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यूक्रेन ने कैसे रोका रूसी कहर

रूस-यूक्रेन युद्ध के 400 दिन बीत चुके हैं, मगर एक सवाल दुनिया भर के लोगों को मथ रहा है कि शक्तिशाली रूसी सेना को यूक्रेन ने कैसे इतना कड़ा जवाब दिया? यह तो सब जानते हैं कि यूक्रेन को यूरोप-अमेरिका...

यूक्रेन ने कैसे रोका रूसी कहर
Amitesh Pandeyओमप्रकाश दास, रिसर्च फेलो, एमपीआईडीएसएWed, 05 Apr 2023 10:40 PM
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रूस-यूक्रेन युद्ध के 400 दिन बीत चुके हैं, मगर एक सवाल दुनिया भर के लोगों को मथ रहा है कि शक्तिशाली रूसी सेना को यूक्रेन ने कैसे इतना कड़ा जवाब दिया? यह तो सब जानते हैं कि यूक्रेन को यूरोप-अमेरिका से मदद मिल रही है, चाहे हथियार हों या गोला-बारूद। लेकिन अगर हथियार और गोला-बारूद के दम पर ही युद्ध जीतना होता, तो रूस कब का जीत गया होता। दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया भर के सामरिक-रणनीतिक विशेषज्ञों को युद्ध की रणनीति को नए सिरे से परिभाषित करने को मजबूर किया है। 
इतिहास गवाह है कि युद्धों ने मानवता के सामने कई ऐसे सच उजागर किए, जिनकी किसी ने कल्पना भी न की थी। रूस-यूक्रेन युद्ध भी नए उदाहरण गढ़ रहा है। पहली नजर में देखें, तो यह साफ नजर आता है कि यूक्रेन ने रूसी सेना की मोबिलिटी, यानी गतिशीलता को बुरी तरह बाधित किया, जो खास तौर से राजधानी कीव की लड़ाई में खुलकर सामने आई। यूक्रेनी सेना ने अपनी गतिशीलता को सबसे बड़ा हथियार बनाया। चाहे सामरिक घेराबंदी हो या साजो-सामान की कमी, रूसी सेना विशेषकर उसके टैंक एक ही जगह या एक छोटे से इलाके में सिमटने को मजबूर हो गए थे। नतीजतन, वे यूक्रेनी सेना, उसकी मिसाइलों और उसके ड्रोन हमलों के आसान निशाना बन गए। यहां रूसी रणनीति की कई खामियां उभरकर सामने आईं। 
रूस ने शुरुआत से ही यह लक्ष्य रखा कि उसे पूरे यूक्रेन पर कब्जा करना है, यानी उसके कोने-कोने तक अपनी सेना को पहुंचाना है, जिसके लिए शायद रूसी सेना तैयार नहीं थी और वह बिखर गई। रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ प्रो फिलिप्स ओब्रायन ने दूसरे विश्वयुद्ध की सैन्य रणनीतियों का गंभीरता से अध्ययन किया है। यूक्रेन युद्ध के बारे में उनका कहना है कि एयर सुपरमेसी, यानी युद्ध क्षेत्र पर रूसी हवाई दबदबे को नाकाम करना यूक्रेन के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा। रूस की विशाल वायुसेना के लिए यूक्रेन में अंदर तक हमला करना कोई मुश्किल काम नहीं होना चाहिए था, पर यूक्रेन की तैयारी ने रूसी वायुसेना को कभी खुलकर आसमान में उड़ने ही नहीं दिया। इसके कई कारणों में सबसे बड़ा कारण था, कई तरह की सैन्य प्रणालियां। जैसे, ‘फिक्स्ड विंग’ मिग विमानों का इस्तेमाल, जो यूक्रेन के पास संख्या में तो कम थे, लेकिन वे बेहद प्रभावी साबित हुए।
यूक्रेन की रणनीति में उन्नत एंटी-एयर सिस्टम के साथ कंधे पर रखकर चलाई जा सकने वाली ‘स्टिंगर मिसाइलों’ की बड़ी भूमिका रही, जो काफी संख्या में उसके पास मौजूद हैं। ये वही ‘स्टिंगर मिसाइल’ हैं, जिसने 1980 के दशक में तत्कालीन सोवियत सेना को अफगानिस्तान छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया था। ऐसी परिस्थितियों में रूसी लड़ाकू विमान कुछ शुरुआती हमले करने में सफल तो हो पाए, लेकिन यह भी आसान नहीं रहा। 
