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मृत्युदंड नहीं, दंड प्रक्रिया की सख्ती से रुकेंगे दुष्कर्म

राजस्थान में 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ दुष्कर्म या गैंगरेप करने वालों को फांसी की सजा देने का प्रावधान जल्द ही लागू होने जा रहा है। मध्य प्रदेश और हरियाणा सरकारें नाबालिगों के साथ दुष्कर्म...

मृत्युदंड नहीं, दंड प्रक्रिया की सख्ती से रुकेंगे दुष्कर्म
ऋतु सारस्वत, समाजशास्त्रीSun, 11 Mar 2018 08:37 PM
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राजस्थान में 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ दुष्कर्म या गैंगरेप करने वालों को फांसी की सजा देने का प्रावधान जल्द ही लागू होने जा रहा है। मध्य प्रदेश और हरियाणा सरकारें नाबालिगों के साथ दुष्कर्म करने वालों को मृत्युदंड देने के प्रावधान वाला बिल पहले ही पारित करा चुकी हैं। उल्लेखनीय है कि दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष नाबालिगों के साथ दुष्कर्म के विषय को लेकर 31 जनवरी से ही ‘सत्याग्रह’ पर हैं व ‘रेप रोको’ अभियान चला रही हैं। इस अभियान के तहत लोगों के हस्ताक्षरयुक्त एक लाख पत्र प्रधानमंत्री को भेजे जाने हैं। ऐसे में, एक बड़ा सवाल यह है कि क्या फांसी की सजा दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं को रोकने में कारगर होगी? यह एक ऐसा प्रश्न है, जिस पर व्यापक चर्चा करने की जरूरत है। 

सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक धड़ा यह मानता है कि मृत्युदंड के प्रावधान से पीड़ित बच्चे के जीवन को खतरा हो सकता है, वहीं मानवाधिकार समर्थक हमेशा से ही ‘मृत्युदंड’ को अपराध समाप्ति का कारगर रास्ता नहीं मानते हैं। उल्लेखनीय है कि भारत में आज तक सिर्फ एक व्यक्ति को दुष्कर्म और हत्या के मामले में फांसी पर लटकाया गया है। 14 साल तक चले मुकदमे और विभिन्न अपीलों के खारिज होने के बाद फरवरी 2004 में पश्चिम बंगाल के धनंजय चटर्जी को कोलकाता की एक 15 वर्षीय स्कूली छात्रा के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में फांसी हुई थी। 

इस सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि पिछले कुछ वर्षों में बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामलों में तेजी से इजाफा हुआ है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2016 के आंकड़े बताते हैं कि उस एक साल में बच्चों के साथ दुष्कर्म के 19,765 मामले दर्ज किए गए हैं, जो 2015 की तुलना में 82 प्रतिशत ज्यादा है। यहां यह भी गौर करने वाली बात है कि वर्मा कमीशन की अनुशंसाओं के बाद कानून को काफी सख्त बनाया गया, इसके बावजूद दुष्कर्म के मामले बढ़ रहे हैं। अभी भी बलात्कार के 95 हजार मामले विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। अब अगर मान भी लिया जाए कि मृत्युदंड का भय अपराधी को डराता है, तो वे सारे अपराध, जिन पर वर्षों से ‘मृत्युदंड’ का प्रावधान है, शायद घटित ही नहीं होते। यानी यह तय है कि अगर बच्चियों से दुष्कर्म पर फांसी की सजा का प्रावधान देश भर में लागू हो भी जाता है, तो इससे अपराधों में कमी नहीं आने वाली, क्योंकि सजा का स्वरूप नहीं, दंडित होने की प्रक्रिया ही अपराध को रोक सकती है। 

कुछ सवाल हैं। क्या नाबालिग के दुष्कर्मियों को फांसी का प्रावधान होने पर गवाह, अपील और कानून के दांवपेच भी बदल जाएंगे? कानून की वे संकरी गलियां यकायक चौड़ी हो जाएंगी, जिनसे निकलकर आज तक अपराधी बचते आए हैं? दरअसल समस्या कानून में नहीं, समस्या उसकी पालना में है। अभी दुष्कर्म के 95 हजार मामले कोर्ट में लंबित हैं और इनमें से ज्यादातर दुष्कर्मी आश्वस्त हैैं कि कानून की पेचीदगियों के चलते वे छूट ही जाएंगे। ऐसे में, अगर गौर करना है, तो इस बात पर करना चाहिए कि कैसे न्यायपालिका, पुलिस और प्रशासन को ज्यादा से ज्यादा जवाबदेह बनाया जाए कि वे इन मामलों को गंभीरता से लें। 

दुष्कर्म के मामले को थाने में दर्ज कराने से लेकर, अदालत के दरवाजे तक पहुंचने में तो खासा समय लगता ही है, कई बार तो पीड़िता को अपने साथ हुआ अपराध साबित करने की जद्दोजहद में ही कई साल लग जाते हैं। उल्लेखनीय है कि दिल्ली में एक आठ महीने की बच्ची के साथ हुई बर्बरता की घटना के बाद दायर की गई जनहित याचिका में पोस्को कानून के तहत 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ दुष्कर्म के मामले में जांच और सुनवाई के लिए उचित दिशा-निर्देश तय करने की गुहार लगाई गई है, जिससे जांच व सुनवाई प्रथम जांच रिपोर्ट दर्ज होने के छह महीने के भीतर पूरी हो सके। अगर आने वाले समय में वर्तमान में लागू दुष्कर्म के कानून का भी गंभीरता और समय-सीमा की बाध्यता के साथ लागू करने का प्रयास किया जाता है, तो काफी हद तक संभावना है कि दुष्कर्म की घटनाओं में कमी आए। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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