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पूरी दुनिया के बच्चे जिस पर लट्टू थे

गुजरते साल को बच्चों की नजर से देखिए। बच्चों के खेल और खिलौनों की नजर से। कुछ लोग 2017 को ब्लू व्हेल गेम का साल भी कहेंगे। यह सच है कि इस साल हमने एक ऐसे कंप्यूटर गेम के बारे में सुना, जो बच्चों को...

पूरी दुनिया के बच्चे जिस पर लट्टू थे
हरजिंदर, हेड-थॉट, हिन्दुस्तानFri, 29 Dec 2017 09:39 PM
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गुजरते साल को बच्चों की नजर से देखिए। बच्चों के खेल और खिलौनों की नजर से। कुछ लोग 2017 को ब्लू व्हेल गेम का साल भी कहेंगे। यह सच है कि इस साल हमने एक ऐसे कंप्यूटर गेम के बारे में सुना, जो बच्चों को फंसा कर उन्हें आत्महत्या की ओर ले जाता है। हालांकि इसे खेल कहना भी गलत है, क्योंकि यह खेल नहीं, बच्चों को फंसाने का कुंठा जनित दुश्चक्र है। कई खराब खबरों के कारण ब्लू व्हेल चर्चा में रहा है, लेकिन इसे 2017 की मुख्य घटनाओं में नहीं गिना जा सकता। बच्चों के लिहाज से देखें, तो इस साल की महत्वूपर्ण घटना है- फिजेट स्पिनर। हो सकता है कि आपने इसका नाम न सुना हो, लेकिन अपने घर में बच्चों से पूछिए, वे बेर्यंरग पर चलने वाले तीन इंच के इस लट्टू के बारे में आपको बहुत कुछ बता देंगे। यह भी हो सकता है कि उनके खिलौनों में पांच-सात टूटे और साबुत फिजेट स्पिनर मौजूद भी हों। फिजेट स्पिनर 2017 में सफलता की ऐसी कहानी है, जिस पर दुनिया भर में तो बहुत चर्चा हुई, लेकिन अपने देश में इस पर ज्यादा कुछ कहा या लिखा नहीं गया। 

हालांकि इस खिलौने का पेटेंट 1993 में ही हो गया था, लेकिन इस साल अप्रैल के आसपास यह बाजार में आया और इससे पहले कि लोग समझ पाते, यह पूरी दुनिया के बाजारों में छा गया। इसकी कामयाबी का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि इस साल अमेजन पर सबसे ज्यादा बिकने वाले 20 खिलौनों में 18 तरह-तरह के फिजेट स्पिनर ही थे। आप यू-ट्यूब पर जाकर सर्च में टाइप कीजिए- फिजेट स्पिनर। वहां आपको इससे जुड़े 74 लाख, 70 हजार से भी ज्यादा वीडियो मिल जाएंगे। फिजेट स्पिनर की कामयाबी सिर्फ इसकी लोकप्रियता में  नहीं है। बड़ी बात यह है कि इसने एक ही झटके में उन कई मिथकों को तोड़ दिया, जिन्हें पिछले एक दशक में खिलौना उद्योग ने बाजार का परम सच मान लिया था।

फिजेट स्पिनर बाजार में उस समय आया, जब बार्बी डॉल की बिक्री लगातार कम हो रही है। न ही वे नन्ही गाड़ियां ही ज्यादा बिक रही हैं, जिनमें कभी बच्चे दिन भर व्यस्त रहते थे। यहां तक कि लड़कों के लिए बनने वाली तरह-तरह की खिलौना बंदूकों ने भी कंप्यूटर और मोबाइल के शूटिंग गेम्स के आगे हार मान ली है। अभी कुछ ही दिन पहले तक यह कहा जाने लगा था कि अगर खिलौना उद्योग को अपनी पुरानी रौनक वापस चाहिए, तो उसे आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स और रोबोटिक्स को अपनाना ही होगा। कई कंपनियों ने यह किया भी, लेकिन बाजार की पुरानी रौनक नहीं लौटी। कई खिलौनों को समीक्षकों ने काफी सराहा, पर उन्हें लेकर बच्चों में बहुत ज्यादा क्रेज नहीं दिखा। इस बीच कहीं न कहीं यह भी मान लिया गया कि बच्चों के खेलों का भविष्य कंप्यूटर, मोबाइल, टैबलेट और बहुत हुआ तो प्ले स्टेशन वगैरह पर ही है। फिजेट स्पिनर ने एक ही झटके में ऐसी हर सोच को गलत साबित कर दिया।