जमीनी लड़ाई की बात करें, तो इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि रूस की सेना यूक्रेन के शहरों पर पूरी तरह कब्जा नहीं कर पाई, जिसके कारण उसकी सेना की संचार और रसद की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई। रूसी सेना की बड़ी रणनीतिक विफलताओं में से एक है, उसका मुख्य सड़कों पर आकर फंस जाना। रूसी सैनिक सड़कों के जरिये यूक्रेन पहुंचे तो जरूर, लेकिन वे अपने लिए सुरक्षित पनाहगाह नहीं ढूंढ़ सके। इन पर हर दिशा से हमला किया जा सकता था। सामरिक मामलों के अमेरिकी विशेषज्ञ प्रोफेसर बेंजामिन जेन्सेन के अध्ययन के अनुसार, मौजूदा यूक्रेन-रूस संघर्ष में दुश्मन की सटीक स्थिति जानना काफी अहम साबित हुआ है। यूक्रेनी सैनिकों को अमेरिकी खुफिया उपग्रहों से सूचनाएं मिलती रही हैं, जो सीधे जमीन पर हमला करने वाले यूक्रेनी सैनिकों तक ‘रियल टाइम’ में पहुंचती हैं। ऐसे में, यूक्रेनी सैनिकों ने रूसी सेना को गलती करने पर मजबूर किया और कई मौकों पर उन्हें घेरकर हमला किया। प्रो जेन्सेन के मुताबिक, यूक्रेन के जनरलों ने 19वीं सदी के उस सैन्य पैंतरे का इस्तेमाल किया, जो नेपोलियन अपने दुश्मनों के खिलाफ करता था। इस पैंतरे में दुश्मन को इकट्ठा होने का मौका नहीं दिया जाता। नतीजतन, रूसी सैनिकों व हथियारों की संख्या ज्यादा होने के बाद भी वे एक साथ हमला कर ही नहीं पाए। यूक्रेन के सैनिकों ने उन्हें ‘स्ट्रीट-फाइट’ में उलझा दिया, जो रूस के लिए बेहद घातक साबित हो रहा है। 
युद्ध में सड़कों पर उतरना बेहद खतरनाक माना जाता रहा है, मगर मुख्य शहरों तक पहुंचने की रणनीति के कारण रूसी सैनिक कई इलाकों में यूक्रेनी सैनिकों से बिना मोर्चा लिए ही यूक्रेन के अंदरूनी इलाकों में पहुंच गए। इसका सीधा फायदा उन छोड़ दिए गए इलाकों में मौजूद यूक्रेनी लड़ाकों को मिला, जिन्होंने रूसी सैनिकों पर पीछे से हमला कर दिया। ऐसे हालात, विशेषकर कीव की लड़ाई में सामने आए थे, जहां रूसी सैनिक कीव में घुस तो नहीं ही पाए, पीछे से हो रहे हमले को भी नहीं झेल पाए। यूक्रेनी सैनिकों ने दुनिया भर से मिले उच्च तकनीक वाले हथियारों से सटीक हमले किए। इन हथियारों ने रूसी राडार, कमांड पोस्ट और आपूर्ति डिपो को बड़े पैमाने पर ध्वस्त कर दिया, जिससे रूसी हमले की घातकता काफी कम रह गई। 
यूक्रेन की सैन्य रणनीति ने इस धारणा को भी तोड़ा है कि दुनिया के सैन्य बल उस तकनीकी ऊंचाई पर पहुंच गए हैं, जिसमें ‘नॉन कांटेक्ट्स’ यानी ‘रिमोट युद्ध’ निर्णायक होगा, बल्कि दुनिया ने यह भी देखा कि कैसे गुरिल्ला युद्ध के पैंतरे आज भी उतने ही कारगर हैं और घातक हमला करने के लिए दुश्मन के नजदीक जाना ही पड़ेगा। यूक्रेन की सेना ने हमलावर दल पर छोटे-छोटे समूहों में हमले किए और बड़ी सेना को उसी के बोझ से दब जाने दिया।
हालांकि, यूक्रेन ने अभी तक यह युद्ध जीता नहीं है, मगर इतना तो स्पष्ट दिख रहा है कि रूसी सैनिकों ने अब यूक्रेन के पूर्व और दक्षिणी इलाकों पर अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है और वे एक रक्षात्मक परिधि में अपने को समेटने लगे हैं। यूक्रेन के लिए यह यकीनन राहत भरी खबर हो सकती है, लेकिन इसका बुरा पहलू यह है कि अपने हाथ से निकल गए क्षेत्रों को हासिल करने के लिए उसे अब आगे बढ़कर हमला करना होगा और अगर ऐसा होगा, तो यह लड़ाई अभी और लंबी चलेगी।
 (ये लेखक के अपने विचार हैं) 

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