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सूक्ष्म पोषक तत्वों को लोगों तक पहुंचाने की बड़ी लड़ाई

जो लोग अपने खान-पान को लेकर खास सतर्क रहते हैं, वे भी ‘माइक्रोन्यूट्रिएंट डिफिशिएंसी’ यानी शरीर के सामान्य ग्रोथ के लिए जरूरी विटामिन, मिनरल जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का शिकार हो...

सूक्ष्म पोषक तत्वों को लोगों तक पहुंचाने की बड़ी लड़ाई
संचिता शर्मा, हेल्थ एडीटर, हिन्दुस्तान टाइम्सMon, 19 Nov 2018 10:54 PM
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जो लोग अपने खान-पान को लेकर खास सतर्क रहते हैं, वे भी ‘माइक्रोन्यूट्रिएंट डिफिशिएंसी’ यानी शरीर के सामान्य ग्रोथ के लिए जरूरी विटामिन, मिनरल जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का शिकार हो सकते हैं। यानी यह बीमारी आर्थिक हालात, लिंग और उम्र नहीं देखती। चूंकि शरीर पर इन पोषक तत्वों में कमी के लक्षण तब तक नहीं उभरते, जब तक कि वे बहुत ज्यादा कम न हो जाएं, इसीलिए अमूमन इसका इलाज तब शुरू होता है, जब स्थिति बिगड़ चुकी होती है और नुकसान तयशुदा लगने लगता है। दुनिया भर में कुल बीमारी की 7.3 फीसदी की वजह ‘माइक्रोन्यूट्रिएंट डिफिशिएंसी’ है। इसके तीन सामान्य रूप हैं- आयरन, विटामिन-ए और आयोडीन की कमी। इनसे दुनिया का हर तीन में से एक शख्स जूझ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, ‘फूड फोर्टिफिकेशन’ यानी अतिरिक्त पोषक पदार्थों को मिलाना जन-स्वास्थ्य की दिशा में काफी किफायती व प्रभावशाली हस्तक्षेप है, जिसे मौजूदा प्रौद्योगिकी और वितरण प्रणाली से लोगों तक पहुंचाया जा सकता है।
 

बावजूद इसके भारत में छह माह से लेकर 23 महीने तक के 100 में से दस बच्चे को भी पर्याप्त आहार नहीं मिल पा रहा। यह आंकड़ा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 (2015-16) का है। इस मामले में शहर और गांवों का अंतर नाममात्र का है। महज 11.6 फीसदी शहरी बच्चों को पर्याप्त आहार (जिसमें दूध को छोड़कर चार या इससे अधिक खाद्य समूह शामिल हैं) मिल पाता है, जबकि ग्रामीण बच्चों की संख्या सिर्फ 8.8 फीसदी है। इतना ही नहीं, देश में पांच वर्ष से कम उम्र के तीन में से एक बच्चे का वजन कम है, जिसमें 29 फीसदी शहरी बच्चे भी शामिल हैं। यहां करीब 70 फीसदी किशोर लड़कियां खून की कमी यानी एनीमिया से जूझ रही हैं और लगभग 50 फीसदी कम वजन की हैं। भारत ही वह देश है, जहां दुनिया में सबसे अधिक ‘स्टंटेड’ यानी नाटे कद के बच्चे मिलते हैं। यहां कुपोषण की वजह से पांच वर्ष से कम उम्र के हर पांच में से दो बच्चे इसका शिकार हैं। इस कारण बच्चों की मानसिक और सीखने की क्षमता तो कम हो ही जाती है, वर्तमान में उनमें संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है और भविष्य में डायबिटीज, हाई बीपी और मोटापा जैसे रोग होने का जोखिम कहीं ज्यादा होता है।

भारत में दूध को विटामिन डी के साथ, गेहूं के आटे व चावल को आयरन, विटामिन बी12 और फोलिक एसिड के साथ, दूध व खाद्य तेल को विटामिन ए व डी के साथ और नमक को आयरन के साथ मिलाकर बाजार में बेचा जाता है। नमक को आयोडीन व आयरन के साथ ‘डबल फोर्टिफाइड’ भी किया जाता है। नए मानकों के तहत अब आटा, मैदा, चावल, नमक, वनस्पति तेल और दूध के अतिरिक्त पोषक तत्वों की न्यूनतम व अधिकतम सीमा बताई जाने लगी गई है। अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि ‘फोर्टिफाइड’ खाद्य पदार्थों की पहचान के लिए उन पर ‘+एफ’ लिखा होना चाहिए। चूंकि प्रोसेस्ड फूड (प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों) को ही सुदृढ़ किया जा सकता है, इसीलिए भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण यानी एफएसएसएआई, टाटा ट्रस्ट्स इंडिया न्यूट्रिशन इनिशिएटिव के साथ निजी खाद्य कारोबार पर गंभीरता से काम कर रहा है, ताकि इसकी पहुंच बढ़ सके।
 

अपने देश में 2017 के बाद से एकीकृत बाल विकास योजनाओं (आईसीडीएस) और मिड डे मील प्रोग्राम में ‘फोर्टिफाइड’ आटा, तेल और ‘डबल फोर्टिफाइड’ नमक का इस्तेमाल किया जा रहा है। फिलहाल 15 राज्य व तीन केंद्रशासित क्षेत्रों में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के तहत ‘फोर्टिफाइड’ खाद्य पदार्थ बांटे जा रहे हैं। एफएसएसएआई के मुताबिक, तय मानकों को अपनाने के बाद अभी 62 अग्रणी प्रसंस्कृत खाद्य-पदार्थ निर्माता कंपनियां सभी पांचों ‘फोर्टिफाइड’ खाद्य पदार्थों के 110 ब्रांड बेच रही हैं। हालांकि लगभग 47 फीसदी पैकेटबंद खाद्य तेल और 21 फीसदी दूध ‘फोर्टिफाइड’ हैं, बावजूद इसके अभी इस दिशा में काफी कुछ किया जाना शेष है। मसलन, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड 2016 से अपने सभी दूध को विटामिन ए और डी के साथ मिलाकर बेच रहा है, हालांकि दूध बेचने वाले सभी उद्योग ऐसा नहीं कर रहे।

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