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कर्तव्य निबाहने का समय

किसान किसी भी राष्ट्र का प्रमुख आधार है। वह किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का अति-महत्वपूर्ण सूत्र है। यह किसान ही है, जिसे सर्वाधिक श्रम करना पड़ता है, जो अपनी उपज का अधिकांश अपने देशवासियों को...

कर्तव्य निबाहने का समय
चौधरी चरण सिंह, पूर्व प्रधानमंत्रीWed, 09 Dec 2020 11:53 PM
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किसान किसी भी राष्ट्र का प्रमुख आधार है। वह किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का अति-महत्वपूर्ण सूत्र है। यह किसान ही है, जिसे सर्वाधिक श्रम करना पड़ता है, जो अपनी उपज का अधिकांश अपने देशवासियों को वस्त्र एवं पोषण हेतु दे देता है और अपने लिए बहुत थोड़ा हिस्सा रखता है। यूरोप और अन्य विदेशी मुल्कों में सरकारें अपने किसानों की स्थिति में सुधार पर बहुत ध्यान देती रही हैं। पश्चिमी देशों की सरकारों ने बिना समय बर्बाद किए विश्व बाजार के बदलते हालात को देखते हुए कृषकों की मदद की स्थिति में आने के लिए अधिनायकीय शक्ति हासिल की है और अनेक प्रस्ताव पारित किए हैं। परिणाम यह रहा है कि पश्चिमी देशों के किसानों ने मंदी पर काबू पा लिया है, किंतु भारतीय किसान की हालत क्या है? सरकारी एजेंसी द्वारा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, 1930 से उसकी आय 53 प्रतिशत से भी अधिक नीचे जा चुकी है, किंतु उस पर दायित्व-भार वही है, जो पहले था। समय गुजरने के साथ उसको पीस डालने वाले ऋणों की ब्याज अदायगी में अक्षमता के कारण इसमें बढ़ोतरी हुई है।... विदेशी बाजार उसके लिए बंद हो चुके हैं। संक्षेप में, उसकी छोटी सी नौका पर इतना भार लदा है कि वह डूब रही है और यदि उसके लिए बडे़ पैमाने पर कदम नहीं उठाए जाते, तो... हमें इतिहास के सबसे बडे़ सामाजिक विप्लव के लिए तैयार रहना चाहिए।
वह स्थान मुहैया कराना राज्य का काम है, जहां लोग मानवीय जरूरतों की वस्तुओं को बेचने और खरीदने की नीयत से इकट्ठे हो सकें और देखना यह है कि ऐसे स्थान का प्रबंध ईमानदारी से हो रहा है और यह भी कि प्राथमिक उत्पादक को उसके उत्पाद का उचित प्रतिफल मिलता है। हमारे बाजारों की हालत निराशाजनक है और यह बेहद जरूरी है कि वहां व्याप्त बुराइयों तथा गड़बड़ियों को समाप्त करने के लिए कुछ आवश्यक कदम तुरंत उठाए जाएं, जो किसानों को आर्थिक घाटा पहुंचाती हैं। देशी बाजार में बदनामी दिलाती है और इस प्रकार हमारे विदेशी व्यापार में गिरावट का कारण बनती है।... 
बाजार में पहुंचते ही खेतिहर का सामना होता है आढ़तिया से, फिर रोला से, जो उसकी उपज को साफ करता है, तौलने वाले से, ओटा से, जो थैले का मुंह खुला रखे रहता है और पल्लेदार से, जो थैलों को ढोता है। इन सभी को हमेशा बिना किसी अपवाद के मेहनताना खेतिहर-विक्रेता को ही देना पड़ता है। उन बाजारों में, जहां व्यापार संघ या बाजार पंचायत होती है, जैसा कि गाजियाबाद में है, निश्चित बाजार शुल्क मुनीम जैसे छोटे कर्मचारियों, पानी पिलाने वाले, चौकीदार, रसोइया इत्यादि का भुगतान आढ़तिया करता है। हालांकि, भारी तादाद में मौजूद उन बाजारों में, संगठित व्यापार का अस्तित्व ही नहीं होता। इस आशय की कटौती जो बहुधा काफी बड़ी राशि होती है, विक्रेताओं से की जाती है। कोई भी भिखारी मायूस नहीं लौटता। ह्वीट मार्केटिंग रिपोर्ट कहती है, ‘मौजूदा हालत में किसान कुछ मामलों में उपभोक्ता द्वारा चुकाए गए एक रुपये में से नौ आना ही प्राप्त कर पाता है।’ इसका अर्थ यह है कि उपभोक्ता द्वारा चुकाए गए गेहूं के मूल्य का 42 प्रतिशत बिचौलिए के पास चला जाता है।
