पूरी दुनिया पर असर डालेगा यह रिश्ता
करीब छह महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल का ऐतिहासिक दौरा किया था। उससे पहले किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इजरायल की जमीन पर कदम नहीं रखा था। मोदी की वह लीक तोड़ने वाली यात्रा थी। इसीलिए...
करीब छह महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल का ऐतिहासिक दौरा किया था। उससे पहले किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इजरायल की जमीन पर कदम नहीं रखा था। मोदी की वह लीक तोड़ने वाली यात्रा थी। इसीलिए उस दौरे को भारत-इजरायल दोस्ती में मील का पत्थर माना गया। मगर बाद के दिनों में अमेरिका द्वारा यरुशलम को इजरायल की राजधानी मानने के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में पेश प्रस्ताव का जब नई दिल्ली ने समर्थन किया, तो भारत और इजरायल के रिश्ते में खटास आती दिखी। अच्छी बात है कि बीते सोमवार को हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने यह साफ कर दिया कि भारत के उस रुख से उन्हें निराशा तो हुई, पर इससे आपसी रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जाहिर है, उनकी यह यात्रा इजरायल की तरफ से द्विपक्षीय दोस्ती को ठोस करने का संकेत है, जिसका भारत ने भी दिल से जवाब दिया है।
इजरायली प्रधानमंत्री के इस दौरे में कई मसलों पर सहमति बनी है। स्टार्टअप, रक्षा और निवेश सहित साइबर सुरक्षा, फिल्म-निर्माण, सौर ऊर्जा आदि को लेकर भी दोनों देशों ने मिलकर काम करने का भरोसा जताया है। इन करारों से आम जनता, विशेषकर युवा सशक्तीकरण की दिशा में और उनमें कौशल निखारने में काफी मदद मिलेगी। दुनिया के जिस किसी अनुसंधान व विकास केंद्र या विश्वविद्यालय में भारतीय व इजरायली साथ-साथ काम कर रहे हैं, उनमें गहरी मित्रता देखी गई है। वे एक-दूसरे के मददगार साबित हुए हैं। ऐसे में, अगर हम देश के भीतर इजरायली प्रौद्योगिकी या स्टार्टअप को प्रोत्साहित कर सके और तकनीकी कौशल विकास केंद्र स्थापित कर सके, तो यह हमारे लिए काफी सुखद स्थिति होगी। हमारे यहां कई वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं हैं और वे बेहतर स्थिति में भी हैं, लेकिन अंतरिक्ष एवं परमाणु-ऊर्जा जैसे चंद केंद्रों को छोड़ दें, तो नतीजों के मामले में ये प्रयोगशालाएं कुछ खास साबित नहीं हुई हैं। इजरायल में ऐसा नहीं है। उससे हम अब काफी कुछ सीख सकेंगे।
कृषि क्षेत्र में भी मिलकर काम करने पर बनी सहमति सुखद है। अपने यहां आमतौर पर सरकारें मध्यवर्ग के हितों का ही ख्याल रखती हैं। इस कारण विकास की दौड़ में गरीब व ग्रामीण तबकों के लोग पीछे छूट जाते हैं। भारत और इजरायल के बीच वाटर हॉर्वेस्टिंग यानी बारिश की पानी को संरक्षित करने, जल-प्रबंधन और कृषि संबंधी अन्य प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण को लेकर समझौता हुआ है। इससे जाहिर तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में तरक्की को पंख मिलेंगे। हालांकि इन क्षेत्रों में हमें पहले से भी इजरायल का सहयोग मिलता रहा है, लेकिन अब इसमें पर्याप्त मजबूती आएगी। इसी तरह, सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को लेकर हुआ समझौता भी स्वागत के योग्य है। इजरायल सीमा पार आतंकियों की पहचान करने और उन्हें खत्म करने में खास योग्यता रखता है। अब वह इसे हमसे भी साझा कर सकेगा। रक्षा क्षेत्रों में सहयोग बढ़ने पर इस मसले पर बात आगे बढ़ेगी।
