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Hindi News ओपिनियन नजरियादुश्मन नहीं, कई मायनों में दोस्त हैं चमगादड़

दुश्मन नहीं, कई मायनों में दोस्त हैं चमगादड़

केरल में नेपाह वायरस से 13 लोगों की मौत की खबरों ने भय का ऐसा भयानक माहौल बनाया कि कोझिकोड और मलप्पुरम जिलों में कई लोग अपने-अपने घर ही छोड़कर चले गए। हालांकि शुरुआत में जिसे इस संक्रमण का स्रोत माना...

दुश्मन नहीं, कई मायनों में दोस्त हैं चमगादड़
संचिता शर्मा हेल्थ एडीटर, हिन्दुस्तान टाइम्सMon, 28 May 2018 11:00 PM
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केरल में नेपाह वायरस से 13 लोगों की मौत की खबरों ने भय का ऐसा भयानक माहौल बनाया कि कोझिकोड और मलप्पुरम जिलों में कई लोग अपने-अपने घर ही छोड़कर चले गए। हालांकि शुरुआत में जिसे इस संक्रमण का स्रोत माना गया था, बाद में लैब टेस्ट ने उसे गलत साबित कर दिया है। यह सही है कि परमिक्सोविरिडे परिवार के हेनीपावायरस वंश के फ्रूट बैट्स (चमगादड़) निपाह वायरस के मूल स्रोत होते हैं, मगर कोझिकोड जिले के चंगारोथ गांव में जिस घर से इस वायरस के कारण चार इंसानों की मौत हुई है, उसके कुएं में मौजूद चमगादड़ों में एनआईवी (नेपाह वायरस) नहीं मिला है।
इन चमगादड़ों की जांच भोपाल स्थित देश की शीर्ष पशु परीक्षण प्रयोगशाला में की गई। यह देश की तीन बायोसेफ्टी-लेवल 4 (बीएसएल-4) प्रयोगशालाओं में से एक है। बीते शुक्रवार को इस लैब द्वारा पेरांबरा के प्रभावित परिवारों से लिए गए चमगादड़ और पालतू मवेशियों के सभी 21 नमूनों में नेपाह वायरस न मिलने की पुष्टि के बाद केरल का स्वास्थ्य महकमा अब इस घातक संक्रमण के मूल स्रोतों को पता लगाने में जुट गया है। मोहम्मद साबिक की यात्रा-कुंडली भी खंगाली जा रही है, क्योंकि पिछले दिनों सऊदी अरब से वापस लौटे साबिक ही नेपाह वायरस का पहला शिकार बने थे। 
उम्मीद है कि भोपाल की रिपोर्ट चमगादड़ों को लेकर पैदा हुए खौफ को खत्म करेगी। हालांकि अभी दो-तीन दिन पहले भी हिमाचल प्रदेश के एक स्कूल परिसर में मृत चमगादड़ों के मिलने के बाद अभिभावकों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया था, लेकिन उन चमगादड़ों के भी नेपाह टेस्ट निगेटिव आए हैं। यहां समझना होगा कि अपने देश में फ्रूट बैट्स की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन इनमें से पेट्रोपस गिगांटस (ग्रेटर इंडियन फ्लाइंग फॉक्स), ओनीटेक्टेरिस स्पेलिया, साइनोप्टेरस, स्कॉटोफिलस कुहली और हिप्पोसिडेरस लार्वाट्स प्रजाति के चमगादड़ ही नेपाह वायरस का वाहक होते हैं। दिल्ली में भी अंजीर और जामुन के पेड़ों पर फ्लाइंग फॉक्स देखे जा सकते हैं।
बेशक चमगादड़ कई ऐसे वायरस के स्रोत हैं, जिनसे घातक जूनोटिक बीमारियां (जानवरों से मानव में फैलने वाले रोग) हो सकती हैं। मगर ये आमतौर पर महामारी नहीं बनती हैं और इनका निदान भी जल्दी हो सकता है। नेचर  में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, इंसान में 188 और एक अन्य स्तनधारी जीव में ज्ञात एक जूनोटिक वायरस में से अधिकतर की वजह चमगादड़ हैं। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि चमगादड़ की हर प्रजाति में लगभग 17 जूनोसिस पाए गए हैं, जबकि रोडंट (चूहे, गिलहरी आदि कुतरने वाले जीव) और प्राइमेट (नर वानर) में 10 पाए जाते हैं। 
आखिर यह संक्रमण फैलता कैसे है? इसकी वजह पारिस्थितिकीय संघर्ष है। असल में, एक तरफ चमगादड़ों के प्राकृतिक ठिकाने कम होते जा रहे हैं और दूसरी तरफ हम इंसान उसका लगातार शिकार कर रहे हैं। इस कारण संक्रमित चमगादड़ों के मूत्र व लार में मौजूद वायरस हमारे पर्यावरण को दूषित कर रहे हैं। जबकि चमगादड़ हमारे दुश्मन नहीं, दोस्त होते हैं। जैसे, घटते जंगल और भोजन की खोज के कारण फ्रूट बैट्स अनुकूलित होकर यायावर बन रहे हैं। वे कुछ दिनों के अंदर ही हजारों किलोमीटर की यात्रा कर लेते हैं। ऐसे में, अपने अपेक्षाकृत बड़े रोमदार शरीर के कारण वे पक्षियों व मधुमक्खियों की तुलना में कहीं अधिक कुशलता से परागण कर लेते हैं। 
ये किसानों की भी खूब मदद करते हैं। चमगादड़ के मल में भरपूर नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पेटोशियम होता है, जो जैविक खाद का काम करते हैं। इसकी कीटभक्षी प्रजातियां कीड़े-मकोड़े कम करती हैं। ध्यान देना होगा कि हिप्पोसिडोरोस चमगादड़ों को जब अजंता-एलोरा की गुफाओं से वहां के चित्रों को नुकसान पहुंचने के भय से भगा दिया गया था, तो उसके बाद आसपास की फसलें बर्बाद होने लगी थीं। यह बर्बादी तभी रुकी, जब चमगादड़ वहां लौट आए। साफ है कि परागण से लेकर कीटों को नियंत्रित करने तक चमगादड़ हमें कई तरीकों से लाभ पहुंचाते हैं। इनसे वायरस बमुश्किल फैलता है, इसलिए इनसे डरने की जरूरत नहीं है। हां, इनके संपर्क में आने या इनका शिकार करने से जरूर बचना चाहिए।

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