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आ गया कर्ज चुकाने का वक्त

कर्ज की किस्तों और क्रेडिट कार्ड के बिल भरने का वक्त फिर शुरू हो रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने इन दोनों के भुगतान पर लगी छूट नहीं बढ़ाने का फैसला कर लिया है। इस छूट या मोरेटोरियम की सीमा अगस्त के...

आ गया कर्ज चुकाने का वक्त
आलोक जोशी, वरिष्ठ पत्रकारSun, 09 Aug 2020 11:51 PM
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कर्ज की किस्तों और क्रेडिट कार्ड के बिल भरने का वक्त फिर शुरू हो रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने इन दोनों के भुगतान पर लगी छूट नहीं बढ़ाने का फैसला कर लिया है। इस छूट या मोरेटोरियम की सीमा अगस्त के अंत तक चलेगी और फिर खत्म हो जाएगी। सितंबर से फिर ईएमआई भरने का मौसम आ रहा है। कर्ज लेकर फंसे लोगों के लिए यह डरावनी खबर है। खासकर उन लोगों के लिए, जिनकी नौकरी गई, कामकाज ठप हुआ, कमाई कम हो गई। लेकिन बैंकों के लिए यह राहत की खबर है और शेयर बाजार भी इसे खुशखबरी मान रहा है। 
आर्थिक विशेषज्ञ और बैंकिंग सेक्टर से जुड़े लोग पिछले कुछ समय से मांग कर रहे थे कि कर्ज की किस्तें न चुकाने की छूट-सीमा अब आगे न बढ़ाई जाए। एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख ने तो सीधे रिजर्व बैंक के गवर्नर से ही कहा था कि मोरेटोरियम आगे बढ़ाना महंगा पडे़गा। उनका कहना था कि जो लोग कर्ज चुका सकते हैं, वे भी अभी नहीं चुका रहे हैं। इससे बैंकों और खासकर छोटी एनबीएफसी कंपनियों पर दबाव बढ़ रहा है। मौद्रिक नीति के ठीक पहले ऐसी ही बात रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी कही। राजन ने आंध्र प्रदेश की माइक्रो फाइनेंस कंपनियों का उदाहरण देते हुए कहा कि जब आप लोगों से कह देते हैं कि किस्तें मत भरो, तो नियम से किस्त देने की उनकी आदत छूट जाती है। फिर वे इसके लिए पैसे नहीं बचाते हैं और इस वक्त बचाने की हालत में भी नहीं हैं। 
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में करीब 55 करोड़ कामगारों पर कोरोना का असर पड़ा है। सीएमआईई के अनुसार, मार्च-अप्रैल में ही 12 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हो चुके थे, इसके अलावा 3.5 करोड़ से ज्यादा नौजवान कोर्स खत्म कर रोजगार की तलाश में हैं। 
खैर, राजन की बात से ही आगे बढ़ें, तो आरबीआई को यह भी साफ दिख रहा था कि अगर छूट न बढ़ाई गई और लोगों पर फिर किस्तें भरने का दबाव डाला गया, तो बहुत सारे लोग और कारोबार मुसीबत में आ जाएंगे। राकेश भारती मित्तल जैसे बडे़ उद्योगपति ने दीपक पारेख के सामने ही उसी बैठक में आरबीआई के गवर्नर से कहा कि मोरेटोरियम बढ़ाना चाहिए। दूसरी तरफ, बैंकरों का दबाव था कि अगर मोरेटोरियम बढ़ाया गया, तो दोहरी समस्या पैदा होगी। एक तरफ, कर्ज देने वाले बैंकों, कंपनियों पर यह दबाव है कि उनका पैसा लौट नहीं रहा और दूसरा, यह पता नहीं चलेगा कि जो लोग आज किस्त नहीं भर रहे, उनमें से कितने ऐसे हैं, जो यह मियाद खत्म होने के बाद भी कर्ज चुकाने की हालत में नहीं होंगे। यानी कितना कर्ज डूबने या एनपीए होने वाला है, इसका हिसाब भी तब तक नहीं लग सकता, जब तक कि वापस कर्ज का भुगतान शुरू न हो जाए।  