भारत और इजरायल की दोस्ती विश्व राजनीति को काफी प्रभावित कर सकती है। यरुशलम-विवाद का एक अच्छा पक्ष यह था कि संयुक्त राष्ट्र के उस प्रस्ताव से दुनिया के करीब-करीब सभी देशों ने सहमति जताई थी। यह इजरायल, उसके मित्र देशों, पश्चिम एशिया के राष्ट्रों और इस मसले में दखल रखने वाले सभी पक्षों के लिए एक संकेत था कि वहां किसी भी सूरत में शांति-व्यवस्था बिगड़ने न दी जाए। सभी मुल्क पश्चिम एशिया में स्थिरता के पक्ष में हैं। तनाव के मसलों का वे जल्द से जल्द निपटारा चाहते हैं। यह संभव भी दिख रहा है, क्योंकि जिस तरह वहां नए मुद्दे उभर रहे हैं, उनसे निपटना अब काफी जरूरी हो चला है। इस्लामिक स्टेट का जन्म ऐसी ही एक गंभीर समस्या है। इस गुट के खिलाफ बेशक कार्रवाई की जा रही है, लेकिन यह दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने की जुगत में है। उसके बढ़ते कदम को रोकने के लिए पश्चिम एशिया, खासकर इजरायल के साथ संबंध आगे बढ़ाने की दरकार है। भारत इन्हीं कोशिशों में जुटा हुआ है, जिसकी तारीफ की जानी चाहिए।
पश्चिम एशिया का एक अन्य मसला यमन में जारी उथल-पुथल है। वहां के हालात काफी बदतर हैं और लोग पलायन करने को मजबूर हैं। अरब देशों के आपसी मतभेद और कतर पर लगाए गए प्रतिबंध भी पश्चिम एशिया में तनाव के नए बीज हैं। कुल जमा स्थिति यही बता रही है कि फलस्तीन विवाद अब खत्म होना चाहिए। भारत इसमें बड़ी पहल कर सकता है। यूरोपीय देशों, चीन, रूस आदि से मिलकर नई दिल्ली, इजरायल व फलस्तीन के बीच कोई सर्वमान्य हल निकाल सकती है।
इजरायल के साथ गहरी दोस्ती चीन और पाकिस्तान पर दबाव बनाने में भी कारगर है। इजरायल का चीन के साथ बेहतर रिश्ता है। वह बीजिंग से पौद्योगिकी का लेन-देन तो करता ही है, हमसे कहीं अधिक द्विपक्षीय कारोबार भी करता है। चूंकि नई वैश्विक व्यवस्था में चीन अत्यधिक दखल की मंशा पाले हुए है, इसलिए जरूरी है कि एक संतुलित शांति-व्यवस्था बनाने की दिशा में आगे बढ़ा जाए। इसमें इजरायल हमारे लिए मददगार हो सकता है। जो स्टार्टअप तकनीक चीन को मिल सकती है, हमारी कोशिश उसे पहले भारत लाने की होनी चाहिए। इसी तरह, कश्मीर पर इजरायल हमारे साथ है। उसे अपने साथ रखकर हम पाकिस्तान पर दबाव बना सकते हैं। इजरायल ही नहीं, कश्मीर पर हमारे रुख का समर्थन करने वाले तमाम देशों को एक साथ लाकर हम कश्मीर समाधान की नई पहल कर सकते हैं।
इजरायल, पश्चिम एशिया और इस्लामिक देशों के साथ हमारे संबंध हमारी विदेश नीति के लाभांश रहे हैं। मोदी सरकार ने इन रिश्तों को एक नई दिशा दी है। इजरायल व फलस्तीन के मसले पर हमारे प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रुख दिखाया है। उन्होंने अफगानिस्तान में स्थिरता कायम करने के लिए अमेरिकी रवैये से निरपेक्ष रास्ता अपनाया है। इससे दुनिया भर में हमारा कद बढ़ा है। जाहिर है, इससे पाकिस्तान पर अंकुश लगाने और चीन के साथ व्यावहारिक रुख अपनाने में मदद मिलेगी। साल 2017 ऐसे प्रयासों की तरफ कदम बढ़ाने का वर्ष रहा है। उम्मीद है, मौजूदा साल में हमें इसके अच्छे नतीजे मिलेंगे। (ये लेखक के अपने विचार हैं)