रवि शास्त्री को ही क्यों मिली कोच की जिम्मेदारी
कुछ न कुछ खास तो रवि शास्त्री मे है ही कि उन्हें पिछले करीब एक दशक में अलग-अलग रोल के साथ टीम इंडिया की जिम्मेदारी दी गई है। इसकी शुरुआत तब हुई थी, जब 2007 विश्व कप में भारतीय टीम वेस्ट इंडीज से बुरी...
कुछ न कुछ खास तो रवि शास्त्री मे है ही कि उन्हें पिछले करीब एक दशक में अलग-अलग रोल के साथ टीम इंडिया की जिम्मेदारी दी गई है। इसकी शुरुआत तब हुई थी, जब 2007 विश्व कप में भारतीय टीम वेस्ट इंडीज से बुरी तरह पिटकर लौटी थी। इसके तुरंत बाद टीम इंडिया को बांग्लादेश का दौरा करना था। कुछ साल बाद इंग्लैंड में टेस्ट सीरीज में शर्मनाक हार के बाद भी बीसीसीआई को रवि शास्त्री की याद आई थी। तब भी उन्हें क्रिकेट डायरेक्टर की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इस बार बड़ा फर्क यह है कि शास्त्री को बाकायदा चीफ कोच की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पिछले एक दशक में मौके-बेमौके रवि शास्त्री टीम इंडिया के साथ जरूर जुड़े रहे, लेकिन यह पहला मौका है, जब उन्हें एक ‘फुलटाइम’ कोच के तौर पर चुना गया है। उनके साथ-साथ जहीर खान को गेंदबाजी कोच की जिम्मेदारी सौंपी गई है। साथ-साथ यह भी तय किया गया है कि राहुल द्रविड़ विदेशी दौरों पर टीम इंडिया के बल्लेबाजों को ‘टिप्स’ देंगे। आपको याद दिला दें कि विराट कोहली से मतभेद के बाद अनिल कुंबले ने टीम इंडिया के कोच की जिम्मेदारी छोड़ दी थी। उसके पहले से ही विराट कोहली लगातार रवि शास्त्री के नाम की वकालत कर रहे थे।
मगर बतौर कोच रवि शास्त्री आखिर विराट कोहली की पहली पसंद क्यों हैं? कोच के पद के लिए दावेदारी तो टॉम मूडी, वीरेंद्र सहवाग और रिचर्ड पाइबस जैसे खिलाडि़यों ने भी जताई थी। लेकिन पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम से साफ था कि रवि शास्त्री को कोच चुना जाएगा। रवि शास्त्री ने 2014 से लेकर 2016 तक यानी करीब दो साल तक टीम इंडिया की जिम्मेदारी बतौर डायरेक्टर संभाली थी। इसी दौरान इंग्लैंड से टेस्ट सीरीज में बुरी तरह हारने के बाद भारत ने उसे वनडे सीरीज में हराया था। रवि शास्त्री के रहते ही टीम इंडिया का विश्व कप और ट्वंटी-20 विश्व कप में भी प्रदर्शन अच्छा रहा था। हां, यह जरूर है कि इनमें से ज्यादातर मौकों पर रवि शास्त्री के साथ वनडे मैचों में कप्तान के तौर पर महेंद्र सिंह धौनी की जोड़ी थी, लेकिन जब दिसंबर 2014 में धौनी ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लिया, तो कप्तानी की जिम्मेदारी विराट कोहली को मिली। यहीं से विराट कोहली और रवि शास्त्री की आपसी समझ विकसित होना शुरू हुई। ऑस्ट्रेलिया से लौटने के बाद भारतीय टीम का पहला बड़ा दौरा श्रीलंका का था। यहां उस दौरे को याद रखना बहुत जरूरी है।
करीब दो साल बाद ‘ऐक्शन रीप्ले’ की स्थिति है। विराट कोहली बतौर कप्तान रवि शास्त्री के करीब श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट सीरीज में ही आए थे। वह भी इसलिए, क्योंकि श्रीलंका के दौरे पर पहले ही मैच में विराट कोहली को 63 रनों से हार का सामना करना पड़ा था। भारत के लिए वह हार बड़ी शर्मनाक थी। पहली पारी में भारतीय टीम को करीब 200 रनों की बढ़त मिली थी। इसमें विराट कोहली का शतक भी था। इसके बावजूद चौथी पारी में जब 176 रनों का लक्ष्य भारतीय टीम को मिला, तो पूरी टीम ताश के पत्तों की तरह बिखर गई। नतीजा उसे हार का सामना करना पड़ा।
एक नए कप्तान को ऐसे वक्त में टीम डायरेक्टर से जिस तरह के सहारे की जरूरत थी, वैसा सहारा, वैसी ‘टिप्स’ विराट कोहली को रवि शास्त्री से मिली। इसका नतीजा यह हुआ कि अगले दोनों टेस्ट मैच में भारतीय टीम ने विराट कोहली की कप्तानी में जीत हासिल की। कोलंबो में खेले गए दूसरे टेस्ट मैच में भारत ने श्रीलंका को 278 रनों और तीसरे टेस्ट मैच में 117 रनों से हराया। पहले मैच में हारने के बाद श्रीलंका को उसी के घर में बाकी दोनों मैचों में हराना बड़ी कामयाबी थी। श्रीलंका को उसी के घर में भारत ने करीब दो दशक के बाद हराया था।
जाहिर है, यहीं से विराट कोहली और रवि शास्त्री की ‘बॉन्डिंग’ बननी शुरू हुई थी। विराट कोहली की पसंद और नापसंद की इस समय जो चर्चाएं चल रही हैं, उनके बीच यह नहीं भूलना चाहिए कि रवि शास्त्री विश्व क्रिकेट की एक ऐसी हस्ती हैं, जिन्होंने 1981 में एक स्पिनर और दसवें नंबर के बल्लेबाज के तौर पर अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की थी और 11 साल बाद जब उन्होंने टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहा, तो वह टीम इंडिया के सलामी बल्लेबाज बन चुके थे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)