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बहुत जटिल है तरह-तरह के फ्लू से हमारी जंग

देश भर में फैलने वाले फ्लू के कभी-कभी अप्रत्याशित नतीजे भी निकलते हैं। हर साल लाखों लोग इससे प्रभावित होते हैं, जिनमें से कई कुछ दिनों के अंदर ठीक हो जाते हैं। मगर कुछ लोगों को परेशानियां बढ़ने पर...

बहुत जटिल है तरह-तरह के फ्लू से हमारी जंग
संचिता शर्मा, हेल्थ एडीटर, हिन्दुस्तान टाइम्सWed, 02 May 2018 01:09 AM
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देश भर में फैलने वाले फ्लू के कभी-कभी अप्रत्याशित नतीजे भी निकलते हैं। हर साल लाखों लोग इससे प्रभावित होते हैं, जिनमें से कई कुछ दिनों के अंदर ठीक हो जाते हैं। मगर कुछ लोगों को परेशानियां बढ़ने पर अस्पताल में भी भरती करवाना पड़ता है। साल 1918 में जब फ्लू ने महामारी का रूप लिया था, तब करीब दुनिया भर में पांच करोड़ लोगों की मौत हुई थी। उसके बाद से विज्ञान ने तमाम तरह की प्रगति की है, पर ‘सीजनल फ्लू’ यानी मौसमी बुखार अब भी लोगों की जान ले रहा है। इसकी बड़ी वजह यही है कि फ्लू का वायरस शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को भेदने के हिसाब से अपना रूप बदलने में सक्षम होता है।

कुल तीन तरह के मौसमी इन्फ्लूएंजा वायरस होते हैं, जिनमें से दो- इन्फ्लूएंजा बी और सी, ही आमतौर पर इंसानों को संक्रमित करते हैं, जबकि इन्फ्लूएंजा ए वायरस पक्षी, सूअर, घोड़े, व्हेल, बिल्ली, कुत्ते, सील जैसे जीव-जंतुओं को संक्रमित करता है। मौसमी बुखार की वजह इन्फ्लूएंजा ए और बी बनते हैं, जिस कारण हर साल दुनिया की 10-15 फीसदी आबादी बीमार होती है। इन्फ्लूएंजा ए पक्षियों को अधिक संक्रमित जरूर करता है, पर यह इसलिए अधिक चिंता की वजह है, क्योंकि इसके आनुवांशिक पदार्थ नए फ्लू वायरस में ढलकर इंसानों में फैलने की क्षमता रखते हैं। यही नया वायरस महामारी का कारण बनता है, क्योंकि इंसानों में इसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता नहीं होती। ऐसे ही एक नए वायरस के कारण पिछली बार महामारी 2009-10 में फैली थी, जब एच1एन1 वायरस ने करीब तीन लाख लोगों की जान ली। टाइप ए वायरस अपनी खास किस्मों और दो ‘सर्फेस’ प्रोटीन- हेमाग्लुटाइनिन (एच) और न्यूरमिनिडेस (एन) के आधार पर कई हिस्सों में बांटा गया है। फ्लू वायरस में 18 तरह के ‘एच प्रोटीन’ और 11 तरह के ‘एन प्रोटीन’ होते हैं। मानव एंटीबॉडी एक से तो जंग लड़ता है, पर दूसरे को पहचान नहीं पाता। जिस कारण दूसरा शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को भेद देता है। एच1एन1, एच2एन2 और एच3एन2 ऐसे ही इन्फ्लूएंजा ए वायरस हैं, जो आसानी से मानवों से बीच फैलने के लिए अनुकूलित हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, आजकल एच1एन1 और एच3एन2 इन्फ्लूएंजा ए वायरस दो अन्य टाइप बी वायरस के साथ इंसानों को कहीं अधिक बीमार बनाता दिख रहा है। दोनों टाइप बी वायरस का नाम विक्टोरिया (ऑस्ट्रेलिया) और यामागाता (जापान) के नाम पर रखा गया है, क्योंकि वे पहली बार यहीं पाए गए थे। टाइप सी वायरस से हल्का संक्रमण होता है, और इसका प्रसार भी नहीं होता है।
 
वायरस का सबसे घातक प्रकार वह होता है, जो सबसे अधिक संक्रामक होता है और नाक-गले आदि को प्रभावित करके हमारे श्वसन तंत्र पर हमला करता है। फ्लू सीधे तब मारता है, जब वह फेफड़े आदि में निमोनिया की वजह बनता है। फ्लू कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र वाले लोगों, गर्भवती महिलाओं और 65 वर्ष से अधिक उम्र के इंसानों में बार-बार होता है। दिल की बीमारियों से पीड़ित लोग, मधुमेह और मोटापे के शिकार शख्स के लिए भी चुनौती कम नहीं मानी जाती।

मुश्किल यह भी है कि फ्लू के खिलाफ शरीर में जीवनभर के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं होती। इसकी वजह है, सर्फेस ‘एच’ प्रोटीन का लगातार बदलते रहना। इस कारण एंटीबॉडी के लिए कठिन हो जाता है कि वह पिछले फ्लू को पहचान कर नए का मुकाबला कर सके। चूंकि प्रभावित करने वाले वायरस लगातार बदलते रहते हैं, इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन हर साल फरवरी में प्रभावी वायरस से निपटने के लिए नए टीका लगाने की सलाह देता है। इस साल का टीका ए/ मिशिगन एच1एन1, ए/सिंगापुर ए3एन2, बी/कोलोराडो  (बी/ विक्टोरिया वंश के) और बी/फुकेत (बी/ यागामाता वंश के) वायरस से सुरक्षा देने में सक्षम है। हालांकि वैक्सिन हमारी सुरक्षा तो करती है, पर पूरी तरह नहीं करती। मगर फ्लू से पैदा होने वाली परेशानियों को कम करने और मौत को टालने के लिए सभी को टीका लगाना चाहिए। वैज्ञानिक तो अब ऐसा वैक्सीन तैयार करने में जुटे हैं, जो सभी तरह के वायरस से रक्षा करने में सक्षम हो। इससे महामारी जैसी स्थिति से बचा जा सकेगा।

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