होम लोन की मुसीबत कितनी बड़ी है, इसका हिसाब अभी संभव नहीं है। देश की सबसे बड़ी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी एचडीएफसी ने अपने तिमाही हिसाब में लगभग 1,200 करोड़ रुपये की रकम खतरे की आशंका में अलग रख दी है। यानी इतने नुकसान तक की तैयारी है। याद रखना चाहिए कि फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में कुछ ही समय पहले रिजर्व बैंक ही यह चेतावनी दे चुका है कि इस वित्त वर्ष के अंत तक बैंकों के कर्ज डूबने का डर बहुत ज्यादा है और मार्च के अंत में जो एनपीए का अनुपात 8.5 प्रतिशत पर था, अगले साल मार्च के अंत तक कम से कम 12.5 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। हालात और बिगडे़, तो 14.7 प्रतिशत तक जा सकता है। सरकारी बैंकों के मामले में यह आंकड़ा कम से कम 15.2 प्रतिशत रहने की आशंका है।    
रिजर्व बैंक को बैंकों की सेहत भी देखनी थी और ग्राहकों या कर्जदारों का हाल भी। फैसला आसान नहीं था, लेकिन बैंकों को छूट दे दी गई है कि वे कर्जों का पुनर्गठन कर सकते हैं। जो लोग कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं, वे बैंक से बात करके अपने कर्ज की किस्त, मियाद या ब्याज दर बदलवा सकते हैं। 
यह पहला मौका है, जब रिजर्व बैंक ने उपभोक्ता ऋण, आवास ऋण और छोटे व्यापारियों के लिए ऐसी सुविधा दी है। पहले यह सुविधा सिर्फ ऐसे बड़े लोगों को मिलती थी, जिन पर बैंक प्रबंधन या कोई ताकत मेहरबान होती थी। आप जितने बडे़-बड़े कर्ज घोटाले सुनते आ रहे हैं, वे बड़े-बडे़ कर्जों के पुनर्गठन का नतीजा हैं। क्या अब यही रास्ता आम लोगों के लिए भी खुल गया है? यानी आप और हम अपने कर्ज चुकाए बिना गुल हो सकते हैं? कंज्यूमर लोन या होम लोन के मामले में नहीं, मगर व्यापारियों के कर्ज के मामले में यह सवाल जायज है। आरबीआई यह जोखिम नहीं लेना चाहता था, और उसने इतिहास से सबक लेकर इंतजाम किया कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। ताजा मौद्रिक नीति में साफ-साफ कहा गया है कि जिन लोगों को एक बार अपने कर्ज की शर्तें बदलने का मौका दिया जाएगा, वे सिर्फ वही होंगे, जो कोरोना की वजह से संकट में पड़े हैं। आम आदमी के मामले में यह पता लगाना भी आसान है। नौकरी चली गई, तनख्वाह कट गई, बिक्री घटी है, तो दिखा दीजिए। मगर असली समस्या उनकी है, जो कर्ज चुका सकते हैं, पर चुका नहीं रहे। इसीलिए आईसीआईसीआई बैंक के पूर्व चेयरमैन के वी कामत की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई है, जो तय करेगी कि किस कारोबार या सेक्टर के लिए किस आधार पर फैसला किया जाएगा। 
हालांकि, अभी इस फैसले पर सवाल उठ सकते हैं, लेकिन आरबीआई की तारीफ होनी चाहिए कि उसने एक जरूरी फैसला किया और यह दानिशमंदी भी दिखाई कि इस फैसले के दुरुपयोग के रास्ते न खुले रहें। एक बड़ा सवाल अब के वी कामत कमेटी के सामने खड़ा होगा, कोई नौकरीपेशा इंसान, कोई छोटा, मंझोला या बड़ा कारोबारी भी कैसे बता सकता है कि उस पर कोरोना संकट का असर कितना हुआ और उसे कितनी राहत की जरूरत है? उम्मीद करनी चाहिए कि कमेटी अपना फॉर्मूला बनाते समय इस पर विचार करेगी और जब उसकी रिपोर्ट आएगी, तब यह सवाल पूछने की जरूरत नहीं पडे़गी। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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