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बलवान समय ने सब बदल दिया

वर्ल्ड हैवीवेट चैंपियन मोहम्मद अली ने 1967 में धार्मिक आधार पर वियतनाम युद्ध के लिए तैयार होने से इनकार कर दिया था। उन्हें अपनी पदवी गंवानी पड़ी और युद्ध से बचने के लिए पांच साल की सजा भी सुनाई...

बलवान समय ने सब बदल दिया
सुरेंद्र कुमार, पूर्व राजदूतWed, 01 Apr 2020 12:16 AM
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वर्ल्ड हैवीवेट चैंपियन मोहम्मद अली ने 1967 में धार्मिक आधार पर वियतनाम युद्ध के लिए तैयार होने से इनकार कर दिया था। उन्हें अपनी पदवी गंवानी पड़ी और युद्ध से बचने के लिए पांच साल की सजा भी सुनाई गई। तब वह अपने मुक्केबाजी करियर के चरम पर थे। उन्होंने खुद को महान घोषित कर दिया था। दावा था कि वह तितली की तरह उड़ते हैं और मधुमक्खी की तरह डंक मारते हैं। इसके दो दशक बाद तीन बार के वल्र्ड हैवीवेट चैंपियन अली दयनीय रूप में नजर आए। 1996 में अटलांटा ओलंपिक खेलों के उद्घाटन के अवसर पर ज्योति जलाते हुए उनके हाथ कांप रहे थे। वह मुश्किल से मशाल पकड़ सके थे। उन्हीं दिनों जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि ‘क्या आपको अब भी लगता है कि आप सबसे महान हैं?’ तब उन्होंने पल भर रोष जताया और फुसफुसाकर कहा, ‘नहीं, मैं नहीं हूं, समय है!’
चीन में सबसे आला नेता घोषित होने के बाद 2016 से चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव शी जिनपिंग सबसे कद्दावर नेता हो गए। चीन के अब तक के सबसे ताकतवर नेता देंग के बाद शी ही सबसे शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे। धीमी पड़ने के बावजूद अब भी चीन की अर्थव्यवस्था का दुनिया में दूसरा स्थान है और निर्यातक देशों की सूची में वह सबसे ऊपर है। शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना बीआरआई को 64 देशों ने अपनाया, जिसके कारण एशिया, मध्य-पूर्व, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में अमेरिकी प्रभुत्व गंभीर रूप से प्रभावित हुआ। पीपीपी के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि चीन की जीडीपी अमेरिकी जीडीपी से आगे निकल चुकी है। चीन को दुनिया के अगले सुपर पावर के रूप में देखा जा रहा है। 

उधर, एक अरबपति व्यवसायी डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए, जिनका शुल्क युद्ध चीनी अर्थव्यवस्था के डगमगाने की वजह बन गया। अमेरिका के साथ चीन के व्यापार समझौते के प्रथम चरण के बाद जिनपिंग शायद ही राहत की सांस ले पाए हैं। 1950 के दशक के बाद चीन ने सबसे बुरे संकटों का सामना किया है। वुहान में एक अज्ञात वायरस उभरा और जंगल में आग की तरह पूरे देश को चपेट में ले लिया। 3,300 से ज्यादा चीनी मारे गए। आज चीन के साथ दुनिया कितनी बुरी तरह उलझ गई है, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैल चुका है। इटली में मौत का आंकड़ा चीन से आगे निकल चुका है और अब न्यूयॉर्क इसका मुख्य केंद्र बना हुआ है। कई देश कोरोना के बारे में जानकारी छिपाने और दुनिया में इसे अनायास फैलने देने के लिए चीन के खिलाफ हर्जाने का दावा करने पर विचार कर रहे हैं। जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट बीआरआई दांव पर है। हालांकि अभी किसी ने खुला विरोध नहीं  किया है, पर चीन में सुगबुगाहट तेज है और कोरोना से निपटने में जिनपिंग के नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं। अचानक ही चीन के आला नेता की कुरसी पहले की तरह सुरक्षित नहीं दिखती। कैसे अचानक बेरहम समय नश्वर इंसानों की किस्मत बदल देता है और उनके अहंकार को नष्ट कर देता है।

