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किसानों की आय दोगुनी करने के लिए

राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष एमएस स्वामीनाथन ने अपनी रिपोर्ट में यह अनुशंसा की थी कि कृषि आधारित सोच के साथ-साथ किसानों के कल्याण पर भी उचित ध्यान दिया जाना चाहिए। यह किसान ही है, जो आर्थिक...

किसानों की आय दोगुनी करने के लिए
राधा मोहन सिंह, केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रीWed, 15 Aug 2018 09:19 PM
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राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष एमएस स्वामीनाथन ने अपनी रिपोर्ट में यह अनुशंसा की थी कि कृषि आधारित सोच के साथ-साथ किसानों के कल्याण पर भी उचित ध्यान दिया जाना चाहिए। यह किसान ही है, जो आर्थिक बदलावों में किए गए प्रयासों को महत्वपूर्ण दिशा प्रदान करता है। अत: व्यवस्था में आमूल परिवर्तन के लिए कृषि में फसल उपरांत प्रसंस्करण बाजार और इससे संबंधित व्यवस्था पर समुचित ध्यान देना होगा। नैसर्गिक संपदाओं में लगातार क्षरण और जलवायु परिवर्तन को देखते हुए आयोग ने विज्ञान आधारित प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और सतत उत्पादन व विकास की तरफ भी ध्यान देने की बात कही थी। अब उन्होंने भी स्वीकार किया है कि पिछले चार साल में इस दिशा में काफी प्रयास हुए हैं। खासकर किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने और कृषि उत्पादन लागत में कमी करने के लिए। देशव्यापी ‘सॉइल हेल्थ कार्ड’ स्थापित करना इसी सोच का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

नाइट्रोजन उपयोग क्षमता को बढ़ाने और उपयोग की मात्रा व इससे जुड़ी लागत को घटाने के लिए नीम कोटिड यूरिया के उपयोग को अनिवार्य बना दिया गया है। इससे उत्पादकता में सुधार हुआ है और खेती की लागत घटी है। इससे इसके गलत उपयोग और गैर-कृषि क्षेत्र में इसके इस्तेमाल को रोकने में भी मदद मिली है। सतत कृषि विकास और मृदा स्वास्थ्य के लिए ऑर्गेनिक खेती को परंपरागत विकास योजना के साथ जोड़ दिया गया है, जिसमें पुआल का इन-सीटू प्रबंधन भी शामिल है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के लागू होने से खेती के कार्यों में उचित जल प्रबंधन हो सकेगा। साथ ही, 2016 में दुनिया की सबसे बड़ी फसल बीमा योजना व मौसम आधारित फसल बीमा योजना को शुरू किया गया, जो किसानों को सभी जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करती है।

राष्ट्रीय किसान आयोग ने किसानों की आय बढ़ाने हेतु बहुत सारे सुधारों की सिफारिश की थी, जिसको आधार मानकर सरकार ने बहुत सारी योजनाएं लागू की हैं। इसके साथ ही कृषि भूमि को पट्टे पर देने से संबंधित नया कानून लागू किया गया, जिसमें जमीन के मालिक और पट्टा लेने वाले, दोनों के हितों का ख्याल रखा गया है। बाजार सुधार लागू करने से बाजारों में पारदर्शिता बढ़ी है। देश की राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक ई-मार्केट स्कीम (ई-नाम) एक ऐसा उपाय है, जो देश भर के कृषि बाजारों को एक साथ जोड़ता है। साथ ही, 585 कृषि उत्पाद समितियों के अलावा बाकी मंडियों के बीच खुले व्यापार पर ध्यान देकर राष्ट्रीय कृषि बाजार की स्थापना की गई है। ग्रामीण कृषि बाजार स्थापित होने से किसान सीधे तौर पर उपभोक्ताओं या खुदरा विक्रेताओं को अपने उत्पाद बेच सकेंगे। 

सरकार के तमाम फैसलों में लागत से न्यूनतम 50 प्रतिशत ज्यादा समर्थन मूल्य देने का निर्णय सबसे महत्वपूर्ण है। साथ ही, इसे नया विस्तार भी दिया गया है। हरित क्रांति की शुरुआत से सरकारी खरीद केवल धान व गेहूं तक सीमित रही है। कभी-कभी कुछ और जिन्सों की खरीदारी भी की जाती रही है। पर अब दलहन और तिलहन की खरीदारी में भारी वृद्धि हुई है। हम दलहन, तिलहन के आलावा अन्य मोटे अनाजों के उत्पादन करने वाले किसानों समेत सभी तरह के किसानों को राज्य सरकारों के माध्यम से लाभ पहुंचाएंगे। अभी तक ऐसे ज्यादातर किसान उपेक्षित थे, लेकिन अब  उन्हें महत्व दिया जा रहा है। ये ऐसी फसलें हैं, जो हमारी जलवायु के अनुकूल हैं और भविष्य में जलवायु परिवर्तन को सहने की क्षमता भी रखती हैं। इस सिलसिले को बढ़ाते हुए हमारा लक्ष्य 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का है। 

खेती के अलावा पशुपालन, मछली पालन, जलजीवों के विकास को भी सरकार ने अपनी नीतियों व योजनाओं में उचित प्राथमिकता दी है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन, जो देसी नस्लों के संरक्षण व विकास पर आधारित है, उस पर ध्यान दिया जाना समुचित कृषि विकास का अभिन्न अंग है। इससे बहुत सारे लघु व सीमांत किसान, जिसमें भूमिहीन कृषि मजदूर शामिल हैं, और जो देसी नस्लें पालते हैं, सबको उचित लाभ मिल रहा है। देश में 161 देसी नस्लों का पंजीकरण किया गया है, जिसके विकास के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद सक्रिय हो गई है। मछली उत्पादन विकास से जुड़ी परियोजनाओं से मछुआरों के जीवन में आशातीत सुधार हो रहे हैं। मछली उत्पादन क्षेत्र ने कृषि के बाकी सभी क्षेत्रों से ज्यादा वृद्धि दर हासिल की है।

ऐसे लघु किसान, जो परिवार के भरण-पोषण के लिए समुचित आय नहीं कमा सकते, उनके लिए सहयोगी कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार की कृषि आधारित सहयोगी योजनाएं, जिनमें मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन, कृषि वानिकी और बांस उत्पादन आदि शामिल हैं। इन योजनाओं से कृषि में अतिरिक्त रोजगार व आमदनी पैदा करने में सहायता मिलेगी। राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा की गई उत्पादकता बढ़ाने व कुपोषण दूर करने संबंधी सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा पिछले चार साल में ही फसलों की कुल 795 उन्नत किस्में विकसित की गई हैं। इनमें से 495 किस्में जलवायु के विभिन्न दबावोंको सहने में सक्षम हैं। इनका लाभ किसान उठा रहे हैं। सीमांत व लघु किसान परिवारों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में पहल करते हुए कुल 45 एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल विकसित किए गए, जिनसे मिट्टी की सेहत और जल उपयोग की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा रहा है, साथ ही कृषि की जैव विविधता का संरक्षण किया जा रहा है। इन मॉडलों को गांव-गांव पहुंचाने के लिए प्रत्येक कृषि विज्ञान केंद्र में इस मॉडल को स्थाापित किया जा रहा है। ये सभी योजनाएं पूरी तरह से लागू हो गईं, तो कोई संदेह नहीं कि जब देश अपनी आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा होगा, तब हमारे किसानों की आमदनी दोगुनी हो चुकी होगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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