इस खिलौने की खासियत यह है कि इसमें किसी बड़ी और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया गया। तकनीक के नाम पर इसमें बॉल-बेर्यंरग का इस्तेमाल हुआ है, जिसे पूरी दुनिया दो सदी से भी ज्यादा समय से इस्तेमाल कर रही है। अगर आपके लिए अपनी धुरी पर घूमने वाले खिलौने का नाम पुराने जमाने के लट्टू और लत्ती हैं, तो उस लिहाज से फिजेट स्पिनर जरूर आधुनिक है। लेकिन जिसे हम आधुनिक तकनीक कहते हैं, वैसा इसमें कुछ भी नहीं है। 

फिजेट स्पिनर ने बच्चों को अपनी तकनीक से चमत्कृत भी नहीं किया। उसकी एक खूबी यह है कि वह बच्चों से किसी अतिरिक्त समय की मांग नहीं करता। उसने चुपके से ही बच्चों की वर्तमान जीवन शैली में अपने आप को व्यवस्थित कर लिया। उसे वे खाना खाते हुए, कंप्यूटर पर काम करते हुए, यहां तक कि पढ़ते हुए एक हाथ की उंगलियों पर नचा सकते हैं। शायद इसीलिए इसे बच्चों ने आसानी से अपना भी लिया। यह बच्चों को अपनी उंगलियों का संतुलन और अपनी रचनात्मकता आजमाने का मौका भी देता है। फिजेट स्पिनर एक और अर्थ में आदर्श खिलौना है। मजाक में ही सही, यह कहा जाता है कि अच्छा खिलौना वह है, जिससे बच्चे अपना दिल बहलाते हैं और बडे़ चिढ़ते हैं। फिजेट स्पिनर इस कसौटी पर भी खरा उतरता है। इसके लोकप्रिय होने के कुछ ही हफ्तों के अंदर अमेरिका और यूरोप के कई स्कूलों ने इस पर पाबंदी लगा दी। वह भी उस समय, जब दुनिया भर के कई वैज्ञानिक इन दावों का अध्ययन कर रहे हैं कि फिजेट स्पिनर ऑटिज्म के रोगियों के लिए मददगार है और बच्चे इससे ध्यान केंद्रित करना सीख सकते हैं।

फिजेट स्पिनर की इस कहानी में एक बड़ी भूमिका चीन की भी है, जिसकी फैक्टरियों ने दिन-रात बल्क प्रोडक्शन करके इसे दुनिया के कोने-कोने में पहुंचा दिया। इसकी वजह से ही यह दुनिया के ज्यादातर बच्चों के हाथों में कुछ ही दिनों में पहुंच गया। भारत में किसी भी भीड़ भरे बाजार के फुटपाथ से आप इसे 60 से लेकर सौ रुपये तक में खरीद सकते हैं। यह कीमत निम्न मध्यवर्गीय परिवारों को भी बहुत परेशान करने वाली नहीं है। यहां अगर हम फिजेट स्पिनर की तुलना इससे पहले पूरी दुनिया में लोकप्रिय होने वाले रुबिक क्यूब से करें, तो मास प्रोडक्शन व व्यापार बाधाओं के न रहने की भूमिका और स्पष्ट हो जाती है। 80 के दशक में लांच हुआ रुबिक क्यूब आधे दशक से ज्यादा समय बाद ही भारतीय बाजार में उपलब्ध हो पाया था, जबकि फिजेट स्पिनर इस साल अप्रैल में चर्चा में आया और उसी महीने भारतीय बाजार में पहुंच गया। मई महीने में तो यह फुटपाथ तक पर बिकने लग गया था। 

यह भी सच है कि फिजेट स्पिनर का मौजूदा क्रेज ज्यादा बहुत दिनों तक रहने वाला नहीं है। जल्द ही बच्चे किसी और खेल या खिलौने पर लट्टू होने लगेंगे। लेकिन फिजेट स्पिनर ने यह तो बता ही दिया कि खेल और खिलौनों के लिए किसी महंगे शोध से ज्यादा जरूरत है बच्चों की दुनिया को लेकर एक सहज सामान्य समझ की। और इलेक्ट्रॉनिक्स की दुनिया के बाहर भी संभावनाएं अभी खत्म नहीं हुई हैं।

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