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आखिर हाशिये पर क्यों खड़ा है हॉकी का हीरो

पिछले करीब एक दशक में हॉकी के मैदान से जब भी कोई अच्छी खबर आई, उसके एक हीरो कम से कम सरदार सिंह जरूर रहे। उन्होंने न सिर्फ शानदार कप्तानी की, बल्कि एक खिलाड़ी के तौर पर ढेरों जिम्मेदारियां निभाईं। मगर...

आखिर हाशिये पर क्यों खड़ा है हॉकी का हीरो
शिवेंद्र कुमार सिंह, वरिष्ठ खेल पत्रकार Fri, 17 Nov 2017 10:38 PM
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पिछले करीब एक दशक में हॉकी के मैदान से जब भी कोई अच्छी खबर आई, उसके एक हीरो कम से कम सरदार सिंह जरूर रहे। उन्होंने न सिर्फ शानदार कप्तानी की, बल्कि एक खिलाड़ी के तौर पर ढेरों जिम्मेदारियां निभाईं। मगर सरदार सिंह आज मुश्किल में हैं। मुश्किल में इसलिए, क्योंकि उन्हें विश्व हॉकी लीग फाइनल के लिए चुनी गई टीम में जगह नहीं मिली है। यह मुश्किल इसलिए ज्यादा बड़ी है, क्योंकि सरदार सिंह यह भी नहीं कह सकते हैं कि उनके साथ अन्याय हुआ है। एक परिपक्व खिलाड़ी के तौर पर सरदार सिंह को यह अच्छी तरह पता है कि उन्हें बाहर रखने का फैसला उनकी फॉर्म और फिटनेस से जुड़ा हुआ है। उनकी जगह उनसे ज्यादा बेहतर विकल्प टीम में जगह बना चुके हैं। 

विश्व हॉकी लीग फाइनल के मुकाबले आगामी 1 दिसंबर से भुवनेश्वर में खेले जाने हैं, जिसके लिए चुनी गई 18 खिलाड़ियों की टीम से सरदार सिंह को बाहर रखा गया है। टीम की कमान 25 साल के मनप्रीत सिंह को सौंपी गई है। साथ ही ड्रैग फ्लिकर रूपिंदरपाल सिंह की भी टीम में वापसी हुई है। चोट की वजह से बाहर चल रहे अनुभवी गोलकीपर पीआर श्रीजेश भी 18 खिलाड़ियों में जगह नहीं बना पाए हैं। जाहिर है, अब सरदार सिंह के पास दो ही रास्ते बचते हैं। संन्यास का या फिर वापसी के लिए संघर्ष का। यह फैसला सरदार सिंह को करना है कि वह किस रास्ते पर कदम आगे बढ़ाते हैं। वह 31 साल के हैं। 

सरदार सिंह के बाहर होने की वजहों पर गौर करना जरूरी है। मैदान में सरदार सिंह का रोल ‘प्लेमेकर’ का रहता है। ‘प्लेमेकर’ यानी फॉरवर्ड खिलाड़ियों के लिए गोल की संभावनाएं बनाना। पूर्व दिग्गज खिलाड़ी धनराज पिल्लै भी इसी भूमिका में खेला करते थे। भारतीय टीम ने जो पिछला टूर्नामेंट खेला, वह एशिया कप था। ढाका में खेले गए उस टूर्नामेंट में सरदार सिंह को टीम मैनेजमेंट ने इस रोल में नहीं रखा। यह जिम्मेदारी टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह ने निभाई। चुस्ती-फुर्ती में मनप्रीत फिलहाल सरदार सिंह पर भारी पड़ते हैं। सरदार सिंह एशिया कप में मिडफील्ड और डिफेंस के बीच खेलते दिखे। चूंकि टीम जीत गई, इसलिए इस बात पर इतनी चर्चा नहीं हुई, लेकिन सच्चाई यह है कि एशिया कप की जीत को बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर नहीं देखना चाहिए। दरअसल, एशिया कप में भारत के अलावा कोई ऐसी टीम नहीं थी, जो विश्व रैंकिंग में टॉप 10 में आती हो। ऐसे में, अगर भारत के किसी खिलाड़ी का प्रदर्शन कुछ कमजोर भी रहा हो, तो वह दिखाई नहीं दिया। हां, मगर टीम मैनेजमेंट और कोच ने उन बातों पर गौर जरूर किया। अब अगले टूर्नामेंट में उन कमजोरियों को सुधारना जरूरी है। ऐसा इसलिए, क्योंकि विश्व हॉकी लीग फाइनल में दुनिया भर की दिग्गज टीमें हिस्सा लेंगी। वहां एक छोटी सी भूल भी मैच के नतीजे पर सीधे असर डालेगी। भारत इस टूर्नामेंट के ग्रुप-बी में है, जहां उसके साथ इंग्लैंड, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया जैसी दिग्गज टीमें हैं। भारत का पहला मैच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ है।  

सरदार सिंह से किसी तरह की नाराजगी की आशंका इसलिए भी नहीं है, क्योंकि हॉकी इंडिया ने हमेशा उनका साथ दिया है। ओलंपिक से पहले जब वह एक महिला के साथ रिश्तों को लेकर बुरी तरह विवाद में फंसे थे, तब भी हॉकी इंडिया ने उनका पूरा साथ दिया था। उस विवादास्पद घटना के बाद भी सरदार सिंह अगर अभी तक मैदान में हैं, तो उसके पीछे उनके प्रदर्शन के अलावा हॉकी इंडिया का साथ की भूमिका है। अब प्रदर्शन अगर गिरा है, तो उसे सुधारने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। इस बात से किसी को इनकार नहीं है कि वह एक चैंपियन खिलाड़ी रहे हैं। अब ‘मेक’ और ‘ब्रेक’ के इस मुश्किल वक्त में सरदार सिंह ने अगर हिम्मत दिखाई, मैदान में पसीना बहाया, हौसले को कमजोर नहीं पड़ने दिया और प्रदर्शन के दम पर अपनी वापसी का दावा ठोका, तो वह असली चैंपियन कहलाएंगे। पर इसके लिए उन्हें दो बातों का एहसास होना बहुत जरूरी है कि कोई भी खिलाड़ी खेल से बड़ा नहीं है और खेल कोई भी हो, है बड़ी बेरहम चीज, सारी तालियां तभी तक मिलती हैं, जब तक आपके प्रदर्शन में जान है, आप जरा से कमजोर हुए, तो मैदान से बाहर होने में भी कतई देर नहीं लगती। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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