमंद है, बल्कि इससे पूरे बाजार को यह हौसला मिलता है कि विदेशी निवेशक रहें या जाएं, फिक्र की कोई बात नहीं है। मशहूर लेखक और निवेशक रुचिर शर्मा तो कह रहे हैं कि चीन का चमत्कार अब बीत गया और भारत का टाइम आ गया है। जहां भारत में दिलचस्पी बढ़ने के अपने कारण हैं, वहीं पर चीन से मोहभंग इस सिलसिले को और तेज कर रहा है।
दिग्गज क्रेडिट रेटिंग एजेंसी एसऐंडपी को भी लगता है कि आने वाले साल में आर्थिक गतिविधि चीन से खिसककर दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों की तरफ बढ़ने लगेगी। उसकी ताजा रिपोर्ट का शीर्षक है स्लोइंग ड्रैगन्स, रोरिंग टाइगर्स। यहां सुस्त पड़ता ड्रैगन चीन का प्रतीक है और दहाड़ते बाघ का इशारा भारत व दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ अन्य देशों की तरफ है। विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह पिछली सदी के आखिरी सालों में इस क्षेत्र का आर्थिक केंद्र जापान से चीन की तरफ चला गया था, शायद चीन से आर्थिक गतिविधि भारत और दूसरे देशों की तरफ आने का सिलसिला भी उतना ही अहम हो सकता है।
भारत की पिछले कई सालों की तरक्की की कहानी सेवा उद्योग की जबरदस्त बढ़त के सहारे लिखी गई है। अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी अब आधे से ज्यादा है, उत्पादन व खेती के मुकाबले इसकी हिस्सेदारी आगे भी काफी तेजी से बढ़ने के आसार दिख रहे हैं। जिस तरह चीन ने सस्ते मजदूरों के भरोसे खुद को दुनिया की फैक्टरी बनाकर फायदा उठाया, उसी तरह भारत को दुनिया का ऑफिस या बैक ऑफिस बनाने के सपने और योजनाएं काफी वक्त से चल रही हैं। बात अब बहुत आगे बढ़ चुकी है। सॉफ्टवेयर डेवलपरों के सबसे बड़े प्लेटफॉर्म ‘गिट हब’ की ताजा रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ 2023 में भारत से 35 लाख नए डेवलपर इस बिरादरी में जुड़े हैं और उनकी तादाद अब 132 लाख हो चुकी है। कंपनी को लगता है, 2027 तक भारत में डेवलपर की गिनती अमेरिका को पीछे छोड़ सकती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि सेवा क्षेत्र की तेज तरक्की जारी रहने वाली है। भारत की नई पीढ़ी मौकों का फायदा उठाने के लिए पूरी तरह तैयार दिखती है।
जिस तरह शेयर बाजार में घरेलू निवेशकों का दबदबा बढ़ा, करीब-करीब उसी तरह पिछले कई साल से उपभोक्ता बाजार में भी कंपनियां घरेलू खरीदारों के भरोसे ही तरक्की करती रही हैं। विदेशी कंपनियां भी भारत में आने के लिए लाइन लगाती हैं, क्योंकि उन्हें यहां बहुत बड़ा बाजार दिखता है। सन् 1991 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत के बाद से ही भारत में मध्य वर्ग की लगातार बढ़ती संख्या पर अर्थशा्त्रिरयों की उम्मीदें टिकी रही हैं, इसलिए अगर मध्यवर्ग बड़ा होता जाएगा, तो देश में ऐसे लोगों की गिनती कम होती रहेगी, जिन्हें मदद या सहारे की जरूरत है, और तब देश की तरक्की ज्यादा तेज होगी।
इस वक्त तेज तरक्की के बावजूद कुछ सवालों का जवाब जल्दी खोजना होगा। अगर देश तरक्की कर रहा है और गरीबों की गिनती भी कम हो रही है, तो फिर क्या वजह है कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने की योजना की मियाद लगातार बढ़ती ही जा रही है? यह भी देखना जरूरी है कि बाजार में महंगी से महंगी कारें, आलीशान फ्लैट और बंगले या अमीरों के ऐशो-आराम वाले सामान तो जबर्दस्त तरीके से बिक रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ सस्ती कारें, दोपहिया वाहन, छोटे फ्लैट या ऐसी चीजों की बिक्री रफ्तार नहीं पकड़ रही है, जिनका इस्तेमाल या तो निम्न मध्यवर्ग करता है या फिर शहरों से बाहर रहने वाले लोग। मानसून के कमजोर रहने के कारण अनेक गांव-कस्बों की खरीदारी में उत्साह कम दिखाई पड़ा है।
ऐसे में, गोपालदास नीरज की कविता याद आना स्वाभाविक है। मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,/ नहीं मिट सका है धरा का अंधेरा,/ उतर क्यों न आएं नखत सब नयन के,/ नहीं कर सकेंगे हृदय में उजेरा,/ कटेंगे तभी यह अंधेरे घिरे अब, / स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए,/ जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना/ अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
