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पटाखों के सबसे बड़े शिकार बच्चों पर भी सोचें

सुप्रीम कोर्ट ने भले ही दीपावली के दिन पटाखों के इस्तेमाल की समय-सीमा बांध दी है और इसकी बिक्री पर भी कई तरह की पाबंदियां लगा दी हैं, मगर इस बीच पटाखों की आवाजें भी सुनाई देने लगी हैं। खबर है कि इस...

पटाखों के सबसे बड़े शिकार बच्चों पर भी सोचें
क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकारFri, 26 Oct 2018 01:05 AM
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सुप्रीम कोर्ट ने भले ही दीपावली के दिन पटाखों के इस्तेमाल की समय-सीमा बांध दी है और इसकी बिक्री पर भी कई तरह की पाबंदियां लगा दी हैं, मगर इस बीच पटाखों की आवाजें भी सुनाई देने लगी हैं। खबर है कि इस पाबंदी की आशंका लोगों को थी, इसीलिए कई 
लोगों ने पहले ही पटाखे खरीदकर रख लिए थे, ताकि दीपावली की रात वे निर्बाध उन पटाखों को भी फोड़ सकें, जिन पर अदालती पाबंदी है। लेकिन अभी जो पटाखों की आवाजें आ रही हैं, ज्यादातर मामलों में उनका इस्तेमाल करने वाले बच्चे ही हैं। पटाखों को लेकर बहुत से बड़ी उम्र के लोग लगभग पगलाए से रहते हैं। कुछ लोग इसे अपनी संपन्नता के प्रदर्शन के लिए फोड़ते हैं, कुछ महज मनोरंजन के लिए, तो कुछ के लिए यह भी अपनी मर्दानगी के प्रदर्शन का एक मौका होता है। इसके विपरीत बच्चों में पटाखों को लेकर एक सहज-स्वाभाविक उत्साह और आकर्षण होता है। और ये बच्चे ही पटाखों का सबसे बड़ा शिकार भी बनते हैं। पटाखों के प्रदूषण के भी और उसकी वजह से होने वाली दुर्घटनाओं के भी।
हर दीपावली के आसपास बच्चे पटाखे चलाते दिखते हैं। बच्चों का यह खेल दशहरे से ही शुरू हो जाता है और कई बार दीपावली के बाद तक चलता रहता है। बहुत बार उनके माता-पिता साथ होते हैं, लेकिन कई बार वे अकेले ही होते हैं। बच्चों को इस तरह से अकेले पटाखे चलाते देख मुझे एक घटना भुलाए नहीं भूलती। कई साल पहले दिवाली के दिन उस बच्चे ने जिद करके अपनी मां से फुलझड़ी, चरखियां, हवाई और आवाज करने वाले पटाखे खरीदे थे। वह घर से बाहर ये पटाखे चलाने लगा। थोड़ी देर तो मां उसके साथ रही, फिर कुछ लोग मिलने आ गए, तो वह मेहमानों का स्वागत करने अंदर चली गई। बच्चा कभी फुलझड़ी जलाता, कभी फिरकी घुमाता, तो कभी हवाई पटाखे को आसमान में उड़ते देखता। फिर वह ऐसे पटाखे जलाने लगा, जिन्हें जलाकर दूर फेंका जाता है और उनसे बहुत तेज धड़ाम की आवाज निकलती है, जिन्हें बम या कभी-कभी एटम बम कहा जाता है। उसने एक पटाखा जलाया, तो वह जला नहीं। बच्चे ने उसे अपनी कमीज की जेब में रख लिया, और फिर पटाखे जलाने में मस्त हो गया। जिस पटाखे को बच्चे ने जला हुआ न जानकर अपनी जेब में रख लिया था, वह दरअसल धीमे-धीमे भीतर-भीतर सुलग रहा था। एकाएक वह जेब में ही फटा और उसकी कमीज ने आग पकड़ ली। जब तक लोग पहुंचते उसे बड़ा सा घाव हो गया था, जिससे खून रिस रहा था। महीनों तक उसका इलाज कराना पड़ा। तब कहीं जाकर वह ठीक हुआ। अपने आस-पास के लोगों से बात कीजिए, वे ऐसी कई और घटनाएं आपको बता देंगे। यह बताता है कि दीपावली के दौरान बच्चों का पटाखों से घायल हो जाना एक आम बात है, लेकिन दिक्कत यह है कि इसे लेकर हम कभी कुछ करते नहीं। दिवाली के दिनों में अस्पतालों के बर्न वाड्र्स में विशेष इंतजाम किए जाते हैं। इस दौरान आग और पटाखों से जलने वाले काफी मरीज आते हैं और इनमें बड़ी संख्या बच्चों की होती है। 
पिछले कुछ वर्षों से बच्चों में प्रदूषण के प्रति चेतना जगाने के लिए उन्हें स्कूलों में काफी कुछ सिखाया जा रहा है। उन्हें यह भी बताया जा रहा है कि पटाखों से कितना प्रदूषण होता है और वह किस तरह से नुकसानदायक है। पटाखों में इस्तेमाल होने वाले रसायनों के बारे में आज के बच्चे शायद हमारी पीढ़ी से भी ज्यादा जानते हैं। कई जगह यह भी बताया जाता है कि पटाखों के उत्पादन में किस तरह से बाल मजदूरों का इस्तेमाल होता है। यहां तक कि पटाखों के बहिष्कार की शपथ तक दिलाई जाती है। लेकिन जब दीपावली आती है, तो आतिशबाजी के आकर्षण के सामने बच्चे ये सारे पाठ भूलकर पटाखों को फोड़ने वाली भीड़ में शामिल हो जाते हैं। दिक्कत यह है कि हम बच्चों को प्रदूषण और सेहत के सभी पाठ इस उम्मीद में पढ़ाते हैं कि वे पटाखों से दूर रहेंगे। इसलिए उन्हें पटाखों के खतरों से खुद को बचाने का ज्ञान नहीं दिया जाता, और समस्या यहीं से शुरू होती है। हमारे परिवार भी इस पर ध्यान ज्यादा नहीं देते। मानो यह किसी की प्राथमिकता में ही न हो।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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