फलों के बाजार की हालत भी भयानक रूप से खराब है। हाल ही में बंबई में प्रकाशित फ्रूट मार्केट रिपोर्ट के अनुसार, फलों एवं सब्जियों के लिए चुकाए गए 100 रुपये में से 12 रुपये से भी कम उत्पादक के हाथ में आते हैं, बाकी अन्य लोगों के पास पहुंच जाते हैं, कभी-कभी तो परिवहन व्यय भी उत्पादक के पल्ले नहीं पड़ता। इन हालात में इस बात के लिए कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भारत का किसान गरीबी के अथाह गर्त में डूबा हुआ है। ह्वीट मार्केटिंग रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘किसान हर किसी के हित को पूरा करता है और अपने उत्पादन का मूल्य घटाकर विपणन के सारे खतरों को झेलता है। इन हालात को देखते हुए उन सभी को, जो न शुल्कों पर किसी भी किस्म का नियंत्रण रखते हैं, मन में किसान के हालात सुधारने के प्रति रुचि रखते हैं, करों व शुल्कों को कम करने अथवा समाप्त करने के प्रयास करने चाहिए। यदि किसान के कल्याण-हेतु कुछ नहीं किया गया, तो हम संदेह के घेरे में आ जाएंगे। हमें आशा करनी चाहिए कि इस समय प्रांतों में स्थापित जिम्मेदार सरकारें किसानों के प्रति अपने कर्तव्य को निबाहेंगी।’
यह तथ्य है कि व्यापार और विपणन के साफ-सुथरे और ईमानदार तरीके दीर्घकाल में व्यापारियों के हित में भी होंगे।... कृषि मंडियों के नियमन और नियंत्रण वाकई इतने जरूरी हैं कि कोई भी सरकार, जो किसानों की शुभचिंतक है, इस मामले में लापरवाह नहीं हो सकती।...
राज्य सरकार को ऐसा कानून बनाना चाहिए, जिसमें अन्य चीजों के अलावा निम्नलिखित के लिए प्रावधान हो- बाजार के व्यापारियों, बिचौलियों और तुलैयों को लाइसेंस देने के लिए, उनसे लिए जाने वाले शुल्कों को तय करने के लिए, इन लाइसेंसों को किन स्थितियों में दिया जाए और उनके लिए क्या शुल्क लिया जाएगा? इसके लिए, जिसके पास मंडी समिति का लाइसेंस नहीं होगा, उसे व्यापारी, बिचौलिए या तुलैये के रूप में काम नहीं करने दिया जाएगा। 
दो, विवरण और समय-समय पर निरीक्षण, सत्यापन, संशोधन नियमन और बाजार में इस्तेमाल होने वाले तराजुओं, बाटों और मापों की जब्ती के लिए। सही-सही तौल की जिम्मेदारी व्यापारी पर होगी और उसे गलत तौल के लिए अपने लाइसेंस से हाथ धोना पडे़गा।
तीन, किसी मंडी में किसी व्यक्ति द्वारा लेन-देन में टे्रड एलाउंसेज, शुल्क या छूट देने या हासिल करने या इस तरह के एलाउंसेज की सूची बाजार में विशेष स्थान पर लगाने के लिए। अगर कोई अपने न्यायोचित शुल्क या हिस्से से ज्यादा लेगा, तो उसका लाइसेंस निलंबित कर दिया जाएगा। 
चार, क्रेता और विक्रेता को उचित रसीद और  हिसाब-किताब के विवरण देने के लिए, लेन-देन को सुविधाजनक बनाने और विवाद से बचने के लिए क्रेता व विक्रेताओं के बीच लिखित अनुबंध की व्यवस्था होनी चाहिए। पांच, विभिन्न कृषि उत्पादों की किस्मों का एकरूप मानदंड तय करने के लिए, ताकि एक ही किस्म के उत्पाद की कीमत एक हो सके और बेहतर किस्मों के उत्पादों की कीमत शीघ्र तय की जा सके। 
(चौधरी साहब द्वारा 1938 और 1939 में मंडी सुधार पर हिन्दुस्तान टाइम्स  में लिखे गए दो लेखों के संपादित अंश)

 
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