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Hindi News ओपिनियन नजरियापूरी तरह बदल चुकी है हमारे गेंदबाजों की सोच

पूरी तरह बदल चुकी है हमारे गेंदबाजों की सोच

चौथे वनडे में टीम इंडिया जब सिर्फ 92 रन पर सिमटी, तो तमाम फैंस को फिक्र हुई। उन्हें घबराहट इस बात की थी कि विश्व कप से कुछ महीने पहले इस तरह की सामूहिक नाकामी क्या संदेश देगी? अगले मैच में भी शुरुआत...

पूरी तरह बदल चुकी है हमारे गेंदबाजों की सोच
शिवेंद्र कुमार सिंह वरिष्ठ खेल पत्रकार Mon, 04 Feb 2019 11:57 PM
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चौथे वनडे में टीम इंडिया जब सिर्फ 92 रन पर सिमटी, तो तमाम फैंस को फिक्र हुई। उन्हें घबराहट इस बात की थी कि विश्व कप से कुछ महीने पहले इस तरह की सामूहिक नाकामी क्या संदेश देगी? अगले मैच में भी शुरुआत बहुत खराब रही। 10 ओवर और 20 रन तक पहुंचने के पहले कप्तान रोहित शर्मा, शिखर धवन, महेंद्र सिंह धौनी और शुभमन गिल पैवेलियन लौट चुके थे। ऐसा लगा कि बल्लेबाजों की नाकामी का दौर अब लंबा चलने वाला है। इस मुश्किल वक्त में अंबाती रायडू और विजय शंकर ने मोर्चा संभाल लिया। केदार जाधव और हार्दिक पांड्या ने उनके संघर्ष को और मजबूत किया। छोटे-छोटे प्रयास कामयाब हुए। टीम इंडिया ढाई सौ रनों के सम्मानजनक स्कोर तक पहुंच गई। इसके बाद भी स्थिति काबू में नहीं थी। कप्तान रोहित शर्मा ने खुद ही कहा कि पिच पर बल्लेबाजी करना धीरे-धीरे आसान हो गया था और उन्हें डर था कि न्यूजीलैंड की टीम इस लक्ष्य तक पहुंच जाएगी। लेकिन 252 रनों के छोटे स्कोर पर भी जीत कैसे मिली? जवाब बहुत सीधा है- यह गेंदबाजों की जीत है। यह उन भारतीय गेंदबाजों की जीत है, जिन्होंने पिछले करीब दो साल में भारतीय क्रिकेट की तस्वीर और साख, दोनों बदल दी है। 
आज टीम इंडिया के गेंदबाज हर वक्त अपने कप्तान के साथ खडे़ हैं। एक किस्म की होड़ लगी हुई है कि कप्तान से गेंद लें और विरोधी टीम के बल्लेबाज को आउट करें। आत्मविश्वास का स्तर वहां है, जहां से हर गेंदबाज को लगता है कि वह विरोधी टीम के टिके-टिकाए बल्लेबाज को आउट कर देगा। आप तेज गेंदबाजों की बात करें या स्पिनर्स की। दोनों डिपार्टमेंट में गेंदबाजों की मन:स्थिति ऐसी ही है। वे मैदान में जीतने के लिए उतरते हैं। अब कप्तान को गेंदबाजों के पास नहीं जाना पड़ता, गेंदबाज कप्तान के पास आते हैं। 
आखिर तभी तो पांचवें वनडे में उन्होंने न्यूजीलैंड की टीम को 217 रनों पर ही समेट दिया। पूरी सीरीज में एक बार भी न्यूजीलैंड की टीम ढाई सौ रनों के पार नहीं पहुंच पाई। कई मैचों में पूरे पचास ओवर बल्लेबाजी करना भी मुहाल हो गया। भारतीय स्पिनर्स की कामयाबी का तो लंबा इतिहास है, लेकिन विदेशी पिचों पर जिस स्विंग, सीम और शॉर्ट गेंदों से भारतीय बल्लेबाजों को डराया जाता था, अब उन्हीं हथियारों के साथ भारतीय तेज गेंदबाज मैदान में उतरते हैं। न्यूजीलैंड के खिलाफ वनडे सीरीज में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले टॉप पांच गेंदबाजों में चार भारतीय हैं। चौथे वनडे में एक साथ पांच विकेट झटककर ट्रेंट बोल्ट इस लिस्ट में सबसे ऊपर जरूर हैं, लेकिन उसके बाद भारतीय गेंदबाजों का बोलबाला है। यह बोलबाला सिर्फ वनडे मैचों में नहीं है, टेस्ट क्रिकेट में भी भारतीय गेंदबाजों की धाक जमी है। अब भारतीय गेंदबाज विरोधी टीम के बल्लेबाजों को बाकायदा डरा रहे हैं। उनके हेलमेट पर गेंद लग रही है। ग्लव्स के बावजूद अंगुलियों में चोट लग रही है। 
मौजूदा गेंदबाजी यूनिट में मोहम्मद शमी, जसप्रीत बुमराह, ईशांत शर्मा, भुवनेश्वर कुमार, हार्दिक पांड्या और उमेश यादव मुख्य तौर पर हैं। कप्तान विराट कोहली इन्हीं गेंदबाजों के साथ मैदान में उतर रहे हैं। बीच-बीच में इन तेज गेंदबाजों को आराम भी दिया जा रहा है। 2018 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सीरीज में इन तेज गेंदबाजों ने मिलकर 50 विकेट लिए। इंग्लैंड में 3 टेस्ट मैचों में इन तेज गेंदबाजों ने 61 विकेट लिए। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हालिया सीरीज के चार टेस्ट  मैचों में 50 विकेट तेज गेंदबाजों के खाते में आए। अब स्पिनर्स का जिक्र। कुलदीप यादव, यजुवेंद्र चहल, आर अश्विन और रवींद्र जडेजा की चौकड़ी है, जो टेस्ट और वनडे के हिसाब से मैदान में उतरती है। 
इन सभी गेंदबाजों ने भी शानदार नतीजे दिए हैं। वनडे फॉर्मेट में कुलदीप यादव और यजुवेंद्र चहल की जोड़ी किसी भी विरोधी टीम पर भारी पड़ रही है। कुल मिलाकर, जिस भारतीय टीम को कई दशकों तक उसके मजबूत और स्टार बल्लेबाजों के लिए जाना जाता था, वह आज अपने गेंदबाजों और गेंदबाजी के वेरिएशन की वजह से जानी जा रही है। कप्तान विराट कोहली के लिए इससे सुखद स्थिति हो ही नहीं सकती। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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