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Hindi News ओपिनियन नजरियाचुनावी हार-जीत से होगी नए भाजपा अध्यक्ष की परख 

चुनावी हार-जीत से होगी नए भाजपा अध्यक्ष की परख 

भाजपा में यह परंपरा है कि इस दल में अध्यक्ष योग्यता और पार्टी कार्यकर्ता के रूप में अपने कार्यों के आधार पर चुने जाते हैं। इसी परंपरा में जगत प्रकाश नड्डा भी अध्यक्ष बनाए गए हैं। उन्हें कुछ महीने...

चुनावी हार-जीत से होगी नए भाजपा अध्यक्ष की परख 
शेषाद्रि चारी पूर्व संपादक, ऑर्गेनाइजरMon, 20 Jan 2020 11:28 PM
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भाजपा में यह परंपरा है कि इस दल में अध्यक्ष योग्यता और पार्टी कार्यकर्ता के रूप में अपने कार्यों के आधार पर चुने जाते हैं। इसी परंपरा में जगत प्रकाश नड्डा भी अध्यक्ष बनाए गए हैं। उन्हें कुछ महीने पहले कार्यकारी अध्यक्ष घोषित किया गया था और वे पार्टी के वरिष्ठतम पदों पर रहे हैं। पार्टी में कार्यकर्ता और पदाधिकारी के रूप में जितना अनुभव चाहिए, वह नड्डा के पास पर्याप्त है। 
2014 से लेकर अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं, लोकसभा के चुनाव से लेकर राज्यों के चुनाव तक, सबमें एक विशेष नेतृत्व अमित शाह ने किया है। साधारण कार्यकर्ता के स्तर से लेकर पार्टी अध्यक्ष होने तक अमित शाह का विस्तृत अनुभव अनेक स्तरों पर पार्टी में बहुत काम आया है। उन्होंने यह भी साबित कर दिया कि न केवल पार्टी को जिताना, अपितु राजनीतिक विजय हासिल करने की जो रणनीति है, उसमें भी वह अव्वल हैं। यहां तक कि कुछ ऐसे राज्य भी हैं, जहां पूर्ण बहुमत प्राप्त न होने के बावजूद भाजपा सरकार बनाने में सफल रही है। अमित शाह की ऐसी सफलताओं की कसौटी पर भी नड्डा को परखा जाएगा। 
हालांकि नड्डा पार्टी कार्यकर्ता और एक कुशल संगठक के नाते अपनी क्षमता का परिचय कई राज्यों में दे चुके हैं। वह पार्टी के विद्यार्थी संगठन से भी जुड़े थे। उन्हें पार्टी के युवा मोर्चा का दायित्व दिया गया था। युवा मोर्चा के पदाधिकारी के रूप उन्होंने अपने संगठन कौशल और वैचारिक अधिष्ठान, दोनों का परिचय दिया था। वह हिमाचल प्रदेश और केंद्र सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं। हिमाचल प्रदेश में भाजपा की जीत के बाद यह बात चली थी कि नड्डा को वहां मुख्यमंत्री बनाकर भेजा जाएगा, लेकिन पार्टी आलाकमान ने इन्हें केंद्र में ही रखने का जो निर्णय लिया, उससे स्पष्ट हो गया था कि उन्हें अध्यक्ष पद के लिए तैयार किया जा रहा है। जब अमित शाह को गृह मंत्री बनाया गया, तब यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया कि अगला पार्टी अध्यक्ष कौन बनेगा। परंतु जितनी सरलता से नड्डा पार्टी अध्यक्ष बनाए गए हैं, उनका कार्यकाल उतना सरल होने के आसार नहीं हैं। आज के उभरते राजनीतिक परिदृश्य में नड्डा का कार्यकाल निस्संदेह चुनौतीपूर्ण रहेगा। 
अध्यक्ष पदभार संभालते ही उनके सामने दिल्ली चुनाव बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है। जिस राज्य में पिछले चुनाव में भाजपा केवल तीन सीट जीत पाई थी। वहां उसे इस बार न केवल उन तीन सीटों को बचाना है, बल्कि सरकार बनाने के लिए 33 सीटें और चाहिए। 2014 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में पार्टी को बड़ी जीत दिलाने के साथ अमित शाह ने अपनी केंद्रीय पारी की शुरुआत की थी। उसी तरह से नड्डा को भी दिल्ली जीतकर अपनी पारी की शुरुआत करनी होगी। क्रिकेट की भाषा में कहें, तो पहले ही ओवर की सभी छह गेंदों पर उन्हें छक्का मारना होगा, तभी दिल्ली में 36 सीटें मिलेंगी। 
दुर्भाग्यपूर्ण है कि अरुण जेटली, सुषमा स्वराज जैसे मंजे हुए कार्यकर्ता-नेता इन्हें रनर या सहयोगी के रूप में उपलब्ध नहीं हैं। दिल्ली से परे देखें, तो बिहार, पश्चिम बंगाल, असम जैसे राज्यों में चुनाव होंगे। इन तीनों राज्यों में भाजपा के सामने अलग-अलग चुनौतियां हैं। अमित शाह ने बिहार के अपने भाषण में स्पष्ट कर दिया था कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री रहेेंगे। भाजपा और जद-यू का जो गठबंधन है, इस पर कोई प्रश्नचिह्न फिलहाल नहीं है। फिर भी दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल बिठाना और संगठित करके चुनाव क्षेत्र में उतारना, सफल चुनावी रणनीति बनाना इत्यादि कुछ ऐसे बड़े कार्य हैं, जिनका भार नड्डा को उठाना होगा। हालांकि यह तय है कि बिहार में जीते, तो श्रेय नीतीश कुमार के अच्छे कार्याें को दिया जाएगा और हार मिली, तो जिम्मेदारी नड्डा पर आ जाएगी। नड्डा को अध्यक्ष के नाते पश्चिम बंगाल में नए सिरे से काम शुरू करना पड़ेगा। असम की परिस्थिति बंगाल से भिन्न नहीं है, असम में भाजपा के सहयोगी दलों ने भी नागरिकता कानून का विरोध किया है। तेजी से बदलते परिवेश में नए साथी खोजना और नए समीकरण बनाना नड्डा के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी। राजनीति में जो जीता वही सिकंदर का नियम चलता है, इन्हीं नियमों के आधार पर उनके कार्यकाल को आंका जाएगा। उनकी सफलता की परख तो अंतत: चुनावी हार-जीत के आधार पर ही होगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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