2016 में डोनाल्ड ट्रंप ने सभी राजनीतिक पंडितों को धता बताते हुए पूर्व फस्र्ट लेडी और विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन को हरा दिया था। ‘अमेरिका फस्र्ट’ के लिए अपने अथक अभियान के साथ अप्रत्याशित, अपरंपरागत ढंग से ट्रंप चुनाव लड़े थे। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संबंधों झकझोर दिया। शुल्क युद्ध से अधिकतम दबाव बनाकर चीन को घुटनों पर ले आए। बगदादी को खत्म कर दिया। सीरिया और इराक में आईएस के खात्मे की घोषणा की। अभी एक महीने पहले ही अमेरिका उच्चतम विकास दर और हाल के वर्षों में सबसे कम बेरोजगारी देख रहा था। महाभियोग से बचते हुए ट्रंप राष्ट्रपति के रूप में फिर से चुने जाने का दावा करने में अजेय दिख रहे थे, लेकिन समय की कुछ और ही योजनाएं थीं।

शी जिनपिंग, किम जोंग-उन और आईएस जो नहीं कर सके, कोविड-19 ने एक महीने से भी कम समय में कर दिया? संक्रमित लोगों की संख्या में अमेरिका ने चीन और इटली को भी पीछे छोड़ दिया है। बेरोजगारी पिछले 38 वर्षों के उच्चतम स्तर तक पहुंच गई है और दो ट्रिलियन डॉलर के आर्थिक पैकेज के बावजूद तेजी से मंदी आ रही है। सितंबर 2019 में ह्यूस्टन में हाउडी मोदी के दौरान हमने नारा सुना था- अबकी बार, फिर ट्रंप सरकार। अब यह नारा खोखला या दूर की कौड़ी लग रहा है। चारों तरफ आर्थिक तबाही का मंजर है, ट्रंप को दूसरा कार्यकाल मिलने की संभावनाएं तेजी से कमजोर पड़ रही हैं। एक पुरानी कहावत चरितार्थ हो रही है कि भगवान की इच्छा के आगे किसका वश चलता है? 

मई 2019 में नरेंद्र मोदी विशाल बहुमत के साथ सत्ता में लौटे हैं। मोदी बोल्ड नीतिगत फैसले लेने के लिए ‘मिशन मोड’ में दिख रहे थे। तीन तलाक, अनुच्छेद 370, जम्मू व कश्मीर पुनर्गठन जैसे साहसिक निर्णय लिए। आधी सदी से लंबित सीएए लागू करने जैसा बड़ा निर्णय लिया। इन निर्णयों ने कुछ आक्रोश भी पैदा किया। देश-विदेश में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का दृढ़ संकल्प भी प्रकट किया। लेकिन क्या कोविड-19 ने एक जाल नहीं फेंक दिया है? कोरोना के खिलाफ एकजुट होने और लड़ने में मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा हो रही है, लेकिन 21 दिनों का संपूर्ण लॉकडाउन आर्थिक तबाही का कारण बन रहा है। गरीबों व अर्थव्यवस्था को बल देने के घोषित कदमों के बावजूद मूडी और एसबीआई ने भारत की अनुमानित विकास दर को घटा दिया है, दोनों ने क्रमश: 2.5 और 2.3 प्रतिशत की विकास दर का अनुमान लगाया है। इससे पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के सपने का साकार होना शायद अब कई साल आगे चला जाएगा। 

अभी लॉकडाउन के राजनीतिक असर का अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि अर्थव्यवस्था कितनी जल्दी पटरी पर लौटती है। गरीब और कमजोर लोग कब तक परेशान रहते हैं? कौन जानता है, समय आगे क्या गुल खिलाएगा? 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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